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भारत के 9वें प्रधानमंत्री पीवी नरसिंंह राव के जन्मदिन (28 जून) पर वो दो कहानियां,जो बताती हैं कि आलोचकों के प्रति वो कितने सहिष्णु थे.
आज से 20-25 साल पहले ये सोच पाना मुश्किल था, एक संकोच था कि मीडिया में देश के प्रधानमंत्री की सेहत पर खबर बनाई जा सके और प्रधानमंत्री का स्वास्थ्य सार्वजनिक बहस का विषय हो सके.
1994-95 में बिजनेस स्टैंडर्ड ने इस संशय को तोड़ा और एक दिन ये खबर पहले पन्ने पर ब्रेक की कि प्रधानमंत्री नरसिंह राव को हल्के पैरालिसिस टी.आई.ए (Transient Intermittent Ailment) की तकलीफ हुई और वो एम्स में भर्ती हुए हैं.
इस बात को छिपाकर रखा गया था. जाहिर है, सरकार ने इस खबर को गलत बताया. तब के प्रधान सूचना अधिकारी एस. नरेंद्र ने हमें SPG की लॉगबुक दिखाई. हम पूरे दिन और देर रात तक बहस करते रहे कि खंडन कैसे छापें. हमने उन्हें साफ कहा कि अगर खंडन छापेंगे, तो हम साथ में कहेंगे कि हम अपनी खबर पर कायम हैं और हम कुछ और जानकारी भी दे देंगे, जो सरकार और प्रधानमंत्री को और भी चुभेंगी.
आखिरकार पीआईओ (PIO) मान गए और खंडन छपवाने की जिद छोड़ दी. मेरा खयाल है कि तब उन्होंने पीएमओ या खुद प्रधानमंत्री को हमारी पोजिशन बताई होगी और प्रधानमंत्री को लगा होगा कि हमारी खबर सही है और इस मसले को यहीं छोड़ देना बेहतर होगा.
इस घटना को इस संदर्भ में देखिए.
हमारी खबर पर उनका दफ्तर हमारे सम्पादक टीएन नैनक या मालिक अवीक सरकार तक नहीं गया. उनके अधिकारियों ने हमसे यानी (रिपोर्टर मैं और मेरे ब्यूरो चीफ डेविड देवदास) से सारी बातचीत की. शायद नरसिंह राव का हर चीज को तौलने का एक अलग तराजू था- वो ये कि क्या इस बात से मुझे कुछ फर्क पड़ता है और क्या इस बात का कोई बड़ा असर है. इसलिए अपने कार्यकाल में उन्होंने कई बड़े तूफानों को शांत रहकर झेल लिया.
दूसरा किस्सा ये बताता है कि एक प्रशासक के रूप में नरसिंह राव, छोटी हो या बड़ी बात, किस सधे ढंग से पेश आते थे. उन्होंने 1996 के आम चुनावों के पहले जब कैबिनेट का आखिरी बड़ा फेरबदल किया, तब उसमें कई विवादास्पद चेहरे शामिल किए गए.
एक साहब थे मतंग सिंह, जो राज्यमंत्री बनाए गए. बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर में लिखा गया कि मतंग सिंह पावर ब्रोकर हैं और कथित रोल माफिया हैं. ये खबर मतंग सिंह को चुभी. एक-दो दिनों के बाद आधी रात को एक फोन आया और फोन पर मुझे कुछ यूं धमकाया गया.
मैं इतना थका था कि फोन कटने के बाद मैं सो गया. लेकिन सुबह उठा, तो सिट्टी-पिट्टी गुम थी. अपने संपादक से, मित्रों से और एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से सलाह के बाद तय हुआ कि इस घटना की जानकारी लिखित में प्रधानमंत्री को दे दी जाए. तब हमें शक था कि ये फोन मतंग सिंह ने किया या कराया हो. तब प्रधानमंत्री मध्य प्रदेश के चुनावी दौरे पर थे और डेविड कवरेज के लिए गए हुए थे. उन्होंने ये चिट्ठी प्रधानमंत्री को सौंप दी.
कुछ ही घंटों बाद गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारी हमारे दफ्तर और घर पहुंचे. मुझे सुरक्षा देने के लिए पुलिसकर्मी तैनात करने की बात कही. हमने विनम्रता से ये पेशकश ठुकरा दी. साफ है कि राव साहब का ध्यान इस बात पर नहीं था कि हमारा कवरेज निगेटिव था या पॉजिटिव या हमें उपदेश दिया जाए कि हम कैसे पेश आएं.
वो वाकई नरसिंह थे, इसलिए उनका रिस्पॉन्स भी एक खास अदा के साथ होता था. अब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो सब मानते हैं कि राव साहब 1991-96 में जो कर गए, वो युगांतरकारी था.
बहरहाल, मेरे एक साथी पत्रकार की मतंग सिंह से जान-पहचान थी. मैं उनके साथ मतंग सिंह से मिलने उनके घर चला गया. थोड़ी तान के साथ मतंग ने मान लिया कि फोन उन्होंने ही किया था. दोस्ती हो गई. उन्होंने लड्डू खिलाए. लेकिन तभी मैंने एक बेवकूफी कर दी. मैंने मतंग को अपना बिहारी भाई बोल दिया. मतंग चिढ़कर बोले, “मैं बिहारी नहीं, असम का हूं ,रॉयल फैमिली का हूं.”
अभी कुछ समय पहले मतंग कई मामलों में फंसे- सारधा कांड, पूर्व पत्नी से मुकदमेबाजी और एक टीवी चैनल के घपले का इल्जाम. फिलहाल वो सारधा कांड में आरोपी हैं और सलाखों के पीछे हैं.
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