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UP: वुमन हेल्पलाइन कर्मचारी फिर धरने पर,14 महीने से नहीं मिला वेतन

पिछले 14 महीने से नहीं मिला है वेतन, नौकरी से भी धोना पड़ा है हाथ

अवंतिका तिवारी
भारत
Published:
पिछले 14 महीने से नहीं मिला है वेतन, नौकरी से भी धोना पड़ा है हाथ
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पिछले 14 महीने से नहीं मिला है वेतन, नौकरी से भी धोना पड़ा है हाथ
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ईको पार्क में 17 अगस्त की सुबह से महिला हेल्पलाइन 181 में काम करने वाली महिलाएं एक बार फिर धरने पर हैं. मामला 351 कर्मचारियों को पिछले 14 महीने से वेतन नहीं मिलने का है. महिलाओं ने इससे पहले 23 जुलाई 2020 को भी धरना दिया था. लेकिन उन्हें अधिकारियों ने 7 दिन में वेतन मिल जाने के आश्वासन के साथ उठा दिया था. ऐसे आश्वासन उन्हें पहले भी कई बार मिल चुके हैं, लेकिन नतीजा हमेशा वही रहा. यूपी सरकार ये बोलकर पल्ला झाड़ रही है कि मामला प्राइवेट कंपनी का है, वहीं कंपनी सरकार से फंड नहीं मिलने का तर्क दे रही है.

क्या है पूरा मामला?

यूपी में महिला हेल्पलाइन 181 में काम करने वाली करीब 350 महिलाएं पिछले एक साल से अपने वेतन का इंतजार कर रही हैं. अधिकारियों, मजिस्ट्रेट से लेकर विधायक तक को ज्ञापन दिए, सभी ने हर बार एक ही बात कही, “हफ्ते भर में वेतन आ जाएगा.” वेतन नहीं आया.

जून 2019 से महिलाओं को वेतन नहीं मिला था और जून 2020 में महिलाओं को बिना कोई कारण बताए “डिस्कंटिन्यू लेटर” दे दिया. मतलब अब इन महिलाओं की नौकरी भी गई. हफ्ते भर की रट लगाने वाले प्रशासन के खिलाफ धरनारत इन महिलाओं का कहना है कि,

“अब हम हफ्ते भर घर पर बैठकर इंतजार करने की जगह यहीं धरना स्थल पर वेतन का इंतजार करेंगे!”

बनारस की रहने वालीं दीपशिखा बताती हैं कि,

“सरकार की कन्या सुमंगला, बेटी बचाओ, उज्जवला योजना जैसी योजनाएं पिछले कुछ सालों में आईं उसमें हमने खुद के पैसे लगाकर काम जारी रखा,. जुलाई 2019 में बालिका सुरक्षा अभियान में रेस्क्यू टीम की गाड़ी के डीजल तक के लिए हमने अपने पैसे खर्च किए. वो भी तब, जब हमें वेतन मिलना बंद हो चुका था. ”
दीपशिखा

प्रोजेक्ट में केंद्र सरकार की भूमिका

केंद्र सरकार की भूमिका इस प्रोजेक्ट में “One Stop Centre” के रूप में शुरू हुई. पहले जो टीम सिर्फ रेस्क्यू तक सीमित थी, अब वो महिलाओं के लिए ये तमाम सुविधाएं भी देने लगी थी.

