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योगी सरकार ने सावन महीने में कांवड़ यात्रा के मद्देनजर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में कांवड़ रूट पर खाने-पीने की दुकानों-ठेलों पर नेमप्लेट लगाने के निर्देश दिए थे. 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और उत्तराखंड सरकार के इस आदेश पर रोक लगा दिया. दरअसल, होटल-ढाबों सहित खाने-पीने की दुकानों पर नेमप्लेट लगाने की शुरुआत मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) जिले से हुई थी. स्वामी यशवीर महाराज (Swami Yashveer Maharaj) ने कांवड़ रूट में पड़ने वाले मुसलमानों के होटलों-ढाबों के नामों पर सवाल उठाया और सही नाम लिखने की मांग की थी. ऐसे में बताते हैं कि आखिर यशवीर महाराज कौन है और राजनीतिक पहुंच कितनी है?
मुजफ्फरनगर मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर बघरा में अपने 'योग साधना' आश्रम में रहने वाले स्वामी यशवीर महाराज नाम लगाने के फैसले के बाद सुर्खियों में हैं. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है, जब वे खबरों में आए हैं. 'घर वापसी', विवादित बयान, जेल जाने से लेकर मुसलमानों की दुकानों के खिलाफ मोर्चा खोलने तक के मामले में वे मीडिया में बने रहे हैं.
मुजफ्फरनगर में मुसलमानों के खाने-पीने की दुकानों के नाम हिंदू देवी-देवताओं या फिर किसी दूसरे नाम पर रखने के खिलाफ पिछले साल से स्वामी यशवीर ने अभियान चला रखा है. पिछले साल उन्होंने इसको लेकर विरोध-प्रदर्शन किया था. जिसके बाद कांवड़ यात्रा के दौरान कई दुकानें बंद करवा दी गई थी. वहीं कुछ ऐसी भी दुकानें हैं जो दोबारा खुली ही नहीं.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निराशाजनक बताते हुए उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखने की बात कही है. एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट का नेमप्लेट लगाने पर जो दिशा-निर्देश आया है, वह निराशाजनक है. लेकिन हमें कोर्ट पर विश्वास है कि हमें न्याय मिलेगा."
यशवीर महाराज ने उत्तराखंड की धामी सरकार को भी इसके लिए पत्र लिखा था.
इससे पहले उन्हें इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी से कानून बनाने की मांग की थी.
उन्होंने कहा था, "मैं मोदी जी से भी निवेदन करता हूं कि ये केवल उत्तर प्रदेश की समस्या नहीं, ये समस्त भारत की समस्या है. इसको लेकर कानून बनाया जाए कि जो भी खाने-पीने की दुकान चलाए, वे अपने नाम पर चलाए न कि दूसरे के नाम पर."
वहीं दो बार के सभासद मोहम्मद फैसल कहते हैं, "इससे एक खराब संदेश जाता है. लोगों में दहशत का माहौल बनता है. यशवीर महाराज जी जैसे धार्मिक व्यक्ति को अच्छे काम करना चाहिए. अपने देश और दूसरे समुदाय का सम्मान करना चाहिए."
मुजफ्फरनगर के मूल निवासी स्वामी यशवीर पहली बार साल 2015 में पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ कथित विवादित टिप्पणी को लेकर सुर्खियों में आए.
बताया जाता है कि शामली जिले के कांधला थाना इलाके में एक मुस्लिम युवक हिंदू लड़की को लेकर भाग गया था. इस मामले में एक पंचायत आयोजित हुई, जिसमें यशवीर महाराज ने कथित तौर पर मोहम्मद पैगंबर के खिलाफ मंच से विवादित टिप्पणी की थी.
जानकारी के मुताबिक, मंच पर उस वक्त बीजेपी के कद्दावर नेता हुकूम सिंह, तत्कालीन बीजेपी विधायक सुरेश राणा और विधायक उमेश मलिक भी मौजूद थे. इस मामले में वीडियो के आधार पर पुलिस ने कांधला थाने में उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था.
स्वामी यशवीर महाराज इस मामले में करीब साढ़े सात महीने जेल में रहे. वैसे तो उन्हें इस मामले में 19 मार्च 2016 को जमानत मिल गई. लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लगने की वजह से जमानत मिलने के बाद भी रिहाई नहीं हो सकी. अगस्त 2016 में पुलिस ने उन पर से NSA हटाया. जिसके बाद 12 अगस्त 2016 को वे रिहा हुए.
यशवीर महाराज 'घर वापसी' यानी हिंदू से मुस्लिम बने लोगों को वापस हिंदू धर्म में शामिल करने के लिए भी आंदोलन चला रहे हैं. उनका दावा है कि अब तक वे 1500 से अधिक लोगों की 'घर वापसीट करा चुके हैं. जिनका आश्रम में ही शुद्धिकरण हवन और अन्य क्रियाओं के द्वारा कराया जाता है.
बेहड़ा अस्सा निवासी शिवकुमार धीमान कहते हैं, "यशवीर जी सनातन के संरक्षण के प्रति जागरुक हैं. जब हम किसी कार्य को कर रहे हैं तो अपना वास्तविक नाम क्यों न लिखें. मैं उनसे सहमत हूं और उनका समर्थन करता हूं."
स्वामी यशवीर महाराज वैसे तो खुद को किसी भी पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं बताते हैं. लेकिन उन्हें बीजेपी नेताओं के साथ देखा जाता रहा है. सीएम योगी सहित कई बीजेपी नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें हैं. यशवीर महाराज दावा करते हैं कि अक्सर फोन पर उनकी सीएम से बात होती है.
इसक साथ ही पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री संजीव बालियान, राज्यमंत्री कपिलदेव अग्रवाल से लेकर पूर्व विधायक उमेश मलिक तक, सभी से उनके अच्छे संबंध बताए जाते हैं.
स्वामी यशवीर महाराज ने भविष्य में चुनाव लड़ने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया है. वे कहते है कि जैसी प्रभु की इच्छा होगी, वे करेंगे.
2022 यूपी विधानसभा चुनाव में चरथावल सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने को लेकर उनके नाम की भी चर्चा थी. हालांकि, पार्टी से उन्हें टिकट तो नहीं मिला, लेकिन उन्होंने बीजेपी के कई नेताओं के लिए चुनाव प्रचार जरूर किया.
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