advertisement
उन्नाव रेप सर्वाइवर छाया* और उसके वकील महेंद्र के सड़क हादसे को करीब पांच महीने हो चले हैं. एक ट्रक ने उनकी गाड़ी को सामने से जोरदार टक्कर मारी थी. गंभीर रूप से घायल घायलों को इलाज के लिए दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था. उस हादसे में वकील ने अपनी याददाश्त खो दी. उसके परिवार का कहना है कि वो अब तक उन्हें नहीं पहचानता.
उम्मीद है कि उन्नाव रेप सर्वाइवर के मामले में स्पेशल कोर्ट 16 दिसंबर को फैसला सुनाएगी. फैसला आने से पहले द क्विंट ने वकील के परिवार वालों से बातचीत की.
उन्नाव रेप सर्वाइवर ने जून 2017 को शिकायत दर्ज कराई थी कि बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर, उसके भाई अतुल सिंह और कई लोगों ने मिलकर उसे अगवा किया और एक हफ्ते से ज्यादा समय तक उसका यौन शोषण करते रहे. जोर देने के बावजूद पुलिस ने अपनी चार्जशीट में सेंगर का नाम शामिल नहीं किया, जो इस वारदात का मुख्य आरोपी था.
फिर छाया के पिता को धमकी देना सेंगर के गुर्गों की नियमित दिनचर्या बन गई थी. आरोप तो ये भी है कि सेंगर के गुर्गों ने पीड़िता के पिता को गांव में एक पेड़ से बांधकर बुरी तरह पिटाई की. ये वारदात अप्रैल 2018 की है. पुलिस में इसकी भी शिकायत दर्ज कराई गई. लेकिन इस बार तो पुलिस का रवैया हैरान कर देने वाला था. सेंगर और उसके गुर्गों के बजाय पुलिस ने शिकायत करने वाले को ही गिरफ्तार कर लिया. उसपर गैरकानूनी हथियार रखने का आरोप लगाया गया.
पुलिस के जुल्म वो बर्दाश्त नहीं कर पाया और कुछ दिनों बाद पुलिस हिरासत में ही उसकी मौत हो गई. पुलिसि की कार्रवाई यहीं नहीं थमी. कुछ दिनों बाद पुलिस उसके भाई (पीड़िता के चाचा) को उठा ले गई. उसपर आरोप था कि नवंबर 2018 को उसने बीजेपी विधायक के भाई की पिटाई की थी.
पुलिस हिरासत में अपने दोनों बेटों पर हो रहे लगातार जुल्मों को उनकी मां देख न सकी. बीमार पहले से थी, फरवरी 2019 में दम तोड़ दिया.
पिता नहीं रहे, तो लड़की के परिवार की उम्मीदें उसके चाचा पर टिकी थीं. वो भी जुलाई 2019 से रायबरेली की जेल में बंद है. उसे 19 साल पुरानी हत्या का आरोपी बनाया गया है. उस समय से लड़की का परिवार नियमित रूप से जेल में उससे मिलने जाता है.
उस रोज भी लड़की अपनी दो चाचियों के साथ अपने वकील महेंद्र की गाड़ी में चाचा से मिलने जा रही थी, जब सामने से आ रहे एक ट्रक ने उनकी गाड़ी को जोरदार टक्कर मारी. 28 जुलाई को हुए इस हादसे में दोनों चाचियों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया. बुरी तरह घायल पीड़िता और उसके वकील को दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया. लड़की की हालत तो सुधरी, लेकिन वकील की हालत सुधरने से कोसों दूर है.
“अब भाई का कुछ सुधार है. वो आंख खोल रहे हैं, हाथ-पैर हिला रहे हैं. अभी बोल नहीं पा रहे हैं.” महेंद्र के छोटे भाई बालेंद्र सिंह ने बताया.
महेंद्र अब भी दिल्ली के एम्स में भर्ती है. यहां उसके मां-पिता, बड़ा बेटा और पत्नी उसकी देखभाल करते हैं. सिंह का कहना है कि सरकार उसके इलाज और परिवार के रहने-खाने का खर्च उठा रही है. उन्हीं की मदद से वो वीडियो कॉल के जरिए अपने छोटे भाई को देख सका.
“आंख खोल के देखते तो हैं, लेकिन कैसे बताएं कि हमें पहचानते हैं या नहीं. पता नहीं. मान लो जब तक आवाज ना निकली, तब तक कैसे यकीन से कह दें कि हमें पहचानते हैं.”
“उसके दोनों पैर, दाहिने हाथ, रिब्स और सिर के पिछले हिस्से में चोट आई है.” अपने भाई की हालत बताते हुए भी सिंह चौकन्ना है. धीमी आवाज में कहता है कि उसने अपने भाई को रोते हुए देखा है. “बीच में एक-दो बार, आंख से आंसू निकलते हैं, तो इससे लगता है कि शायद तकलीफ में है.”
महेंद्र का असिस्टेंट विमल अक्सर उसे देखने उन्नाव से दिल्ली आता है. उसने द क्विंट को बताया, “मुझे नहीं लगता कि वो पूरी तरह ठीक हुआ है. जब वो किसी जान-पहचान वाले को देखता है तो रोने लगता है. आप महसूस कर सकते हैं कि वो तकलीफ में है, लेकिन सिर्फ उसके हाव-भाव से. मुझे नहीं लगता कि वो अपने आस-पास लोगों को पहचानता भी है.”
28 जुलाई को इस हादसे के बाद से उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर वकील के परिवार को सुरक्षा मुहैया कराई गई है. अगस्त के पहले हफ्ते से उसके घर के बाहर CRPF के चार जवान तैनात रहते हैं.
“वो हमें सुरक्षा दे रहे हैं. जब हम सुरक्षित हैं तो हमें क्या परेशानी हो सकती है?” सिंह भोलेपन से पूछता है. इसके अलावा महेंद्र की पत्नी को उत्तर प्रदेश सरकार ने मुआवजे के तौर पर पांच लाख रुपये दिए हैं.
“उन दिनों हम काफी डरे हुए थे. अच्छा हुआ कि आखिरकार उसने अपनी आंखें खोलीं.” सिंह ने बताया कि डॉक्टरों का कहना है कि वो ठीक तो हो जाएगा, लेकिन लम्बा समय लगेगा. महेंद्र अभी ना तो लिख सकता है, ना बोल सकता है और ना ही इशारा कर सकता है.
“उसे पाइप के जरिये खाना दिया जाता है – दूध, जूस और पानी. वो सॉलिड फूड नहीं खा सकता.” सिंह ने बताया.
28 जुलाई को इस हादसे के बाद से सिंह पूरे परिवार की देखभाल कर रहा है. “अब सारी जिम्मेदारियां मेरे ऊपर हैं. उसके छोटे बेटे की भी देखभाल करता हूं, जो कानपुर में है. इसके अलावा खेत, घर खर्च और घर से जुड़े हर मामले ख्याल रखता हूं.” ये बताते हुए उसके चहरे पर हल्की मुस्कान थी.
16 दिसंबर को आने वाले फैसले से वो उदासीन है. उसका कहना है, “कोर्ट का फैसला क्या होगा, उसके बारे में हम क्या बता सकते हैं? हमें नहीं मालूम कि हादसे के पीछे किसकी साजिश थी. मुझे सिर्फ इस बात की चिन्ता है कि भाई जल्द और पूरी तरह ठीक हो जाए. और ये अभी दूर की कौड़ी लगती है.”
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)