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उरी हमले में क्विंट की पड़ताल में कुछ चौंकाने वाली बातें निकलकर सामने आ रही हैं. क्विंट की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि आतंकवादियों को उरी कैंप के अंदर दाखिल होने में माल ढोने वालों दो लोगों ने मदद की थी. इन्हें कैंप में आने-जाने की पूरी छूट थी.
उरी अटैक में हो रही अॉफिशियल जांच की जानकारी रखने वाले विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, बोझ ढोने का काम करने वाले जैश-ए-मोहम्मद के प्रति सहानुभूति रखने वाले हो सकते हैं. सूत्रों का मानना है कि उरी अटैक में आर्मी की ओर से अॉपरेशनल और कमांड लेवल पर गलती हुई थी.
लेकिन सूत्रों ने आतंकवादियों द्वारा ब्रिगेड हेडक्वार्टर में दाखिल होने के लिए इस्तेमाल किए गए रास्ते के बारे में बताने से इनकार कर दिया.
6वीं बिहार रेजीमेंट को 10वीं डोगरा रेजीमेंट की जगह पर उरी कैंप में तैनात किया गया था. डोगरा रेजीमेंट को किसी दूसरे कैंप भेज दिया गया था. वहीं सिख लाइट इनफेंट्री पहले की तरह ही कैंप में मौजूद थी.
हमले में शहीद होने वाले ज्यादातर सैनिक बिहार रेजीमेंट के थे. बिहार रेजीमेंट के सैनिकों को बैरक में भेजे जाने से पहले तंबुओं में ठहराया गया था. आतंकवादियों द्वारा तंबुओं पर ज्वलनशील पदार्थों का उपयोग करने से गहरी नींद में सो रहे सैनिक फंस गए. इसी आग के चलते बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ.
हमले के बाद ज्यादातर माल ढोने वालों को नौकरी से हटा दिया गया है, लेकिन कुछ विश्वस्त लोगों को अभी भी काम की इजाजत दी गई है.
अपुष्ट जानकारी के मुताबिक, उरी हमले के वक्त कमांडिंग ब्रिगेडियर कैंप से बाहर दौरे पर थे. वहीं कैंप मेस में हुई एक पार्टी के चलते सुरक्षाबलों की सतर्कता में भी कमी थी.
उरी के कुछ लोग कैंप की चेकपोस्ट से केवल 150 मीटर दूर अपनी दुकान लगाते हैं. उन्हीं में से एक हाजी असादुल्लाह लोन के मुताबिक,
आर्मी ने हमले के बाद उरी में गाड़ियों की आवाजाही पर लगाम लगाई है. लोगों की शिकायत है कि हमले के बाद टूरिज्म, ट्रैवल और व्यापार पर बुरा असर पड़ा है. हालांकि वो मानते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा सबसे ऊपर है.
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