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लोकसभा चुनाव से पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मायावती को झटका देते हुए कहा है कि उनके मुख्यमंत्री रहने के दौरान बनाई गई मूर्तियों में खर्च हुआ जनता का पैसा उन्हें लौटाना होगा. स्मारकों और मूर्तियों पर सरकारी पैसे खर्च करने को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने यह बात कही. मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 2 अप्रैल को तय की गई है.
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ट्वीट कर खुद पर लगे आरोपों का जवाब दिया है. उन्होंने पहले ट्वीट में कहा, ऐसे शानदार स्थल, मेमोरियल और पार्क संत, गुरु और महान लोगों की याद में बनाए जाते हैं, जन्हें अभी तक इग्नोर किया गया है. उत्तर प्रदेश में दलित और ओबीसी को नई पहचान मिली है और यह पर्यटकों के लिए भी आकर्षण है, जिससे सरकार की इनकम होती है.
मायावती ने अपने एक दूसरे ट्वीट में मीडिया को भी सही जानकारी देने की हिदायत दी. उन्होंने कहा कि प्लीज पतंग उड़ाना बंद करें.
कोर्ट करीब 10 साल पुरानी उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मूर्तियों के निर्माण पर सार्वजनिक पैसे खर्च करने से मायावती को रोकने के लिए निर्देश जारी करने की अपील की गई है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मायावती के वकील को कहा कि अपने क्लाईंट को बता दीजिए कि प्रथम दृष्टया उन्हें मूर्तियों पर खर्च पैसे को अपनी जेब से सरकारी खजाने में वापस जमा कराना होगा.
मायावती की ओर से कोर्ट में मौजूद सतीश मिश्रा ने कहा कि इस केस की सुनवाई मई के बाद हो, लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें कुछ और कहने के लिए मजबूर न करें. अब इस मामले में 2 अप्रैल को सुनवाई होगी.
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने साल 2007 से 2011 के अपने शासनकाल के दौरान लखनऊ और नोएडा में दो बड़े पार्क बनवाए थे. इन पार्कों में मायावती ने अपनी, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, बीएसपी के संस्थापक कांशीराम और पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी की कई प्रतिमाएं बनवाई थीं. इनमें पत्थर और कांसे की मूर्तियां शामिल हैं.
इन परियोजनाओं की लागत 1,400 करोड़ रुपए से ज्यादा थी, जिसमें मूर्तियों पर 685 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस पर सरकारी खजाने को 111 करोड़ रुपए का नुकसान होने का मामला दर्ज किया था.
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