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सुन्नी वक्फ बोर्ड ने गुरुवार, 17 अक्टूबर को यह कन्फर्म कर दिया कि अयोध्या टाइटल सूट में मध्यस्थता पैनल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में समझौता प्रस्ताव सौंपा गया था. उसके इस प्रस्ताव में कहा गया है तीन शर्तों पर वक्फ बोर्ड अयोध्या जमीन विवाद में अपना दावा छोड़ देगा.
समझौता प्रस्ताव में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा है कि वह 1992 में कार सेवकों की ओर से तोड़े जाने से पहले मौजूद मस्जिद की जमीन पर अपना दावा छोड़ देगा अगर
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील शाहिद रिजवी ने मीडिया में समझौते के प्रस्ताव की खबरें आने के बाद इसकी पुष्टि कर दी . इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया, दोनों में समझौते के प्रस्ताव की खबर छपी थी. रिजवी ने कहा कि मध्यस्थता के दूसरे दौर की बदौलत समझौते का यह नया प्रस्ताव आया था. मध्यस्थता की बात कोर्ट की सुनवाई के समांतर ही चल रही थी. रिजवी से जब यह पूछा गया कि जब अयोध्या टाइटल सूट को लेकर सुनवाई पूरी हो चुकी हो और जजमेंट पांच जजों की बेंच ने सुरक्षित रख लिया हो तो समझौता प्रस्ताव के लिए देर नहीं हो चुकी है. इस पर उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता ऐसा है. अगर काम करना चाहें तो आखिरी वक्त में भी हो सकता है. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि समझौते की शर्तें क्या हैं.
पहले इस तरह की रिपोर्ट आई थी कि अयोध्या टाइटल से जुड़े प्रमुख पक्ष रामजन्म भूमि न्यास और 'रामलला' के प्रतिनिधि समझौता प्रस्ताव का हिस्सा नहीं हैं.
अयोध्या टाइटल सूट में विवादित जमीन पर हक का फैसला होना है. इस जमीन पर सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के हक पर कोर्ट को फैसला देना है.
द क्विंट को सूत्रों से पता चला है कि एक संगठन के तौर पर निर्मोही अखाड़ा समझौते के प्रस्ताव पर राजी नहीं है. अखाड़े के सिर्फ एक महंत ने इसकी मंजूरी दी है.
अगर ये सभी पक्ष समझौते के लिए राजी नहीं होते हैं तो इसे लागू करना मुश्किल होगा. यह भी साफ नहीं है कि सुनवाई के लिए इतना वक्त देने और कार्यवाही के दौरान समझौता प्रस्ताव को सामने न लाने को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट इसे स्वीकार करेगा या नहीं. हालांकि यह खबर भी थी कि सुनवाई करने वाले जज गुरुवार को मध्यस्थता पैनल के प्रस्ताव पर विचार कर रहे थे.
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