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सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से कहा है कि वो अपनी वैक्सीन खरीद की नीति पर फिर से विचार करे. कोर्ट ने कहा है कि- 'पहली नजर में ऐसा लगता है कि इससे संविधान के आर्टिकल-21 के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य के अधिकार को क्षति पहुंचती है.' सर्वोच्च अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों से ये भी कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य कल्याण के मद्देनजर कोरोना वायरस की दूसरी लहर को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाने पर विचार करें.
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एन नागेश्वर राव, एस रवींद्र भट वाली बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी को भी स्थानीय परिचय पत्र ना होने की वजह से हॉस्पिटल में भर्ती होने या जरूरी दवा के लिए मना नहीं किया जाएगा. बेंच ने केंद्र सरकार से कहा कि हॉस्पिटल में भर्ती किए जाने को लेकर दो हफ्ते के अंदर राष्ट्रीय नीति बनाएं. इस नीति का पालन सभी राज्यों को करना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैक्सीन की खरीद केंद्रीकृत तरीके से की जानी चाहिए और राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के बीच बंटवारा विकेंद्रीकृत होना चाहिए. केंद्र की वैक्सीन नीति पर बोलते हुए कोर्ट ने कहा कि प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के नाम पर राज्यों को वैक्सीन बनाने वाली कंपनी से मोलभाव करना होगा.
कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वो मौजूदा और भविष्य के लिए अनुमानित वैक्सीन उपलब्धता का ब्योरा दें.
बता दें कि 3 मई को देशभर में कोरोना के एक्टिव मरीजों की संख्या 34,13,642 लाख के पार जा चुकी है. बीते 24 घंटे के दौरान देभर में 3,68,147 से ज्यादा से लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. वहीं सिर्फ एक दिन में कोरोना से 3,417 लोगों की मौत हुई है, इससे पहले 2 मई को 24 घंटे में 3.92 लाख से अधिक कोरोना रोगी पाए गए थे.
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