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सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार, को गुजरात हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad) को सात दिनों के लिए नियमित जमानत देने से इनकार कर दिया गया था.
आज हुई दूसरी विशेष सुनवाई में, जस्टिस बीआर गवई, एएस बोपन्ना और दीपांकर दत्ता की शीर्ष अदालत की डिवीजन बेंच ने निर्देश दिया कि सीतलवाड को सात दिनों के लिए अंतरिम जमानत दी जाए.
जबकि दूसरी तरफ, गुजरात हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सीतलवाड की अपील को सूचीबद्ध/लिस्ट करने के लिए भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष रखने का निर्देश दिया गया.
बता दें कि, हाई कोर्ट द्वारा उन्हें अधिकारियों के सामने तुरंत सरेंडर करने का निर्देश दिए जाने के बाद, सीतलवाड ने अंतरिम जमानत के लिए एक आवेदन के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
हालांकि जस्टिस एएस ओका और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच सीतलवाड को अंतरिम राहत देने पर सहमत नहीं हो पाई. उन्होंने इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए एक बड़ी पीठ के गठन के लिए मामले को भारत के चीफ जस्टिस के पास भेज दिया. कुछ ही घंटों बाद मामले की सुनवाई के लिए तीन जजों की बेंच का गठन किया गया.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार सीतलवाड की याचिका पर सुनवाई करते हुए, जस्टिस गवई ने कहा कि जस्टिस एएम खानविलकर की अगुवाई वाली पीठ के पहले के फैसले में कहा गया था कि गुजरात दंगों के मामले की जांच करने वाले अधिकारियों को "कटघरे में होना चाहिए."
गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सीतलवाड को शीर्ष अदालत से विशेष व्यवहार क्यों मिलना चाहिए, खासकर जब वह सिर्फ एक सामान्य आरोपी हैं.
बता दें कि गुजरात हाई कोर्ट ने अपने 127 पन्नों के फैसले में कहा कि सीतलवाड को जमानत पर रिहा करने से देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण गहरा होगा.
तीस्ता सीतलवाड़ पर साल 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामलों में 'निर्दोष लोगों' को फंसाने के लिए फर्जी सबूत गढ़ने का आरोप है. सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2022 में उन्हें अंतरिम जमानत दी थी.
सीतलवाड़ा पर IPC के सेक्शन 468 (धोखे देने की नीयत दस्तावेजों से छेड़छाड़) और सेक्शन 194 (फर्जी सबूत गढ़ना) के तहत मामला दर्ज है.
तीस्ता सीतलवाड़ पर विदेश से आए पैसे के दुरुपयोग और धोखाधड़ी का भी आरोप है.
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