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बिहार सिपाही भर्ती परीक्षा की तस्वीर देश के यूथ की तकदीर दिखाती है

NRC-CAA,जेएनयू-जामिया के प्रदर्शनों के बीच देश के एक और कोने की ये तस्वीर देखिए. ये तस्वीर बिहार के हाजीपुर की है

अभय कुमार सिंह
भारत
Updated:
बिहार सिपाही परीक्षा की तस्वीर देश में यूथ की तकदीर बयां करती है
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बिहार सिपाही परीक्षा की तस्वीर देश में यूथ की तकदीर बयां करती है
(फोटो: अर्निका काला)

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

NRC-CAA,जेएनयू-जामिया के प्रदर्शनों के बीच देश के एक और कोने की ये तस्वीर देखिए. ये तस्वीर बिहार के हाजीपुर की है. ये छात्र बेसब्र दिख रहे हैं. इन्हें 12 जनवरी को बिहार सिपाही भर्ती परीक्षा में जाना था,सेंटर दूर था, ट्रेन में किराया थोड़ा सस्ता होता है तो ट्रेन के ही जरिए जाने की कोशिश कर रहे थे. बिहार पुलिस में सिपाही के करीब 12 हजार पदों के लिए 12 लाख से ज्यादा आवेदन आए थे और सेंटर बिहार के अलग-अलग जिलों में रखा गया था.

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जान हथेली पर रखकर परीक्षा देने जा रहे कैंडिडेट

आवेदक जान हथेली पर रखकर परीक्षा देने जाने को तैयार हैं. आखिर ऐसा हो क्यों ना! करियर का सवाल है, किसी भी हाल में परीक्षा तो देनी ही है. ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब शेयर हो रही हैं और छात्रों की आवाज सोशल मीडिया पर उठाने वाला संगठन युवा हल्ला बोल भी इसे पुरजोर तरीके से उठा रहा है.

शायद एक दो दिन बाद शेयर होनी बंद हो जाएं लेकिन मोतिहारी के रहने वाले राजन कुमार का परिवार तो इसे कभी नहीं भूल सकेगा. क्योंकि यही परीक्षा देने जा रहे राजन कुमार की गया रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 6 पर ट्रेन की चपेट में आकर मौत हो गई.

ये कहानी सिर्फ बिहार की नहीं है

ये सिर्फ बिहार की बात नहीं है. देशभर में युवा पढ़ाई और नौकरी के लिए धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. अभी एक दो महीने पहले ही राजधानी दिल्ली में सैकड़ों विकलांग युवाओं ने कई हफ्तों तक प्रदर्शन किया. ठंड और प्रदूषण के बावजूद खुले आसमान के नीचे दिन रात बैठे रहे..उनका कहना था कि 2018 में 60,000 पदों के लिए रेलवे भर्ती निकली थी. इनका कहना था कि ऐसे ढेर सारे परीक्षार्थी थे जिनका चयन हो गया लेकिन नौकरी नहीं मिली...आज तक इनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ है.

मध्य प्रदेश पटवारी भर्ती परीक्षा हुई, रिजल्ट आया लेकिन भर्ती आजतक नहीं हुई. राजस्थान में आरपीएसएसी परीक्षा हुई लेकिन छात्रों के साथ फिर वही बर्ताव. यूपी में पीसीएस के छात्रों का दर्द जाकर सुनिए पता चलेगा.

आप जिस राज्य में जाइए भर्ती परीक्षाओं की क्रोनोलॉजी यही पाएंगे. एक तो वैकेंसी समय पर नहीं निकलती, निकलती है तो परीक्षा होने में समय लग जाता है, फिर छात्र एडमिट कार्ड से लेकर परीक्षा सेंटर तक पहुंचने की मुसीबतों को झेलते हुए किसी तरह परीक्षा देते हैं और पास करते हैं तो फिर पता लगता है कि पेपर लीक हो गया या धांधली हो गई. रिजल्ट आ भी गया तो भर्ती कब होगी, इसकी कोई गारंटी नहीं....

क्या छात्र-युवा प्राथमिकता नहीं हैं?

कुल मिलाकर जिस में देश की आबादी में सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की है, वहां युवाओं के मुद्दों की कोई सुनवाई नहीं किसी भी सियासी पार्टी के लिए छात्र प्राथमिकता नहीं है.

हर नेता युवाओं को देश का भविष्य बताता है..लेकिन इस भविष्य को संवारने में किसी की रुचि नहीं है. .सरकार चाहे बीजेपी की हो कांग्रेस की हो या किसी और की...युवाओं के 'मजबूत कंधे' देश और खुद उन पार्टियों के मुद्दे का भार उठाते रहे हैं..लेकिन बात जब युवाओं की समस्या की आती है तो कोई सुनवाई नहीं है.

क्या इन्हें प्रदर्शन करने में मजा आ रहा है?

अब आप CAA-NRC के खिलाफ देश की कई यूनिवर्सटियों में हो रहे प्रदर्शनों को ही देख लीजिए. छात्र सड़कों पर बैठें, लाठियां खा रहे हैं, पुलिस कैंपस में घुस-घुसकर छात्रों को पीट रही है लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं है. क्या छात्रों को धरना प्रदर्शन करने में मजा आता है? नहीं, छात्र धरना प्रदर्शन तब करते हैं जब उन्हें लगता है कि उनके भविष्य को लेकर सवाल उठ खड़ा हुआ है. वो प्रदर्शन तब करते हैं जब उनकी कोई सुनवाई नहीं होती.

JNU का असली मुद्दा गुम हो चुका है. सारी बात इसपर हो रही है कि हिंसा किसने की, कोई ये नहीं बात करता कि JNU में फीस वृद्धि को वापस लेने की छात्रों की मांग का क्या हुआ?

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 13 Jan 2020,11:16 PM IST

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