Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019'बंदूक के दम हमें डरा रहे'- बांदा में रेत माफिया से त्रस्त किसान

'बंदूक के दम हमें डरा रहे'- बांदा में रेत माफिया से त्रस्त किसान

किसानों के खेतों से निकलने वाले रास्तों से प्रति ट्रक के हिसाब से दबंग स्थानीय रसूखदारों को मिलता है पैसा

मोहम्मद सरताज आलम
भारत
Published:
बांदा में रसूखदार किसानों के खेतों से जबरन बना रहे हैं रेत निकालने का रास्ता-बांदा के किसान राम करन
i
बांदा में रसूखदार किसानों के खेतों से जबरन बना रहे हैं रेत निकालने का रास्ता-बांदा के किसान राम करन
फोटो: क्विंट हिंदी

advertisement

नवम्बर का महीना आने वाला है और बालू खनन के लिए उत्तरप्रदेश में आपाधापी शुरू हो चुकी है. इस खनन कार्य में सबसे ज्यादा शोषण किसानों का होता है. इसी क्रम में बांदा के किसान फिलहाल अपनी खेत बचाने की जद्दोजहद में सरकार के इस कार्यालय से उस कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं. क्विंट ने बालू खनन और किसानों के संघर्ष को समझने के लिए इसकी इनसाइड स्टोरी जानने की कोशिश की.

दरअसल ई-टेंडर के माध्यम से बालू खनन का ठेका 5 वर्षों के लिए मिलता है. यह ठेकेदार खुद जाकर खनन नहीं करते. बल्कि ठेकेदार खनन क्षेत्रों में मौजूद लोकल असरदार लोगों की सहायता से खनन का काम करवाते हैं. बालू से जो कमाई होती है वह सीधे तौर पर सरकार और ठेकेदार के खाते में जाती है.

लेकिन जो छुटभैये इस खनन कार्य को संभव करवाते हैं उनकी इनकम का जरिया वह अस्थाई रास्ते हैं जिनसे बालू की भरी ट्रकें निकलती हैं. इन अस्थायी रास्तों से ट्रकों के निकलने के एवज में प्रति ट्रक वसूली होती है जो सीधे छुटभैयों के पॉकेट में जाती है. जबकि इन रास्तों से 1 साल भी ट्रक निकल जाएं, तो यह पूरी तरह से बंजर हो जाते हैं. इन सब के बीच किसान का शोषण कैसे होता है, यह जानने के लिए उत्तरप्रदेश के बांदा जिला के मरौली गांव के किसानों की व्यथा सुनिए.

अभिमन्यु सिंह ने हमारी 5 बीघे खेत से जबरन रास्ता निकल लिया है. जो केन नदी के बालू खंड-2 तक जाएगा. इसका कोई एग्रीमेंट नहीं है, कोई मुआवजा नहीं मिला है.
राम करन, किसान, मरौली गांव, बांदा
"हमने किसी दूसरे ठेकेदार से रास्ते के लिए एग्रीमेंट किया था. अब इस खेत पर ठेकेदार अभिमन्यु सिंह, नरेंद्र यादव और राजू द्वेदी ने बन्दूक की नोक पर रास्ता निकाल लिया है. अभिमन्यु सिंह ने रास्ते के लिए न कोई एग्रीमेंट किया है, न कोई पैसा मुआवजा दिया है. हम चार भाई हैं, हमारी दाल रोटी इसी से चलती थी. जबकि इस खेत पर हमारा 40 साल से कब्जा रहा है. इसका कागज भी है हमारे पास. हमने थाने में भी बात की, DM साहब से गुहार लगाई लेकिन किसी ने नहीं सुनी. उल्टा कहा गया कि आपके खिलाफ FIR कर देंगे."
माता दीन, किसान, मरौली गांव, बांदा

मरौली गांव का क्या है मामला?

दरअसल मरौली गांव के निकट केन नदी से बालू खनन का कार्य नवम्बर में चालू होना है. खंड 6 का खनन लखनऊ में रहने वाले रजनीश एवं अंजनी मिश्रा की कंपनी युफ्रियो माइंस करेगी. जिसके लिए रास्तों का प्रबंध लोकल रसूखदार अभिमन्यु सिंह की सहायता से किया गया. जिसके लिए एग्रीमेंट के बाद कुछ ही किसानों को मुआवजा का पैसा मिला, वह भी पूरा नहीं.

रेत ठेकेदारों द्वारा बनाया गया रास्ताफोटो: क्विंट हिंदी

अब खंड दो के खनन के लिए ठेका मिला मनीष साहू को, जिनके खनन का काम लोकल रसूखदार रमेश चंद्र साहू, अभिमन्यु सिंह और राजू द्विवेदी देखेंगे. इन्हीं अभिमन्यु सिंह पर किसान आरोप लगा रहे हैं कि जबरन खेत से रास्ता बनाकर खंड 2 से बालू खनन करवाने की योजना है. इस आरोप पर क्विंट ने अभिमन्यु सिंह से बात की.

