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सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उत्साहित दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली कैबिनेट की बैठक बुलाई और अटके पड़े फैसलों पर फटाफट अमल का आदेश दे दिया है. मुख्यमंत्री को दिल्ली सरकार का असली बॉस करार देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पहली कैबिनेट बैठक में केजरीवाल ने कहा लोगों का न्यायपालिका पर भरोसा बहाल हो गया है.
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अब फटाफट घर तक राशन की डिलिवरी और सीसीटीवी फैसले पर अमल की कार्रवाई शुरू हो जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर केंद्र ने दिल्ली सरकार से अधिकार नहीं छीने होते तो 3 साल खराब नहीं होते.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने फैसला दिया है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देना मुमकिन नहीं है. लेकिन चुनी हुई सरकार को जमीन, पुलिस और कानून व्यवस्था के अलावा सभी मामलों पर फैसले का अधिकार है.
चीफ जस्टिस ने कहा कि उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री को मिलकर काम करना चाहिए. बेंच ने कहा कि उपराज्यपाल के पास स्वतंत्र अधिकार नहीं हैं और उसे दिल्ली कैबिनेट की सलाह माननी होगी.
उधर पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने मांग की कि ये फैसला उनके राज्य में भी लागू होना चाहिए. सामी का उपराज्यपाल किरण बेदी के साथ विवाद चल रहा है.
सामी ने मांग की दिल्ली की तरह पुडुचेरी में भी निर्वाचित सरकार है, इसीलिए ये फैसला उनके राज्य में भी लागू होना चाहिए.
नारायणसामी ने चेतावनी दी है कि अगर पुडुचेरी की उपराज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन नहीं किया तो वो सुप्रीम कोर्ट में उनके खिलाफ अवमानना की अर्जी दायर करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार शाम चार बजे कैबिनेट की मीटिंग बुलाई है. इस मीटिंग में रुके हुई अहम परियोजनाओं पर चर्चा होगी.
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा, ‘जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो बिल्कुल साफ है. अगर दिल्ली सरकार और एलजी साथ काम नहीं करेंगे तो समस्याएं आएंगी. कांग्रेस ने 15 सालों तक काम किया लेकिन कोई समस्या नहीं आई.’
आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता राघव चढ्ढा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है. उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार का दखल सिर्फ दिल्ली की लैंड, पुलिस और पब्लिक ऑर्डर में ही होगा.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया अदा किया है. उन्होंने कहा कि ये एक एतिहासिक फैसला है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने जनता को सुप्रीम बताया है. सिसोदिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, ‘जनता के द्वारा चुनी गई सरकार सुप्रीम है. अब एलजी की मनमानी नहीं चलेगी.’
सिसोदिया ने कहा कि कोर्ट के फैसले के बाद अब दिल्ली सरकार को जनता के हक में लिए गए फैसलों की फाइल उपराज्यपाल के पास भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्होंने कहा, 'फाइल भेजने की वजह से बहुत से काम रुक जाते थे. सरकार के फैसलों में टांग अड़ाई जा रही थी. उपराज्यपाल ने ऐसे कई मामलों में टांग अड़ाई, जिसकी वजह से दिल्ली की जनता के लिए बनाई गई कई योजनाएं अटक गईं.'
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दिल्ली की जनता की जीत बताया है. कोर्ट का फैसला आने के बाद केजरीवाल ने ट्विटर पर लिखा, ‘ये लोकतंत्र की जीत है.’
पांच जजों की बेंच में शामिल जस्टिस चंद्रचूड़ सिंह ने भी बेहद अहम टिप्पणी की है. उन्होंने कहा है कि चुनी हुई सरकार के पास ही असली ताकत और असली जिम्मेदारी है. इसलिए सरकार के काम में उपराज्यपाल को अड़ंगा डालने का अधिकार नहीं है.
दिल्ली के उपराज्यपाल को राजधानी का प्रशासनिक मुखिया घोषित करने से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली की स्थिति बाकी राज्यों से अलग है. ऐसे में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार मिलकर जनता की भलाई के लिए काम करें.
आम आदमी पार्टी सरकार ने संविधान पीठ के सामने दलील दी थी कि उसके पास विधायी और कार्यपालिका दोनों के ही अधिकार हैं. उसने ये भी कहा था कि मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास कोई भी कानून बनाने की विधायी शक्ति है, जबकि बनाये गये कानूनों को लागू करने के लिये उसके पास कार्यपालिका के अधिकार हैं.
यही नहीं, AAP सरकार का ये भी तर्क था कि उपराज्यपाल कई प्रशासनिक फैसले ले रहे हैं और ऐसी स्थिति में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार के जनादेश को पूरा करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 239 एए की व्याख्या जरूरी है.
दूसरी ओर, केंद्र सरकार की दलील थी कि दिल्ली सरकार पूरी तरह से प्रशासनिक अधिकार नहीं रख सकती क्योंकि ये राष्ट्रीय हितों के खिलाफ होगा. इसके साथ ही उसने 1989 की बालकृष्णन समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसने दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिये जाने के कारणों पर विचार किया. केंद्र का तर्क था कि दिल्ली सरकार ने अनेक ‘‘ गैरकानूनी '' नोटिफिकेशन जारी कीं और इन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी.
केंद्र ने सुनवाई के दौरान संविधान, 1991 का दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार कानून और राष्टूीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के कामकाज के नियमों का हवाला देकर ये बताने का प्रयास किया कि राष्ट्रपति, केंद्र सरकार और उपराज्यपाल को राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासनिक मामले में प्राथमिकता हासिल है.
इसके उलट, दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल पर लोकतंत्र का मखौल उड़ाने का आरोप लगाया और कहा कि वो या तो निर्वाचित सरकार फैसले ले रहे हैं या बगैर किसी अधिकार के उसके फैसलों को बदल रहे हैं. दिल्ली उच्च कोर्ट ने 4 अगस्त, 2016 को अपने फैसले में कहा था कि उपराज्यपाल ही राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासनिक मुखिया हैं और AAP सरकार के इस तर्क में कोई दम नहीं है कि वो मंत्रिपरिषद की सलाह से ही काम करने के लिये बाध्य हैं.
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