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आज यानी देवोत्थान एकादशी को तुलसी-विष्णु विवाह करना बेहद शुभ माना जाता है, लेकिन तुलसी की शादी भगवान विष्णु की किसी मूर्ति के साथ नहीं बल्कि एक श्राप के कारण पत्थर बन चुके शालिग्राम से होती है.
शालिग्राम को भगवान विष्णु का ही एक रुप माना जाता है. ये विष्णु का कोई अवतार नहीं है, बल्कि श्राप है जिसके कारण उन्हे शालिग्राम का रूप मिला.
इस व्रत-उत्सव के पीछे जो कहानी चलन में है उसमें भक्ति, प्रेम और छल सबका मिला-जुला रूप दिखता है.
कहते हैं कि विष्णु को एक श्राप मानना पड़ा था, क्योंकि उन्होंने अपनी सबसे प्रिय भक्त वृंदा के साथ धोखा किया था. उन्होंने धोखे से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया था. वृंदा अपने पति से बहुत प्रेम करती थी. उसकी पत्नीधर्म की वजह से उसके पति जालंधर को युद्ध में कोई नहीं हरा सकता था. इसलिए भगवान शिव के साथ जालंधर को लड़ाई में हराने के लिए विष्णु ने जालंधर का ही रुप लेकर वृंदा को धोखा दिया.
बाद में धोखे के कारण वह काफी दुखी हुए और वृंदा के श्राप की मान रखने के लिए पत्थर में बदल गए.
इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने वृंदा की खुद के लिए भक्ति को देख कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में जन्म लोगी और मेरी प्रिय रहोगी.
इसलिए दांपत्य जीवन में खुशी बनाए रखने के लिए औरतें इस व्रत को रखती हैं.
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