  • शेल्टर होम
  • लीगल हेल्प
  • स्किल डेवेलपमेंट
  • किचन
  • लाइब्रेरी
  • FIR रूम
  • एडमिन रूम
  • मेंटल काउंसलिंग

निजी कंपनी और सरकार के बीच पिस रहीं हैं महिलाएं

कोरोना महामारी ने अच्छे अच्छों की आर्थिक स्थिति खराब कर दी है. सरकार 20 लाख करोड़ के पैकेज और PM Cares फंड की दुहाई तो देती है, लेकिन इन महिलाओं की गुहार सुनने वाला कोई नहीं है. हेल्पलाइन 181 की लखनऊ की टीम लीडर पूजा बताती हैं कि,

“एक निजी कंपनी GVK को महिला हेल्पलाइन नंबर 181 का पूरा टेंडर मिला था. हमारा वेतन सरकार देती है इस कंपनी को, और कंपनी फिर हमारे खातों में वेतन डालती है. लेकिन पिछले 14 महीनों से वेतन के बारे में पूछने पर GVK और सरकार एक दूसरे को दोषी ठहराते हैं.”
पूजा

इलाहाबाद की पूजा दो बच्चों की मां हैं. दोनों बच्चे अब कॉलेज जाने लायक हैं. वेतन मिल जाता तो शायद किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला लेते. पूजा आगे बताती हैं,

“GVK से पूछने पर जवाब मिलता है कि सरकार की तरफ से फंड नहीं मिल रहा है. इसलिए वेतन रुका है. सरकार का कहना है कि वेतन आखिर में आपकी कंपनी ही देगी. दोनों के बीच हम पिस रहे हैं. हमारी सुनने वाला कोई नहीं है.”

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एक साल से बिना वेतन के कैसे हो रहा है गुजारा?

लखनऊ की अर्चना श्रीवास्तव से बातचीत में उन्होंने बताया कि, “अब तो स्थिति ये आ गई है कि पिछले कई महीनों से घर का किराया नहीं दे पा रही हूं. घर में राशन खत्म है. किसी तरह बड़ी मुश्किलों से गृहस्थी चला रहे हैं. ”

बनारस की दीपशिखा पोस्टिंग के बाद गाजीपुर जाकर घर से दूर अकेले रहने लगीं. अपने वेतन से अपना रहना खाना सब संभालने लगीं. लेकिन वेतन रुकने के बाद की स्थिति पर बात करते हुए दीपशिखा ने बताया,

दूसरे शहर में कमरे का किराया सबसे बड़ा टेंशन था. पहले मैं ऑफिस ऑटो से जाती थी, लेकिन वेतन बंद होने के बाद से पैदल जाने लगी. इसी तरह बहुत छोटी छोटी जरूरतों के साथ समझौता करके रहना पड़ता था. घर से मदद मिल जाती थी लेकिन घर से बाहर निकल कर अपने से कमाने खाने रहने से जो आत्मविश्वास मिला था. वो धीरे धीरे कम हो रहा था.
दीपशिखा

रायबरेली की तहसीना खानम अपने घर की सबसे छोटी बेटी हैं. बड़े भाई शादी के बाद घर छोड़ बाहर रहने लगे. ऐसे में वो अपने बुज़ुर्ग मां बाप की सहारा थीं. लेकिन जब से उनका वेतन आना बंद हुआ है वो अपने घर वालों के बर्ताव में फर्क देख रहीं हैं. 25 वर्षीय तहसीना कहती हैं कि,

“जब से मेरी सैलेरी बंद हुई है, मैं कर्जे में डूबती जा रही हूं. 50-60 हजार रुपए कर्जा अब तक चुकाना बाकी है. घर वालों से मदद मांगना अब अजीब लगता है. क्योंकि उन्होंने पूरे विश्वास के साथ मुझे नौकरी करने भेजा था. उन्हें मुझ पर गर्व था. लेकिन अब वो मेरे लिए रिश्ता खोज रहे हैं. उनके अनुसार अब मेरे पास शादी करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.”

वेतन नहीं मिलने से अवसाद और आत्महत्या की घटनाएं

अर्चना ने आगे अपनी उन्नाव की एक सहकर्मी की दशा बताई, “5 जून को हम लोगों को बिना कोई कारण स्पष्ट किए नौकरी से निकाले जाने की चिट्ठी मिली. इससे परेशान होकर आयुषी ने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली. उनके पीछे उनकी 5 साल की बच्ची और एक अपाहिज पति हैं. वो अपने घर की एकलौती कमाने वाली थीं. लेकिन उनकी मौत की जिम्मेदारी लेने वाला अब कोई नहीं है.”

