advertisement
देव नारायण झा नोएडा सेक्टर 76 की एक सोसाइटी में रहते थे. 8 अप्रैल को कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई, प्राइवेट अस्पताल ने होम आइसोलेशन में रहने को कहा, इस दौरान उनकी पत्नी, बेटे समेत घर के कुछ और सदस्य कोरोना वायरस पॉजिटिव हो गए. अब कोविड अस्पताल में एडमिट उनके बेटे क्विंट से कहते हैं कि 'अगर हमें समय से एंबुलेंस मिल गया होता तो हमारे पिता बच जाते.'
कानपुर के लाल बंगला में एक बुजुर्ग दंपति रहता है. साथ में बहू हैं और दो पोतियां. सभी के सभी कोरोना वायरस पॉजिटिव हैं. जब हालत बिगड़ने लगी तो अथॉरिटी को फोन घुमाने लगे कहीं से कोई जवाब नहीं आ रहा था. हर अस्पताल में बेड भरे होने की बात कही जा रही थी. एक दिन बाद परिवार को बेड नसीब हो सकी, इस वक्त तक बुजुर्ग दंपति के ऑक्सीजन लेवल में काफी गिरावट हो गई थी.
लखनऊ के गोमती नगर के अंकित सिंह हैं इनके बड़े भाई गंभीर रूप से बीमार हैं. अंकित कहते हैं कि 4-5 दिन हो गए मेडिकल के चक्कर लगाते लगाते. कई दवाएं हैं जो मार्केट में मौजूद ही नहीं हैं.
कुल मिलाकर कोरोना वायरस संकट के बीच उत्तर प्रदेश में कोहराम मचा हुआ है. अभी एक महीने पहले तक हालात ऐसे नहीं थे.
3 मार्च, 2020 को यूपी में पहले संक्रमण आया था, उसके बाद कई तरह की तैयारियों की बात कही जा रही थी. अब लोग ये पूछ रहे थे कि आखिर एक साल में वो तैयारियां और बेहतर होने की बजाय चौपट क्यों दिख रही हैं.
प्रदेश के मंत्री ब्रजेश पाठक खुद मान रहे हैं कि कोविड से जंग की जो व्यवस्था लखनऊ में है, वो बदतर है. उन्होंने एक चिट्ठी भी लिखी थी, लखनऊ से ही बीजेपी सांसद कौशल किशोर भी यही कह रहे हैं. ताजा हालात ये है कि शमशान में जलती चिताओं की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर होने के बाद श्मशान के बाहर टीन शेड लगवाने की बात सामने आई है. इसका वीडियो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने भी ट्वीट कर सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है.
अब यूपी में कोरोना वायरस से 'जंग' लड़ रहे मुख्यमंत्री खुद ही कोरोना की चपेट में हैं. राज्य सरकार में मंत्री आशुतोष टंडन, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी कोरोना पॉजिटिव हैं. दर्जनभर IAS और सैकड़ों डॉक्टर समेत मेडिकल स्टाफ भी इस महामारी की चपेट में हैं. केजीएमयू, पीजीआई, बलरामपुर अस्पताल समेत जिस अस्पताल का नाम लेंगे वहां आपको कोरोना का शिकार मेडिकल स्टाफ मिल ही जाएगा. ऐसे में प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं भी नाजुक स्थिति में हैं.
एक उदाहरण देखिए, बनारस का एक परिवार कोरोना पॉजिटिव है. बीच में परिवार के मुखिया जो डायबिटीक हैं उनकी हालत बिगड़ी और फिर अस्पताल में एडमिट कराने की जद्दोजहद शुरू हो गई. कोरोना पॉजिटिव बेटे को खुद ही बीमार पिता को एक प्राइवेट अस्पताल ले जाना पड़ा, जहां कई घंटों तक बेटा इंतजार करता रहा कि पिता का दाखिला कैसे भी हो जाए. कई घंटों की मशक्कत के बाद बेड मिली तो ऑक्सीजन सिलेंडर ही नहीं थी. थक हारकर खुद ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था कर मरीज को वापस घर लाया गया लेकिन हालत फिर बिगड़ता देख उन्हें एयर एंबुलेंस के जरिए बेहतर उपचार की तलाश में दिल्ली लाया गया है. यहां अब वो एक प्राइवेट अस्पताल में एडमिट हैं और प्लाज्मा की डिमांड है, जिसके लिए परिवार फिर संघर्ष में जुटा हुआ है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)