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हर साल देव-दीपावली बनारस के घाटों पर मौजूद नाविकों के लिए बड़ी आय का जरिया बन कर आती है. इस मौके पर देसी से लेकर विदेशी पर्यटक रोशनी से जगमगाते घाटों का नजारा नाव से देखा करते थे. जिसके ऐवज में नाविक 50 हजार रुपये से लेकर से डेढ़ लाख रुपये की बड़ी रकम हर साल कमाया करते थे. लेकिन इस बार की देव दीपावली नाविकों के लिए खुशी नहीं ला पाई. जबकि पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देव दीपावली में हिस्सा लिया और बनारस के घाटों का दौरा किया.
लेकिन अब सवाल ये है कि नावकों को आखिर फायदा क्यों नहीं हुआ. इस पूरे मामले को लेकर हमने खुद जाकर नाविकों से जाना कि कौन इसके लिए जिम्मेदार है. जिसके बाद पता चला कि पीएम मोदी का बनारस आना इसका कारण नहीं था, बल्कि प्रशासन की लापरवाही से नावकों की कमाई कम हुई. नाविक प्रमोद मांझी बताते हैं कि,
देव-दीपावली पर घाटों पर जलते दीये विदेशी पर्यटकों के अलावा देशभर से आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं, जिनकी तादाद इस खास दिन लाखों में हुआ करती थी. इस साल देसी और विदेशी पर्यटकों को कोविड की वजह से आना ही नहीं था. ऐसे में वाराणसी के घरेलू पर्यटक ही नाविकों की आखरी उम्मीद थे.
देव दीपावली में हुई निराशा को लेकर नाविक बबलू साहनी बताते हैं कि, देव-दीपावली के कई हफ्ते पहले से ही नाविकों से लेकर शहरी पर्यटकों के बीच भ्रम की स्थिति बन गई थी कि नाव चलेंगी या नहीं. असमंजस की इस स्थिति को प्रशासन ने कभी साफ नहीं किया. हालात ये हुए कि अंतिम क्षण में निषाद समाज ने प्रशासन को कहा कि नाव चलाने का प्रतिबंध हटाया जाए. अगर चलेंगी तो सभी नाव चलेंगी वरना एक भी नाव नहीं चलाई जाएगी. इसके बाद 27 नवंबर की रात 11 बजे प्रशासन की निषाद समाज के साथ एक मीटिंग होती है. जहां प्रशासन ने नाव चलने को लेकर लगे प्रतिबंध को हटाते हुए अधिकांश मांगों पर छूट देने की पर सहमति जताई. ये भी कहा जाता है कि मीडिया के जरिए सूचित किया जाएगा कि नाव चलेंगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. नाविक ने बताया,
एक और नाविक प्रमोद मांझी से बात करने पर उन्होंने बताया कि, "दरअसल बनारस जिला प्रशासन ने दिये जलाने से लेकर लाइट शो के इस पर्व को पूरी तरह प्रधानमंत्री के आगमन के इर्द-गिर्द सीमित कर दिया. इस हालात में पर्यटक भी नहीं आ सके और लगभग 75% नाव नहीं चलीं. मोदी जी कुछ समय ही घाट पर रहे. उनके जाते ही प्रशासन ने लाइट शो बंद करवाते हुए कहा कि कार्यक्रम खत्म किया जाता है. अब बताइये 8 बजे रात ही जब कार्यक्रम समापन की घोषणा हो जाएगी तो नाविकों को कहां से लाभ होगा.” उन्होंने आगे कहा,
नाविक विनोद साहनी ने क्विंट से बातचीत में बताया कि कुछ घाटों पर रि-डेवलेपमेंट का काम चलने के कारण नावों को चलने की इजाजत नहीं है. जिससे यहां के नाविक परेशान हैं और उनकी कमाई बिल्कुल बंद हो चुकी है. उन्होंने कहा, "मोदी जी के ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ मंदिर बनने की वजह से जिला प्रशासन ने मणिकर्णिका घाट और ललिता घाट के नाविकों को नाव चलाने से रोक दिया है. ऐसे में मैं सरकार से अपील करता हूँ कि इस घाट के तमाम नाविकों को 25 हजार रुपये प्रति माह बतौर मुआवजा तब तक दिया जाए, जब तक कि दोबारा नाव नहीं शुरू होती हैं."
वाराणसी के घाटों पर रोजी रोटी के लिए नाव चलाने वालों की एक और समस्या है. नाविक बबलू साहनी बताते हैं कि, "वातावरण में दुषप्रभाव का हवाला देकर कछुवा सेंचुरी एक्ट के तहत 2008 में डीजल बोट के लाइसेंस रद्द कर दिए गए. नाविक हाथ वाली बोट पर दोबारा निर्भर हो गए. तीन साल पहले इसे भी बंद कर दिया गया. अब विकल्प दिया जा रहा है कि LPG इंजन लगाया जाए. इसकी कीमत साढ़े तीन लाख रुपये है. इस कीमत को अदा करने में 10% नाविक ही सक्षम हैं. नाविक ने कहा कि प्रधानमंत्री ने भी क्रूज से गंगा की यात्रा की, ऐसे में अब ये कहा जा रहा है कि क्रूज सेवा और बढ़ने वाली है. जिसका सीधा असर नाविकों के रोजगार पर पड़ेगा.
नाविकों के मसलों पर नगर आयुक्त डीडी वर्मा से बात करने पर उन्होंने बताया कि नाविकों को हम लाइसेंस देते हैं, लेकिन उनके मसलों पर आप डीएम साहब से ही बात कीजिए. हमने डीएम वाराणसी को लगातार कई बार संपर्क किया लेकिन उन्होंने बात नहीं की. इसके बाद एडीएम सिटी गुलाब चंद ने बातचीत में बताया कि,
"PM रूट को छोडकर ललिता घाट तक सभी को इजाजत दी गई थी. वहां तक सभी जा रहे थे. किसी को कहीं नहीं रोका गया. रही बात परमिशन की तो तीन-चार दिन पहले ही DM साहब ने मीडिया में मैसेज दिया था कि नाव चला सकते हैं."
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