एक और महिला कर्मचारी की आत्महत्या की पुष्टि दीपशिखा ने की है. दोनों ही आत्महत्या करने वाली महिलाएं अपने घरों में अकेली कमाने वाली थीं. रायबरेली की तहसीना खानम ने बताया कि,

“एक लड़की को अकेले जीवन यापन करते देख हमारा समाज सौ सवाल खड़े करता है. साथ देने से ज्यादा उंगलियां उठाने वाले होते हैं. नौकरी करना, अपनी जरूरतों के लिए खुद पैसे कमाना एक अलग किस्म का साहस देता है.”
तहसीना खानम

तहसीना के घरवालों शादी के दबाव ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया है. इस पर बात करते हुए वो कहतीं हैं कि,

“जब से वेतन बंद हुआ है, घर वाले मुझे वापस घर आकर रहने को कह रहे हैं. मैं जानती हूं घर पर रहकर मैं दोबारा चूल्हे चौकी में उलझ जाउंगी. मैंने घर से बाहर के जीवन को जिया है. अब वेतन बंद होने से मुझे दोबारा सब कुछ जीरो से शुरू करना होगा और इस बार घर वाले कितना साथ देंगे, इसका भी कुछ पता नहीं है.”

क्या है अधिकारियों और प्रशासन का रवैया?

निजी कंपनी GVK की तरफ से नियुक्त किए गए प्रोजेक्ट हेड आशीष वर्मा से बात करने पर उन्होंने तबीयत खराब होने के कारण किसी भी मसले पर बात करने से साफ मना कर दिया. धरनारत महिलाओं का कहना है कि प्रशासन और GVK के पास अब कोई जवाब ही नहीं है, इसलिए वो हर तरह के सवालों से बचते फिर रहे हैं.

महिलाओं का वेतन नहीं मिल पाना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन प्रशासन के पास कोई उपाय और जवाब नहीं होना ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है. कर्मचारियों की मांग एक ही है कि जल्द से जल्द उनके वेतन का भुगतान किया जाए.

कैसे शुरू हुआ था हेल्पलाइन 181 प्रोजेक्ट?

महिला हेल्पलाइन 181 की शुरूआत साल 2016 में हुई थी. पूरा नाम है, “181 महिला आशा ज्योति लाइन”. एसिड अटैक, घरेलू हिंसा, बलात्कार, बाल विवाह, छेड़खानी, मानसिक उत्पीड़न, विधिक मामले जैसी महिलाओं की सभी समस्याओं पर त्वरित कार्यवाही के लिए ये हेल्पलाइन बनाई गई. 25 करोड़ की लागत वाली ये योजना महिलाओं के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरी थी.

महिला हेल्पलाइन नंबर की वेबसाइट में स्पष्ट लिखा है कि,

“उत्तर प्रदेश सरकार के महिला कल्याण विभाग द्वारा महिलाओं की मदद के लिए एक नि:शुल्क महिला हेल्प लाइन नंबर दिया गया है, जिस पर महिला कभी भी (24*7) कॉल कर के अपनी किसी भी प्रकार की समस्या बता सकती हैं व सहायता प्राप्त कर सकती हैं”

18 डिवीजनों में बंटा ये प्रोजेक्ट 351 महिलाओं के साथ, हाउसकीपर, ड्राइवर और अन्य सहायक कर्मचारियों को मिला कर 450 लोगों के लिए रोजगार का साधन है. हर डिवीजन में उस जिले का प्रोबेशन अधिकारी टीम को लीड करेगा. प्रोजेक्ट हेड आशीष वर्मा नियुक्त हुए और काम शुरू हुआ. रोजाना सैकड़ों महिलाओं को रेस्क्यू किया जाता था.

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