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गोकशी रोकने के लिए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने गोवध पर सख्ती की और शराब से लेकर टोल तक अलग-अलग सेस लगा कर गोवंश के संरक्षण के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. हैरानी इस बात को लेकर है कि सीएम योगी अपने इस प्रोजेक्ट को लेकर जितने गम्भीर हैं, उतने ही बेपरवाह उनके नौकरशाह. लिहाजा गोवंश कटने से तो बच जा रहे हैं लेकिन इन्हें संरक्षित करने के लिए बनाये गये गो-शालाओं में वो भूख, सर्दी और गर्मी से तड़प-तड़प कर मर रहे हैं. सिर्फ पिछले एक हफ्ते की बात करें तो अलग-अलग जिलों में 100 से ज्यादा गोवंश की मौत हो चुकी है.
पिछले दो साल से यूपी में गोकशी पर सख्ती है. अचानक बढ़े अवारा मवेशियों के लिए सरकार ने सभी जिलों में स्थाई और अस्थाई गोशाला बनाने का आदेश दिया और अलग-अलग योजनाओं के तहत बजट निर्धारित भी किया गया. जिलों में कुछ अस्थाई गोशाला बन भी गई हैं लेकिन उनमें ज्यादातर सिर्फ नाम की हैं.
हजारों करोड़ रुपये के इंतजाम से सजा प्रयागराज कुम्भ इस बार सबकी जुबान पर है. यही प्रयागराज 10 जुलाई से फिर चर्चा में है, यहां गोशाला में 35 गोवंशों की मौत हो गई. प्रयागराज के कादीपुर गांव में आवारा मवेशियों के लिए गोशाला बनाया गया था. पहले तो अफसरों ने बताया कि बिजली गिरने से गोवंश की मौत हुई है. लेकिन यह बात गले से उतरने वाली नहीं थी. मौके पर पहुंची गोसेवा आयोग की टीम को ग्रामीणों ने बताया कि कई दिनों से तेज बारिश हो रही थी. इस दौरान जानवरों को खाना नहीं मिलता था. भूख और तेज बारिश में ठंड से गोवंश की मौत हुई होगी.
राम की नगरी अयोध्या में भी यही हाल है. यहां मिल्कीपुर के पलिया माफी और पूरा बाजार के बैसिंह के करीब 30 गोवंश की मौत हो गई और 30 से ज्यादा बीमार है. गोशाला में भारी बारिश के कारण दलदल और कीचड़ में फंसकर गोवंश निकल नहीं पा रहे हैं और वहीं दम तोड़ दे रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ बीमार गोवंश कौवों के झुंड के हमलों में घायल हो रहे हैं.
लखनऊ से सटे बाराबंकी में सबसे पहले गोशाला निर्माण का काम शुरू हुआ था. 29 गोशाला बनाए गए हैं. यहां सिर्फ भूसे में सरकार 63 लाख खर्च कर चुकी है. फिर भी पिछले डेढ़ माह में 35 गोवंश की मौत हो चुकी है.
जौनपुर जिले में पिछले हफ्ते डोभी, कंजरकला, सतहरिया, मडियाहूं में खराब व्यवस्था और बीमारी के चलते 40 मवेशियों की मौत हो गई.
आजमगढ़ में तीन दिनों में 20 मवेशियों की मौत हो चुकी है. जिनमें आठ की मौत किशुनपुर के गोशाला में झोपड़ी गिरने से हुई है. सीतापुर में भी अलग-अलग गोशाला में 9 गोवंश की मौत हो चुकी है.
गोवंश का संरक्षण जो पहले भी बीजेपी का एजेंडा था, अब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ड्रीम प्रोजेक्ट है. इसमें गंभीरता इसलिए ज्यादा नजर आती है कि क्योंकि यूपी में गोवध पर सख्ती के बाद अचानक खेतों में बढ़े आवारा गोवंश से किसान बेहद नाराज हुए, जिसका असर यूपी में लोकसभा के उपचुनावों में दिखा. बावजूद इसके सीएम योगी ने कदम पीछे नहीं खींचा.
आखिरकार लोग आदती हो गये और खुद आवारा मवेशियों से फसल को बचाने का रास्ता बना रहे हैं. जिनके पास जितनी क्षमता है वो खेतों को रस्सी और कटीले तारों से घेर रहे हैं. लेकिन ये तो किसानों की फौरी तौर पर फसल को बचाने का एक फौरी तरीका है. मुकम्मल व्यवस्था तो सरकार के बड़े स्तर पर सरकार की मजबूत योजनाओं से ही संभव है. जो अभी तक सिर्फ कागजों में ही है.
आवारा पशुओं के कारण सड़क दुर्घटनाओं में हो रही वृद्धि और फसलों की क्षति के लिए विपक्ष और आम लोगों की आलोचना झेल रही उत्तर प्रदेश की सरकार ने निकाय क्षेत्रों और गांवों में अस्थाई गोशाला खोलने की योजना बनाई. इसके तहत गोशालाओं के निर्माण और दैनिक कामकाज के लिए सरकार ने उत्पाद शुल्क पर दो प्रतिशत सेस लगाया. इसके अलावा 0.5 प्रतिशत सेस राज्य के टोलों पर भी लगाया गया है.
फिर भी मौजूदा दौर में इन गौशालाओं की हालत बेहद खराब है. कहीं चारा नहीं है तो कहीं गायें बीमार पड़ी हैं. गोसंरक्षण को लेकर नौकरशाहों की सुस्त रफ्तार ने सरकार की चाल बिगाड़ दी है.
वैसे तो विभाग के पास अपने कर्मचारियों को देने के लिए वेतन तक नहीं है. लेकिन गोसंरक्षण में कोई कमी नही रह जाये इसके लिए अलग से बजट दिया गया. गोवंश संरक्षण योजना के तहत योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 248 करोड़ रुपए का भारी-भरकम बजट भी अवमुक्त कर दिया. यही नहीं बीयर पर दो फीसदी सेस लगाकर सरकार ने गोवंश संरक्षण में बजट की कमी नहीं आने दिया. योगी सरकार ने नगर निकायों को 10-10 करोड़ रुपए कान्हा उपवन के लिए अलग से दे चुकी है. पिछले साल ही शहरी निकायों में गोशालाओं के निर्माण के लिए 10 लाख से 30 लाख रुपए जारी किए गए थे. इसके बावजूद भी जिलों में गौशालाओं की स्थिति ठीक नहीं है.
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