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थैंक्यू सेंसर बोर्ड! बहुत गंद मची है, ये नाम भी बदल डालिए

पहलाज निहलानी साहब, पंजाब की आन, बान और शान अब केवल आपके ही हाथों में हैं. 

अनंत प्रकाश
भारत
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सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने इससे पहले जेम्स बॉंड की फिल्म स्पेक्टर में बर्बरता से सीन काटे थे. (फोटो: TheQuint)
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सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने इससे पहले जेम्स बॉंड की फिल्म स्पेक्टर में बर्बरता से सीन काटे थे. (फोटो: TheQuint)
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पहलाज निहलानी साहब ने ‘उड़ता पंजाब’ के नाम से ‘पंजाब’ हटाने को कहा है. 89 सीन भी काटने को कहा है. और ठीक भी है. आखिर, निहलानी साहब पंजाब का नाम खराब होने से नहीं बचाएंगे तो कौन बचाएगा?

जब तक निहलानी साहब सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष नहीं बने थे तब तक फिल्म निर्देशकों ने जमकर गंद मचाया. देखिए ना! मदर इंडिया, सलाम बॉम्बे, चांदनी चौक, और बॉम्बे जैसी फिल्में बनाकर देश का पूरा नाम ही मिट्टी में मिला दिया.

खैर, जब जागो तब ही सवेरा. अब निहलानी साहब गद्दी पर बैठे हैं तो सब ठीक हो ही जाएगा.

उम्मीद है अब निहलानी साहब इन फिल्मों का भी नाम कुतर कर देश को और बेइज्जत होने से बचा लेंगे.

मदर इंडिया - महबूब खान जी को स्वर्ग से बुलाओ नाम चेंज होना है

(फोटो: TheQuint)

साल 1957 में महबूब खान साहब ने ‘मदर इंडिया’ फिल्म बनाई थी. फिल्म में गरीबी से जूझती हुई एक आदर्श मां को दिखाया गया है. अब बताओ कितनी गलत बात है. कोई अपने देश को गरीब दिखाता है?

सलाम बॉम्बे - इस नाम में तो डबल गलती है

(फोटो: TheQuint)

मीरा नायर की फिल्म ‘सलाम बॉम्बे’ मुंबई की सड़कों पर रहने वाले बच्चों की जिंदगी पर आधारित है. अब पहले तो इस फिल्म के नाम में बॉम्बे नहीं होना चाहिए था. दूसरी बात, मुंबई को बॉम्बे कैसे कह दिया. नाम बदलना ही चाहिए.

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बॉम्बे - भारत को ‘सांप्रदायिक’ दिखाती है फिल्म

(फोटो: TheQuint)

मणिरत्नम ने अपनी इस फिल्म में बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुद्दे पर बात की है. अब ये बताइए कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश को कोई फिल्म सांप्रदायिक रंग में कैसे रंग सकती है?

चांंदनी चौक - अल्का लांबा धरना क्यों नहीं देतीं?

(फोटो: TheQuint)

बी. आर. चोपड़ा साहब ने महाभारत बनाया था. इतने अच्छे आदमी थे. लेकिन गलती तो किसी से भी हो सकती है. अब बताइए मुस्लिम समाज के बारे में बताने वाली ये फिल्म आखिर क्यों बनाई? अरे, घर की बात घर में रहनी चाहिए थी ना. और, चांदनी चौक की विधायक अल्का लांबा को इसकी याद नहीं आई. धरना देना था उनको.

अब दिल्ली दूर नहीं - ये तो देशद्रोह वाली फिल्म लगती है

(फोटो: TheQuint)

राज कपूर साहब बड़े फिल्मकार थे. अनुराग कश्यप से भी बड़े. लेकिन उनसे भी तो गलती हो गई ना. अब उन्होंने एक फिल्म बनाई जिसमें कर्ज में दबे एक किसान को हत्या के फर्जी मामले में मौत की सजा हो जाती है. और एक पॉकेटमार, किसान की बेगुनाही के बारे में बताने के लिए पंडित नेहरू के पास जाने का फैसला करता है. अब बताओ ये भी भला कोई बात हुई.

मेरी तो निहलानी साहब से बस यही रिक्वेस्ट है कि इन फिल्मों का भी कुछ करिए. बड़ा नाम खराब करती हैं ये हमारे प्यारे भारत का. झोलाछाप डायरेक्टर बड़बड़ाएंगे. लेकिन आप फुरसत मिलते ही ये काम निपटा डालिए.

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