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भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 30 मार्च को ताजिकिस्तान की राजधानी दुशानबे में 'हार्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल प्रोसेस' कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया. जयशंकर ने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र (UN) के बैनर तले अफगानिस्तान में 'सीजफायर और राजनीतिक समझौते पर पहुंचने की क्षेत्रीय प्रक्रिया' को समर्थन देता है. विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान में स्थिति 'गंभीर चिंता' का विषय बनी हुई है.
जयशंकर ने कॉन्फ्रेंस में एक मिनिस्टीरियल मीटिंग में हिस्सा लिया. 'हार्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल प्रोसेस' चीन, रूस, ईरान समेत 15 देशों की एक क्षेत्रीय पहल है. इसका मकसद अफगानिस्तान की स्थिति का हल निकालना है.
बैठक में जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान में 'दोहरी शांति' की जरूरत है, जिसका मतलब है कि 'अफगानिस्तान में और उसके आसपास शांति). जयशंकर ने कहा, "इसमें अफगानिस्तान और आसपास मौजूद सभी के हितों को ध्यान में रखने की जरूरत होगी."
जयशंकर ने कहा कि हम संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में एक क्षेत्रीय प्रक्रिया का समर्थन करते हैं.
विदेश मंत्री ने कहा, "अफगानिस्तान को आतंकवाद, हिंसक उग्रवाद, ड्रग और क्रिमिनल सिंडिकेट से मुक्त बनाना सामूहिक रूप से जरूरी है. एक स्थिर, शांतिपूर्ण और संप्रभु अफगानिस्तान हमारे क्षेत्र में शांति और प्रगति का आधार है."
हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी को एक खत भेजा था. अमेरिका ने UN की अगुवाई में एक कॉन्फ्रेंस का प्रस्ताव रखा था, जिसमें रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान, भारत और अमेरिका के प्रतिनिधि शामिल होंगे. ये देश 'अफगानिस्तान में शांति को समर्थन देने के लिए संयुक्त रवैये' पर चर्चा करेंगे.
अमेरिका की पहल पर भारत को इस बातचीत में शामिल किया गया है. हाल ही में रूस ने तालिबान और अफगान सरकार के प्रतिनिधियों को बुलाकर एक बैठक की थी. इसमें पाकिस्तान और चीन ने हिस्सा लिया था लेकिन भारत को शामिल नहीं किया गया था.
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