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सुप्रीम कोर्ट ने गुस्से में कहा जब सरकार सीबीआई डायरेक्टर नियुक्त नहीं कर सकती तो हटा कैसे सकती है? आलोक वर्मा को डायरेक्टर के तौर पर बहाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के 23 अक्टूबर, 2018 के ऑर्डर को रद्द कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेहद अहम है, इसलिए आइए आपको बताते हैं कि कोर्टरूम में क्या क्या हुआ और आगे की तमाम सरकारों के लिए इस फैसले में क्या सबक है.
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सिलेक्शन कमेटी का फैसला होते तक वर्मा कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं ले पाएंगे. वर्मा को हटाने के मामले में सरकार को भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता वाली सिलेक्ट कमेटी के पास भेजना चाहिए था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि DSPE एक्ट के तहत हाई पावर कमेटी आलोक वर्मा के केस में कार्रवाई को लेकर एक हफ्ते के अंदर फैसला करे. आलोक वर्मा का सीबीआई निदेशक के रूप में दो साल का कार्यकाल 31 जनवरी को पूरा हो रहा है.
केंद्र सरकार ने अक्टूबर, 2018 में सीबीआई के दो शीर्ष अधिकारियों (आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना) के बीच विवाद सामने आने के बाद दोनों को छुट्टी पर भेज दिया था. केंद्र सरकार ने यह फैसला सीवीसी की सिफारिश पर किया था.
इसके साथ ही केंद्र ने सीबीआई के संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को अस्थाई तौर पर इस एजेंसी के निदेशक का कार्यभार सौंप दिया था. इसके बाद आलोक वर्मा ने (23 अक्टूबर 2018) के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग (DoPT) के दो और सीवीसी के एक ऑर्डर को रद्द करने की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
केंद्र सरकार ने कोर्ट के सामने आलोक वर्मा को उनकी जिम्मेदारियों से हटाकर छुट्टी पर भेजने के अपने फैसले को सही ठहराया था. केंद्र सरकार ने कहा था कि उनके और अस्थाना के बीच टकराव की स्थिति है, जिस वजह से देश की शीर्ष जांच एजेंसी जनता की नजरों में हंसी का पात्र बन रही है.
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