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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 2 सितंबर को एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad) को अंतरिम जमानत दे दी. तीस्ता सीतलवाड़ को 2002 के गोधरा दंगों के मामले में तात्कालिक मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गुजरात के बड़े अधिकारियों को फंसाने के लिए फर्जी डाक्यूमेंट्स बनाने के आरोप में गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया था.
अंतरिम जमानत देने से एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गुजरात सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी.
एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ ने गुजरात हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. इससे पहले गुजरात हाई कोर्ट ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम जमानत का कोई आदेश पारित नहीं किया था और एक लंबा स्थगन दिया था.
सुनवाई में तीस्ता सीतलवाड़ की ओर से दलील रखने के लिए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए थे जबकि सॉलिसिटर जनरल तुसार मेहता ने गुजरात सरकार का पक्ष रखा.
सुप्रीम कोर्ट की इस तीन सदस्यीय बेंच ने अग्रिम जमानत के अपने आदेश में कहा कि
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात हाई कोर्ट को मामले के लंबित रहने के दौरान याचिकाकर्ता की अंतरिम जमानत के आवेदन पर विचार करना चाहिए था क्योंकि उनसे हिरासत में पुलिस की पूछताछ पूरी हो चुकी है.
अंतरिम जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नोट किया कि तीस्ता सीतलवाड़ पहले ही 7 दिन की पुलिस कस्टडी और उसके बाद से जुडिशल कस्टडी/न्यायिक हिरासत में हैं.
CJI ललित ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि तीस्ता ने दो महीने पूरे कर लिए हैं, गुरुवार को गुजरात सरकार से पूछा था कि "पिछले दो महीनों में आपको क्या मैटेरियल मिले हैं? क्या आपने चार्जशीट दाखिल की है या जांच चल रही है?"
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने गुरुवार को कहा था कि सीतलवाड़ पर जिन अपराधों का आरोप लगाया गया है, उनमें से कोई भी ऐसा नहीं है को उन्हें जमानत मिलने से रोक सकता हो.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार बेंच ने कहा था कि "इस मामले में ऐसा कोई अपराध नहीं है जो इस शर्त के साथ आता है कि UAPA,POTA की तरह जमानत नहीं दी जा सकती. ये सामान्य IPC की धारा के अपराध हैं. ये शारीरिक/बॉडिली अपराध नहीं हैं, ये अदालत में दायर डॉक्युमेंट्स से जुड़े अपराध हैं."
बेंच ने यह भी कहा था कि ऐसे मामलों में, पुलिस कस्टडी की शुरूआती अवधि पूरी होने के बाद जांचकर्ताओं को बिना कस्टडी के अपनी जांच जारी रखने से कोई रोक नहीं सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून के अनुसार एक महिला प्रिफरेबल ट्रीटमेंट की हकदार है.
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