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सितंबर, 2018 भारत के लिए बेहद खास रहा. देश की सबसे बड़ी अदालत ने एक के बाद एक कई ऐसे फैसले सुनाए जिससे देश की दशा और दिशा तय होगी. ऐसे में जानते हैं समलैंगिकता से लेकर सबरीमाला मंदिर तक पर सुप्रीम कोर्ट के 7 बड़े फैसले. ये वो फैसले थे जो कई साल से मतभेद या विवाद का मुद्दा बने हुए थे. इनसे कभी नफरतें बढ़ती थी तो कभी अपनी ‘आजादी’ छिन जाने का डर बना रहा था. अब सब कुछ साफ हो गया है.
5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक सेक्स को अपराध की कैटेगरी से बाहर कर दिया है. कोर्ट ने साफ कहा है कि समलैंगिक सेक्स संबंध अपराध नहीं है. इसी के साथ समलैंगिक सेक्स को आपराध मानने वाली धारा 377 को खत्म कर दिया. न्यायाधीशों ने अलग-अलग फैसले सुनाए, लेकिन इस बात पर करीब-करीब सबकी राय एक जैसी थी. ये ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस खानविल्कर और जस्टिस इंदु मल्होत्रा थे.
आधार पर पिछले कुछ साल से रार मची हुई थी. अब 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आधार की संवैधानिकता को बरकरार रखा है. लेकिन कोर्ट ने ये भी कहा कि बैंकिग और मोबाइल सर्विस में, प्राइवेट कंपनियों के लिए, बोर्ड एग्जाम में बैठने जैसी चीजों के लिए आधार बिलकुल जरूरी नहीं है. मतलब अब मोबाइल कंपनी आपसे जबरदस्ती आधार नंबर से मोबइल लिंक करने या नए सिम के लिए आधार नंबर नहीं मांग सकती हैं. बैंक में नया अकाउंट खोलने के लिए भी आधार नंबर जरूरी नहीं होगा.
26 सितंबर को ही सुप्रीम कोर्ट ने एक और ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट की कार्यवाही के लाइव प्रसारण को मंजूरी दे दी है. साथ ही इसके लिए नियम तैयार करने के भी निर्देश दे दिए हैं. यानी वो दिन अब दूर नहीं जब आप राष्ट्रीय महत्व के मामलों में फैसलों तक पहुंचने की पूरी प्रक्रिया को सीधे प्रसारण के तौर पर देख पाएंगे.
26 सितंबर को एक और बड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकारी नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण राज्य सरकारें तय करें. मतलब प्रमोशन में आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज न करते हुए राज्य सरकारों पर ये मामला छोड़ दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण के बारे में संविधान पीठ के नागराज मामले में 2006 का फैसला, 7 सदस्यों की संविधान पीठ को भेजने से भी इनकार कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में 27 सितंबर को बड़ा फैसला सुनाया है. मस्जिद के अंदर नमाज पढ़ने के मामले में कोर्ट ने कहा है कि नमाज पढ़ना तो इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है लेकिन नमाज मस्जिद में पढ़ी जाए ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है. ऐसे में कोर्ट ने साल 1994 के एक फैसले को पुनर्विचार के लिए संवैधानिक पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया. उस फैसले में यही बात थी कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है.
इसी के साथ राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के मुख्य केस की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. मुख्य केस की सुनवाई नई गठित 3 जजों की पीठ 29 अक्टूबर से करेगी.
27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ कई फैसले सुनाए. उनमें से एक अडल्टरी पर भी था. कोर्ट ने अपने एक फैसले में अडल्टरी को अपराध मानने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब अडल्टरी, यानी शादीशुदा लोगों के लिए शादी से बाहर संबंध रखना कानून की नजर में अपराध नहीं है. इसी के साथ, इन मामलों में सिर्फ पुरुष को दोषी मानने वाली आईपीसी की धारा 497 को कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया. कोर्ट ने कहा कि हर किसी को बराबरी का अधिकार है. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति पत्नी का मालिक नहीं है. एडल्टरी तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन अपराध नहीं.
28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं की एंट्री की मंजूरी दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अब मंदिर में हर उम्र वर्ग की महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविल्कर ने कहा, अयप्पा के भक्तों में कोई भेदभाव नहीं. इससे पहले सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को एंट्री नहीं थी.
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