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Supreme court ने दिल्ली सरकार को दो सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर कर पिछले तीन साल में विज्ञापनों पर किए गए खर्च का ब्योरा देने का आदेश दिया है. न्यायधीश एस. के. कौल और सुधांशु धुलिया वाली संवैधानिक पीठ ने दिल्ली सरकार को आरआरटीएस प्रोजेक्ट (रिजनल रैपीड ट्रांसजिट सिस्टम) के लिए फंड जारी नहीं करने के एवज में सरकार को विज्ञापन खर्च किए राशि का ब्योरा देने को कहा है. दिल्ली सरकार ने फंड की कमी होने की वजह से आरआरटीएस प्रोजेक्ट में कोई योगदान नहीं दे पाने का तर्क दिया है.
अदालत ने सोमवार, 3 जुलाई आदेश जारी करते हुए दिल्ली सरकार को राजधानी क्षेत्र की तरफ से एक हलफनामा दायर करने की मांग करते हुए पिछले तीन सालों में विज्ञापन पर किए खर्च का ब्योरा की मांग की है. एमसी मेहता की बेंच ने पर्यायवरण से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किया है.
सुनवाई के दौरान उपस्थित वकीलों में से एक ने कहा कि दिल्ली सरकार ने भी दिल्ली-मेरठ कॉरिडोर के लिए भी इसी तरह का रूख अपनाया है, इस संबंध में भी दिल्ली सरकार ने फंड की कमी होने का तर्क दिया है.
वकिल ने कहा कि दिल्ली सरकार के निदेशक ने दिसंबर, 2020 में एनसीआरटीसी को बताया था कि सरकार प्रोजेक्ट के लिए फंड उपलब्ध कराने में असमर्थ है.
जस्टिस कौल ने कहा कि ''क्या फंड की एक ही बार में जरूरत है? सरकार अन्य चीजों पर कितना खर्च करती हैं? यह एक विकास परियोजना है. कहां कितना खर्च करना है? ये फैसला राज्य सरकार पर छोड़ा जाता है , लेकिन इस तरह की विकास परियोजना के लिए जब सरकार कहती हैं कि कोई फंड नहीं है. तो हम जानना चाहते हैं कि आपने विज्ञापन पर कितना खर्च किया है? परियोजना का निर्माण करना भी एक विज्ञापन ही है.
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