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आज ही के दिन, ठीक तीन महीने पहले, 9 अक्टूबर को चार साल की इस बच्ची को नहीं पता था कि रेप या सेक्सुअल असॉल्ट क्या होता है.
पर उसी शाम उसके एक ‘राहुल भैया’ ने चॉकलेट या चाउमीन दिलाने के बहाने उसे बुलाकर बेरहमी से न सिर्फ उसका बलात्कार किया बल्कि उसके चेहरे पर भी ब्लेड के गहरे निशान छोड़ दिए.
उसे न सिर्फ अस्पताल में एक महीने से ज्यादा वक्त बिताना पड़ा बल्कि, पुलिस स्टेशन और कोर्ट जैसी जगहों के भी चक्कर लगाने पड़े, जहां हम वयस्क भी जाने से कतराते हैं.
आज उस दुर्घटना को तीन साल गुजर गए हैं, उसके चेहरे और शरीर के जख्म भी भरने लगे हैं, पर वह आज भी नहीं समझती कि उसे किस तरह की त्रासदी से गुजरना पड़ा है.
“नमस्ते मैडम जी,” जैसे ही मैं उसके झुग्गी नुमा घर में कदम रखती हूं वह खुशी से चिल्लाती है. मेरे कई बार वहां आने-जाने से वह मुझे पहचानने लगी है. “अब ये सब कुछ भूलने लगी है और पहले जैसी हो गई है,” बच्ची की मां बताती हैं.
पर यह बात पूरे परिवार के लिए नहीं कही जा सकती. उनके लिए सब कुछ पहले जैसा नहीं हुआ है. वे आगे बढ़ने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन बच्ची के भविष्य की चिंता उन्हें आज भी परेशान करती है. “अगर वह भविष्य में बच्चे को जन्म न दे सकी तो?” या “अगर इस दुर्घटना के बारे में जानकर किसी ने उससे विवाह न किया तो?” इस तरह के सवालों से यह परिवार आज भी जूझ रहा है.
पिछले एक महीने से बीमार बच्ची के दादा काम पर नहीं जा पा रहे हैं और उसके दिहाड़ी मजदूर पिता को दो महीने की छुट्टी (जो उन्होंने अपनी बेटी के इलाज के लिए ली थी) के बाद दोबारा काम नहीं मिल पा रहा है. परिवार के पास आय का कोई निश्चित स्रोत नहीं है.
द क्विंट ने बिटगिविंग के साथ मिल कर इस परिवार के लिए 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद जुटाई थी. साथ ही दिल्ली सरकार की ओर से डेल्ही विक्टिम कंपनसेशन स्कीम 2011 के तहत उन्हें 1 लाख का मुआवजा भी मिला है.
परिवार की मानें तो यह पैसा अभी बैंक में ही है और वे इसे बच्ची के इलाज और उसकी शिक्षा में ही खर्च करना चाहते हैं.
शारीरिक और मानसिक आघात से उबर रही बच्ची अब अपने घर के आस-पास खेलने के लिए बाहर जाने लगी है. पर झुग्गी के आस पास लगे गंदगी के अंबार उसके लिए मुश्किलें बढ़ा सकते हैं. अभी तक मल-मूत्र विसर्जन के लिए कोलोस्टोमी से बनाए रास्ते पर निर्भर बच्ची के लिए यह गंदगी इनफेक्शन का कारण बन सकती है.
बातचीत के बाद जब बच्ची के दादा मुझे झुग्गी के बाहर तक छोड़ने जाते हैं तो वह इलाके में आए पानी के टेंक की तरफ खेलने भाग जाती है. उसे नहीं पता कि यह गंदगी उसके लिए कितनी खतरनाक है.
घर बदलने के सवाल पर बच्ची के दादा कुछ उखड़े हुए नजर आते हैं. वे कहते हैं, “ये झुग्गियां सरकारी जमीन पर हैं, जब सरकार इन्हें यहां से हटा कर हमें दूसरी जगह घर देगी तभी हम यहां से जा सकेंगे.”
घटना के 90 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस अब तक चार्जशीट दायर नहीं कर सकी है, जबकि आरोपी को घटना के दो दिन बाद ही पकड़ लिया गया था और वह तिहाड़ जेल में बंद है.
16 दिसंबर 2015 को केशव पुरम थाना प्रभारी अनीता शर्मा ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा था कि अगले एक-दो दिनों में वे चार्जशीट दाखिल कर देंगी और आज करीब तीन सप्ताह बाद दोबारा पूछे जाने पर भी उनका जवाब जस का तस है.
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल घटना के अगले दिन अस्पताल जाकर बच्ची से मिली थीं, इस मामले में अब तक चार्जशीट दाखिल न किए जाने के बारे में पूछे जाने पर उनका दफ्तर केशव पुरम पुलिस को नोटिस जारी करने की बात कहता है.
चार्जशीट दाखिल करने में देरी के कानूनी पक्ष पर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिया हिंगोरानी स्थिति को साफ करती हैं.
केशव पुरम थाने की अधिकारी अनीता शर्मा का कहना है कि वे सोमवार 11 जनवरी को इस मामले में चार्जशीट दाखिल करेंगी. जबकि इस केस की एफआईआर 10 अक्टूबर 2015 को लिखी गई थी. घटना के दो दिन के भीतर आरोपी को गिरफ्तार कर लेने वाली केशव पुरम पुलिस की चार्जशीट फाइल करने में यह हीला हवाली के पीछे क्या सिर्फ पुलिसा की लेट-लतीफी है या कुछ और, फिलहाल कह पाना मुश्किल है.
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