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यूपी का कासगंज जिला इन दिनों तिरंगा यात्रा के दौरान हुई हिंसक वारदात के कारण सुर्खियों में है. इस घटना की वजह क्या थी? महज तिरंगा यात्रा में नारेबाजी? शायद नहीं, क्योंकि जिस तरह इस घटना ने हिंसक रूप लिया है, उसे अचानक अंजाम नहीं दिया जा सकता था.
बताया जा रहा है कि इस घटना की वजहों में एक वजह कासगंज के चामुंडा देवी मंदिर के गेट को भी माना जा रहा है. मंदिर के मुख्य द्वार पर गेट और बैरिकेडिंग को लेकर काफी समय से दो पक्षों में विवाद चल रहा है, जिसको लेकर 23 जनवरी को दोनों पक्षों में अच्छा-खासा विवाद हुआ था.
कासगंज जिले में मथुरा-बरेली हाइवे पर मुस्लिम बहुल इलाके सोरों में चामुंडा मंदिर है. ये मंदिर करीब 200 साल पुराना है. आसपास के जिलों से भी लोग यहां दर्शन के लिये आते हैं. त्योहारों के दिनों में यहां भारी संख्या में लोगों की भीड़ होती है.
मंदिर से कुछ दूरी पर मुख्य द्वार बनाया गया है, जिस पर काफी समय से गेट लगाने की बात चल रही है. मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि गेट और बैरिकेडिंग न होने से आवारा जानवर अंदर घुस आते हैं. साथ ही गाड़ियां पार्क होती हैं, जिसे मंदिर प्रबंधन और इससे जुड़े लोग काफी दिनों से रोकना चाहते हैं.
23 जनवरी को मुख्य द्वार पर बैरिकेडिंग की तैयारी शुरू हुई. जिला प्रशासन मंदिर पर गेट लगवाने को सहमत हो गया था. लेकिन जैसे ही इसकी जानकारी दूसरे पक्ष को हुई, तो उन्होंने इसका विरोध किया और कुछ ही देर में बड़ी संख्या में लोग जमा हो गए. उन्होंने ऐलान किया कि किसी भी हालत में गेट नहीं लगाने दिया जाएगा.
बैरिकेडिंग का विरोध कर रहे लोगों ने सड़क जाम कर दिया और धरना-प्रदर्शन भी हुआ. तो वहीं गेट लगवाने का समर्थन कर रहे लोग भी सामने आ गए. ऐसे में जिला प्रशासन के हाथ-पांव फूलने लगे. किसी तरह पुलिस ने फौरी-तौर पर तो दोनों पक्षों को भरोसा देकर मामले को शांत कर लिया, लेकिन असल में ये मामला शांत नहीं हुआ, क्योंकि ये विवाद कुछ दिनों का नहीं, बल्कि सालों पुराना है.
23 जनवरी को हुई घटना को पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया, वरना इसे रोका भी जा सकता था. पुलिस ने दोनों गुटों के बीच पनप रहे टकराव का पता लगाने में शायद देर कर दी, इन्हीं सब बातों का मिला-जुला असर 26 जनवरी को बड़ी हिंसा के तौर पर देखने को मिला.
ये विवाद 10 साल से मंदिर के बाहर गेट लगाने को लेकर चल रहा है, जिस पर जमकर राजनीति हुई. राजनीतिक पार्टियों से लेकर स्थानीय नेताओं ने गेट लगाने के नाम पर वोटबैंक की राजनीति की.
2007 में मायावती की सरकार थी और यहां के चेयरमैन राजेंद्र बोहरे ने मंदिर के बाहर गेट लगाने की कवायद शुरू की, लेकिन सफल नहीं हो पाए, क्योंकि तत्कालीन सरकार के विधायक हसरत उल्ला शेरवानी ने इसका विरोध शुरू कर दिया, जिसके चलते गेट नहीं बन सका. हसरत उल्ला का मानना था कि गेट लगने से शहर में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता है, इसलिए उन्होंने गेट लगाए जाने का विरोध किया.
कासगंज सदर से मौजूदा बीजेपी विधायक देवेंद्र सिंह राजपूत ने चुनाव के दौरान वादा किया था कि अगर वो विधायक बने, तो मंदिर के बाहर गेट लगवाएंगे. चुनाव जीतने के बाद मंदिर में अभी कुछ दिन पहले वे जब लाइट लगवाने के लिए पहुंचे, तो आसपास रहने वाले लोगों ने मंदिर में लाइट नहीं लगने दी और विरोध करना शुरू कर दिया.
26 जनवरी को तिरंगा यात्रा के दौरान हिंसा का शिकार हुए कासगंज में आज भी तनाव है. घटना के चार दिनों बाद तक छिटपुट आगजनी की खबर मिलती रही. घटना क्यों हुई और इसमें दोषी कौन है? ये पता लगाने के लिए लिए जांच एजेंसियां काम में जुट गई हैं. फिलहाल, ‘सच’ सिर्फ इतना दिख रहा है कि इस हिंसक वारदात में एक की जान चली गई है, जो शायद तमाशा देखने मौके पर पहुंचा था.
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