अभी भी कई अनकही #MeeToo कहानियां हैं 

बड़े पैमाने पर # मीटू अभियान इस समस्या का सिर्फ एक छोटा हिस्सा दिखाता है

मानसी दुआ
भारत
Updated:
# मीटू  अभियान
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# मीटू अभियान
( फोटो:द क्विंट )

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16 अक्टूबर 2017 को, एलिसा मिलानो के ट्वीट के बाद, यौन उत्पीड़न और हमले की शिकार हजारों महिलाओं ने सामने आकर अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर 'मी टू' लिखा. तब से, ट्विटर पर # मीटू टॉप ट्रेंड्स में से एक रहा है, जिसमें लगातार अपने दुखद अनुभवों को शेयर करने वाले लोगों की तादाद बढ़ रही है.

मीटू

एक दोस्त की राय: ‘’अगर सारी यौन उत्पीड़ित महिलाएं अपना स्टेटस ‘मीटू’ लिखतीं हैं, तो शायद हम लोगों को ये समझा पाएं कि ये समस्या कितनी बड़ी हैं.’’

एलिस्सा मिलानो

अगर आपके साथ कभी यौन उत्पीड़न या हमला हुआ है तो इस ट्वीट के जवाब में “मीटू’’ लिखिए.

हालांकि ये कहना सही होगा कि जिस वजह से इस ऑनलाइन कैंपेन को शुरू किया गया था उस लक्ष्य को इसने हासिल कर लिया है - लोगों को महिलाओं की यौन उत्पीड़न की समस्या से रूबरू कराना – क्योंकि ऐसी कई महिलाएं हैं जो हैशटैग का इस्तेमाल करना नहीं जानती हैं.

एक महिला ने स्लेट की मैलोरी ओर्टबर्ग से रेप पीड़ित के लिए #मीटू का इस्तेमाल जानने की कोशिश की.

मुझे गुस्सा आता है. सोशल मीडिया मेरे काम का एक बड़ा हिस्सा है, इसलिए मैं इसे पूरे दिन बंद नहीं रख सकती, पर मुझे नहीं समझ आता कि मैं क्या करूं. मैं बार-बार बाथरूम में जाकर रोती हूं. मेरे बॉस ने मेरे फेसबुक पेज पर पोस्ट किया कि कैसे उन्हें उन महिलाओं पर ‘गर्व’ है जिन्होंने अपनी कहानियां शेयर की. मेरे साथ जो हुआ है उसके बारे में मैंने ज्यादातर लोगों और मेरे परिवार को नहीं बताया है.  

महिला का कहना है कि वो एक हैशटैग के जरिए पीड़िता के रूप में बाहर नहीं आना चाहती, वो वास्तव में इसका जवाब देना चाहती है.

मैं लोगों को बताना चाहती हूं कि पीड़ितों को किसी को अपनी कहानी बताने की जरुरत नहीं है. मैं नहीं चाहती कि लोग इस आपसी दर्द को बांटने के लिए सिर्फ एक हैशटैग पोस्ट करके सुकून महसूस करें. मैं उन मर्दों को देखकर हैरान हूं. जिन्हें कभी इस मामले की गंभीरता का एहसास नहीं हुआ. मैं समझती हूं कि लोग पोस्ट क्यों करना चाहते हैं, लेकिन मुझे इससे गुस्सा आता है.  

उसका कहना है कि ये हैशटैग उसे महसूस करता है कि वो जिन भी हालातों से गुजरी वो सिर्फ एक हैशटैग बनकर रह गया है, ताकि वो सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर सके. उसने और्टबर्ग से पूछा कि क्या वो सोशल मीडिया पर बात करने के लिए बाध्य हैं, जिसपर उन्होंने कहा ‘’बिलकुल नहीं’’.

आपको अपनी कहानी तब तक शेयर नहीं करनी चाहिए जबतक आप खुद सही महसूस ना करें

अपनी #मीटू कहानी शेयर नहीं करने से आप ‘’कम बहादुर’’ या कम प्रेरणादायक नहीं बनेंगे, उन्होने बताया कि जिस तरह एक पीड़ित महिला अपने साथ हुए हादसे के बारे में बात नहीं कर सकती, उसी तरह ऐसे कई लोग हैं जो #मीटू लिखने के बावजूद अपनी कहानी नहीं बता सकते

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मैं तब तक इस बारे में बात नहीं कर सकती जब तक मैं शराब का नशा नहीं कर लेती लेकिन #मीटू और मैं खुद को दोषी मानती हूं कि ये मेरे साथ कई बार हुआ

# मीटू मैं वास्तव में अभी भी खुले तौर पर बात नहीं कर सकती हूं, मेरे साथ जो हुआ उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। #सपोर्टईचअदर

- मर्फी (@ कार्मेल222) अक्टूबर 16, 2017

#मीटू मैं अपनी कहानी शेयर करने के लिए तैयार नहीं हूं, पर ये उन लोगों को लिए जरूरी है जो बोल नहीं पाते

मैं अभी भी उस बारे में बात नहीं कर सकती ....सिर्फ ..#मीटू

40 साल बाद भी मैं उस बारे में ठीक से बात नहीं कर सकता #मीटू

#मीटू मैं आजतक इस बारे में बात नहीं कर सकती

मैंने इसे काफी सालों तक राज रखा. मैं अब भी लोगों की आंखों में देखकर इस बारे में बात नहीं कर पाती.

मैं तब तक इस बारे में बात नहीं कर सकती जब तक मैं शराब का नशा नहीं कर लेती लेकिन #मीटू और मैं खुद को दोषी मानती हूं कि ये मेरे साथ कई बार हुआ.

हालांकि कई महिलाएं अपनी कहानियां शेयर कर रही हैं, और दूसरी महिलाओं के साथ एकजुट होकर खड़ी हैं, फिर भी ऐसे कई लोग हैं जो इस बारे में बात करते हुए सहज नहीं हैं. एक चीज है जो इस तथ्य पर रोशनी डालती है कि उत्पीड़न की समस्या उससे कई ज्यादा बड़ी है जो हमें नजर आती है.

बड़े पैमाने पर # मीटू अभियान इस समस्या का सिर्फ एक छोटा हिस्सा दिखाता है

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Published: 06 Dec 2017,11:23 PM IST

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