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दिल्ली दंगा (Delhi Riots 2020) मामले में आरोपी बनाए गए जेएनयू (JNU) के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद (Umar Khalid Bail) की बेल अपील मंगलवार 18 अक्टूबर को दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi Highcourt) ने खारिज कर दी. उमर खालिद की बेल अपील खारिज करते हुए बेंच ने उमर खालिद और 2020 में हुए दिल्ली दंगों पर कुछ अहम टिप्पणियां की हैं. इन टिप्पणियों में उमर खालिद के आरोपी होने पर जोर दिया गया है. बेल ऑर्डर में कोर्ट की अहम टिप्पणियां हम आपको बताते हैं.
कड़कड़डूमा कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए अदालत ने कहा कि "यह अदालत मानती है कि उमर खालिद के खिलाफ आरोप "प्रथम दृष्टया सच" हैं और इसलिए, यूएपीए की धारा 43 डी (5) द्वारा बनाया गया प्रतिबंध अपीलकर्ता को जमानत देने के विचार के संबंध में पूरी तरह से लागू होता है.
"उमर खालिद का नाम साजिश की शुरुआत से लेकर बाद के दंगों तक में बार-बार आता है. बेशक, वह जेएनयू के मुस्लिम छात्रों के व्हाट्सएप ग्रुप का सदस्य रहे हैं" - दिल्ली हाई कोर्ट.
उन्होंने अलग-अलग तारीखों पर जंतर मंतर, जंगपुरा कार्यालय, शाहीन बाग, सीलमपुर, जाफराबाद और भारतीय सामाजिक संस्थान में विभिन्न बैठकों में भाग लिया. वह डीपीएसजी समूह के सदस्य थे - दिल्ली हाई कोर्ट.
उमर खालिद के अमरावती भाषण पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि, "क्रांति का आह्वान उन लोगों से परे कई लोगों को प्रभावित कर सकता है जो स्पष्ट रूप से मौजूद थे, यही कारण है कि इस अदालत को रोबेस्पियरे का उल्लेख करना उपयुक्त लगता है, जो फ्रांसीसी क्रांति के अग्रदूत थे." - दिल्ली हाई कोर्ट."
"इस अदालत का विचार है कि यदि अपीलकर्ता ने क्रांति से जो मतलब है उसके लिए मैक्सिमिलियन रोबेस्पियरे का उल्लेख किया था, तो उसे यह भी पता होना चाहिए कि हमारे स्वतंत्रता सेनानी और पहले प्रधान मंत्री के लिए क्रांति का क्या मतलब है"-दिल्ली हाई कोर्ट.
"तथ्य यह है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि आजादी के बाद लोकतंत्र ने क्रांति को गैर-जरुरी बना दिया है और इसका मतलब रक्तहीन बदलाव के बिल्कुल उलट है" - दिल्ली हाई कोर्ट.
"क्रांति अपने आप में हमेशा रक्तहीन नहीं होती है, यही कारण है कि इसे उपसर्ग के साथ प्रयोग किया जाता है - एक 'रक्तहीन' क्रांति. इसलिए, जब हम "क्रांति" अभिव्यक्ति का इस्तेमाल करते हैं, तो यह जरुरी नहीं है की यह रक्तहीन हो"- दिल्ली हाई कोर्ट.
"यह नियोजित प्रोटेस्ट राजनीतिक संस्कृति या लोकतंत्र में "सामान्य प्रोटेस्ट नहीं" था, बल्कि एक अधिक विनाशकारी और हानिकारक परिणाम के लिए था: दिल्ली उच्च न्यायालय"
सभी सह-आरोपियों के बीच समानता का एक स्ट्रिंग मौजूद है. यह साबित है कि उमर खालिद और शरजील इमाम दोनों एक ही व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्य हैं. यह भी एक स्वीकृत स्थिति है कि दोनों ने जंतर-मंतर विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया" - दिल्ली हाई कोर्ट
"विभिन्न संरक्षित गवाहों के बयान हैं, जो पीएफआई के कार्यालय में आयोजित एक बैठक सहित कई बैठकों में इन दोनों की मौजूदगी की बात करते हैं. यह अदालत यूएपीए के तहत जमानत के स्तर पर गवाहों के बयानों की सत्यता का परीक्षण नहीं कर सकती"- दिल्ली हाई कोर्ट
"उमर खालिद शरजील इमाम सहित अन्य सह-आरोपियों के लगातार संपर्क में थे, जिन्हें इस साजिश का मुखिया कहा जा रहा है. यह राय बनाना मुश्किल है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप को प्रथम दृष्टया साबित नहीं करने के लिए उचित आधार नहीं हैं" - दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली दंगों का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि, "ऐसे काम जो भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करते हैं और सांप्रदायिक सद्भाव में खाई पैदा करते हैं और लोगों के किसी भी वर्ग में आतंक पैदा करते हैं, सामाजिक-ताने-बाने को परेशान करते हैं, वह भी एक आतंकवादी कार्य हैं" - दिल्ली हाई कोर्ट
"ये विरोध और दंगे प्रथम दृष्टया दिसंबर, 2019 से फरवरी, 2020 तक आयोजित हुई षडयंत्रकारी बैठकों में सुनियोजित प्रतीत होते हैं." - दिल्ली हाई कोर्ट
उमर खालिद के भाषण पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि, "जिस तरह से प्रशासन ने शुरू में अपीलकर्ता के भाषण के लिए अनुमति को खारिज कर दिया और उसके बाद उसी दिन भाषण कैसे दिया गया, यह कुछ ऐसा है जो अभियोजन पक्ष के आरोप को विश्वसनीयता देता है." - दिल्ली हाई कोर्ट
कोर्ट ने अपनी सभी टिप्पणियों के बाद अंत में कहा कि, "यहां ऊपर कही गई कोई बात मामले के गुण-दोष (मेरिट) पर किसी राय की अभिव्यक्ति के समान नहीं होगी." - दिल्ली हाई कोर्ट
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