अभिमन्यु सिंह ने कहा,

"हमने हर किसान से एग्रीमेंट किया है कोई ऐसा किसान नहीं है जिसको हमने मुआवजा नहीं दिया हो. हम यहां व्यापार करने आए हैं दबंगई या किसी को परेशान करने नहीं."
अभिमन्यु सिंह

जब क्विंट ने अभिमन्यु सिंह से कहा कि किसान तो कह रहे हैं कि जबरन रास्ता बनाने के दौरान आपके लोगों ने मारपीट की है, किसी को मुआवजा नहीं मिला, न ही किसी के साथ आपने एग्रीमेंट किया. तो वो कहने लगे कि "मोहन सिंह नाम के किसान को हमने 2 लाख 20 हज़ार रूपये दिए हैं, एग्रीमेंट भी किया है, लेकिन उसने जमीन अब दूसरे ठेकेदार को दे दी है." जवाब में मरौली गांव के मोहन सिंह कहते हैं:

"दरअसल जिस जमीन के लिए एग्रीमेंट की बात अभिमन्यु कह रहे हैं, वह अंजनी मिश्रा के बालू खंड 6 के लिए था, लेकिन अभिमन्यु ने उसके लिए तय 2 लाख बीस हजार रूपये आज तक हमें नहीं दिए. मुझे ही नहीं बाकी लोगों को भी नहीं दिए. अब मनीष साहू के बालू खंड 2 से बालू खनन के लिए हमारी दूसरी खेत से जबरन रास्ता निकाल लिया. इसपर हमने थाना से लेकर डीएम तक गुहार लगाई. इस दफ्तर से उस सरकारी दफ्तर के चक्कर लगाते रहे और इधर रास्ता बन गया. हम सभी किसान DIG के पास गए तो वह कहने लगे कि SDM सदर से बात कीजिए. हम उनके पास भी गए, वहां से भी कुछ नहीं हुआ. दरअसल हर अधिकारी को इतने पैसे दे दिए जाते हैं कि हमारी कोई सुनता ही नहीं है."
मोहन सिंह, किसान, मरौली गांव

क्विंट ने मोहन सिंह के आरोपों को लेकर SDM सदर बांदा से संपर्क किया. SDM ने कहा कि आप DM से संपर्क कीजिए. क्विंट ने कहा कि खेतों में विवाद हुआ, किसान की पिटाई हुई, किसान कह रहे हैं कि रास्ता अवैध है, जिसपर प्रति ट्रक अवैध वसूली की जाएगी, SDM साहब ने इस पर क्या कार्रवाई की ? इस सवाल पर SDM ने कॉल काट कर दी.

बांदा के सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर बताते हैं, "जहां तक रास्ते की बात है तो जब सरकार खनन का टेंडर दे सकती है तो उसे रास्ते भी तय कर देने चाहिए. अब किसानों के खेतों से जबरन अवैध रास्ते बनाये जाते हैं, जिनसे लोकल प्रभावशाली लोगों को अवैध वसूली का रास्ता मिलता है. जो खनन के बाद बंजर हो जाते हैं, किसानों की मुश्किल यह है कि एक बार खेत पर रास्ता बना तो फिर वापस खेती लायक नहीं बचते. सरकार को खनन के लिए ई-टेंडर बंद कर देना चाहिए."

पढ़ें ये भी: भारतीय प्रतिक्रिया से डर गया गया चीन, दूर हुई गलतफहमी: मोहन भागवत

लॉटरी से टेंडर हों और लोकल लोगों को खनन का काम मिले. जहां बिना मशीन के लेबर की सहायता से खनन हो ताकि लोगों को रोजगार मिले और नदियों को नुकसान भी ना हो. हालत यह है कि 5 साल के नाम पर खनन का ठेका मिलता है और मशीनों की मदद से भारी रेवेन्यू के लिए कम्पनियां एक साल में 5 साल का बालू नदियों से निकाल लेती हैं, जिससे नदियां तबाह हो रही हैं. हर सरकार में यही हाल रहता है. बांदा ही नहीं उत्तरप्रदेश में लगभग सभी जगह यही हाल है. वैसे आज के हालत अधिक दयनीय है.
आशीष सागर, सामाजिक कार्यकर्ता, बांदा

क्विंट ने बालू खनन के इस मसले पर खनिज अधिकारी बांदा से संपर्क किया लेकिन मरौली गांव का नाम सुनते ही कहा- ''मैं बात नहीं कर सकता और कॉल काट दी''. डीएम बांदा ने भी तुरंत कॉल काट दी, फिर वापस रिसीव भी नहीं की और ना ही किसी अधिकारी ने मैसेज का जवाब दिया. जवाब आते ही खबर को अपडेट किया जाएगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT