Home News India शशिकला Vs पन्नीरसेल्वम: क्या तमिलनाडु में हो रहा है ‘एक्शन रिप्ले’
शशिकला Vs पन्नीरसेल्वम: क्या तमिलनाडु में हो रहा है ‘एक्शन रिप्ले’
ओ. पन्नीरसेल्वम और शशिकला के बीच जयललिता के उत्तराधिकार को लेकर जंग जानकी रामाचंद्रन और जयललिता की याद दिलाती है.
अनंत प्रकाश
भारत
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तमिलनाडु के सीएम ओ पन्नीरसेल्वम को पूर्व सीएम जयललिता के निधन पर ढांढ़स बंधाते पीएम मोदी (फोटो: PTI)
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तमिलनाडु का अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा? शशिकला या ओ. पन्नीरसेल्वम? जंग शुरु हो चुकी है. मोर्चे खोले जा चुके हैं. मयानों से तलवारें बाहर निकल चुकी हैं. शशिकला के पास विधायकों का दम है तो पन्नीरसेल्वम जनता-जनार्दन से ताकत जुटाने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन क्या दो नेताओं के बीच अस्तित्व बचाने की ये जंग तमिलनाडु के 30 साल पुराने राजनीतिक इतिहास की याद नहीं दिलाती?
ये 30 साल पुरानी बात है. तमिलनाडु के पॉपुलर सीएम एम जी रामाचंद्रन एक अमेरिकी अस्पताल में आखिरी सांसे गिन रहे थे. तमिलनाडु में उत्तराधिकार की जंग शुरु हो चुकी थी. एक तरफ जयललिता थीं तो दूसरी तरफ एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन.
पत्नी जानकी रामाचंद्रन के साथ एमजी रामाचंद्रन (फोटो: Twitter)
दिसंबर, 1987 में एमजीआर के निधन के साथ ही उत्तराधिकार की जंग और तेज हो गई.
एमजीआर को श्रद्धांजलि देने पहुंची जयललिता को सरेआम बेइज्जत किया गया. इसके बाद जानकी ने एआईएडीएमके विधायकों के दम पर असेंबली में विश्वास मत का प्रस्ताव दे दिया. लेकिन जयललिता भी कमजोर नहीं थीं. ‘अम्मा’ अपने 33 विधायकों समेत सदन से अनुपस्थित रहीं. तत्कालीन स्पीकर पीएच पांडियन ने जयललिता समेत 33 एआईएडीएमके के 33 विधायकों को बर्खास्त कर दिया. इसके बाद जानकी ने आसानी से विश्वास मत जीत लिया. पार्टी की अंदरुनी कलह में केंद्र सरकार की दिलचस्पी बढ़ी और एक पक्ष का पलड़ा भारी हो गया. कुछ महीने में ही जानकी रामचंद्रन की सरकार बर्खास्त कर दी गई. क्या इस बार की लड़ाई में भी एक्शन रिप्ले होने वाला है?
एमजीआर की मूर्ति के सामने से गुजरती हुईं जयललिता (फोटो: PTI)
चर्चा है कि राज्य के गवर्नर और पूर्व बीजेपी नेता सी विद्यासागर राव ने पन्नीरसेल्वम को इतना वक्त दिया कि वे चिन्नम्मा के खिलाफ मोर्चा खोल सकें.
खबरों के मुताबिक, शशिकला के पति एस चंद्रशेखर ने बीता एक महीना दिल्ली में बिताया और कांग्रेसी नेताओं से मुलाकात की. बीजेपी भी इन मुलाकातों पर नजर रख रही थी. ऐसे में बीजेपी तमिलनाडु सरकार पर अपना प्रभाव बरकरार रखने के उद्देश्य से पन्नीरसेल्वम पर अपना भरोसा जता रही है. क्योंकि, शशिकला की सरकार बनने की स्थिति में तमिलनाडु के कांग्रेस की ओर झुकने के संकेत नजर आ रहे हैं.
नई दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात करते पूर्व तमिसनाडु सीएम ओ. पन्नीरसेल्वम (फोटो: PTI)
जनता के बीच पहुंचे पन्नीरसेल्वम?
पन्नीरसेल्वम ने चिन्नम्मा के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद वो सब बताना शुरु कर दिया है जिससे उन्हें जनता का भावनात्मक समर्थन मिल सके.
पन्नीरसेल्वम ने कहा है कि मैं ‘अम्मा’ को देखने अस्पताल जाता था. हर रोज जाता था. लेकिन मुझे एक बार भी ‘अम्मा’ से मिलने नहीं दिया गया. ये सब जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे एक ताकत है जो ये सब करा रही है. मैं अम्मा की मौत की जांच कराऊंगा. अम्मा 16 सालों तक इस प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं. मैं दो बार मुख्यमंत्री बना हूं क्योंकि अम्मा ऐसा चाहती थीं. मैं हमेशा अम्मा के रास्ते पर चला हूं. मैंने एक बार भी सत्ता में या बाहर रहते हुए पार्टी को धोखा नहीं दिया है. अम्मा ने मुझ पर भरोसा करके पार्टी का कोषाध्यक्ष बनाया था और वो मुझसे कोई नहीं छीन सकता. विपक्षी नेताओं से मिलते वक्त मुस्काराना कोई अपराध नहीं है. शशिकला के खिलाफ जंग छेड़ने की वजह से मुझे कोषाध्यक्ष के पद से हटाया गया है. मैं पूरे तमिलनाडु में जाऊंगा. लोगों के सामने अपनी बात रखूंगा और विधानसभा में अपनी ताकत सिद्ध करूंगा.
जनता के बीच जाने से पहले जयललिता के स्मृति स्थल पर पहुंचे ओ. पन्नीरसेल्वम(फोटो: PTI)
पन्नीरसेल्वम के ये खुलासे तमिलनाडु की जनता को अपने साइड में लाने की कोशिश है. दूसरी ओर शशिकला सेलिब्रिटीज से लेकर आम जनता का विरोध झेल रही हैं. ऐसे में अगर आर अश्विन और रजनीकांत जैसी तमिल सेलिब्रिटीज पन्नीरसेल्वम के समर्थन में उतर जाते हैं तो शशिकला के लिए ये जंग मुश्किल हो जाएगी. इसके साथ ही तमिलनाडु में जयललिता को जहर दिये जाने की साजिश पर चर्चा जारी है. ऐसे में पन्नीरसेल्वम द्वारा ‘अम्मा’ की मौत की जांच कराने का वादा एक बड़ा दांव हो सकता है.
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लेकिन इतिहास का दोहराव आखिर क्यों?
देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों में शीर्ष पर एक नेता का देखा जाना आम है. सबसे नई पार्टी ‘आप’ में भी अरविंद केजरीवाल सबसे ऊपर हैं. इसके बाद दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेता गायब हैं. बसपा में मायावती और टीएमसी में ममता बनर्जी का भी यही हाल है.
राजनीतिक विश्लेषक संदीप शास्त्री कहते हैं कि भारत की राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव एक बड़ा कारण है. करिश्माई नेताओं वाली पार्टियों में नेता के जाने पर संघर्ष शुरु हो जाता है.
30 साल पहले उत्तराधिकार हासिल करने की जंग में जयललिता को दिल्ली का समर्थन मिला था. क्या साल 2017 में जयललिता के उत्तराधिकार को लेकर जारी जंग में दिल्ली एक बार फिर हस्तक्षेप करके चेन्नई में जारी इस जंग का फैसला करेगी?
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