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सिख समुदाय की शीर्ष प्रतिनिधि संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) ने प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है. सिख समुदाय की ओर से बोलते हुए, SGPC ने घोषणा की कि "भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) देश में अनावश्यक है".
SGPC ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान 'अनेकता में एकता' के सिद्धांत को मान्यता देता है.
उच्च स्तरीय बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए हरजिंदर सिंह धामी ने कहा, ''समान नागरिक संहिता को लेकर देश में अल्पसंख्यकों के बीच यह आशंका है कि यह संहिता उनकी पहचान, मौलिकता और सिद्धांतों को चोट पहुंचाएगी.''
समान नागरिक संहिता पर SGPC का विरोध कई मुस्लिम निकायों द्वारा दिए जा रहे तर्कों के समान ही है, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों की चिंताओं को दर्शाता है.
समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर एसजीपीसी ने सिख बुद्धिजीवियों, इतिहासकारों, विद्वानों और वकीलों की एक उप-समिति का गठन किया है. अपनी प्रारंभिक टिप्पणियों में, समिति ने समान नागरिक संहिता को "अल्पसंख्यकों के अस्तित्व, उनके धार्मिक संस्कारों, परंपराओं और संस्कृति के दमन" के रूप में करार दिया है.
इस समिति में SGPC के महासचिव भाई गुरचरण सिंह ग्रेवाल, वरिष्ठ सिख वकील पूरन सिंह हुंदल, SGPC सदस्य एडवोकेट भगवंत सिंह सियालका, एडवोकेट परमजीत कौर लांडरां, बीबी किरनजोत कौर, प्रोफेसर कश्मीर सिंह, डॉ. इंद्रजीत सिंह गोगोआनी, डॉ. परमवीर सिंह और डॉ. चमकौर सिंह शामिल हैं.
हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि ''बानी बाना (गुरबानी और पारंपरिक सिख पोशाक), बोल बाले (शब्द या विचार जो ऊंचे और सच्चे हैं), सिद्धांतों, परंपराओं, मूल्यों, जीवन शैली, संस्कृति, स्वतंत्र अस्तित्व और सिखों की विशिष्ट पहचान को कोई चुनौती कभी भी स्वीकार नहीं की जा सकती". उन्होंने साथ ही कहा कि "सिख मर्यादा को सांसारिक कानून द्वारा परखा नहीं जा सकता".
धामी ने जोर देकर कहा, "इसलिए, सिख समुदाय यूसीसी का विरोध करता है." उन्होंने यह भी बताया कि 21वें विधि आयोग ने भी यूसीसी को न तो वांछनीय और न ही व्यवहारिक बताते हुए खारिज कर दिया था.
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