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कुशवाहा के जनता दल (यूनाइटेड) में जाने की चर्चा इन दिनों बिहार के सियासी हलकों में जोरशोर से है, कहा तो यहां तक जा रहा है कि दोनों दल के नेताओं में बातचीत लगभग तय हो गई है, बस तय समय का इंतजार है. दोनों दलों के नेताओं के बयानों के बाद से इस चर्चा को और बल मिल रहा है कि दोनों दल के नेता एक-दूसरे को अलग नहीं बता रहे हैं.
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद दोनों दलों को एक-दूसरे की याद आ गई. इस विधानसभा चुनाव में रालोसपा का सफाया हुआ तो जदयू को भी अपेक्षित सीटें नहीं मिली, जिसके बाद दोनों दलों के नेता एक-दूसरे की जरूरत बन गए हैं, इस बीच, चुनाव के बाद कुशवाहा ठंड की सर्द रातों में नीतीश के दरबार में तीन बार पहुंचकर दोनों दलों के बीच जमी बर्फ को पिघलाने की शुरुआत कर दी.
चुनाव के बाद नीतीश कुमार जदयू को फिर से मजबूत संगठन और जनाधार की जमीन तैयार करने की कोशिश में लगे हैं, वहीं, उपेंद्र कुशवाहा को भी राजनीति में अपनी जमीन की फिर से तलाश है, इस तरह साथ आना दोनों की आवश्यकता है.
सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार के पहले कुशवाहा अगर जदयू के साथ चले आए तो कोई आश्चर्य नहीं है, उपेंद्र कुशवाहा को मंत्रिमंडल में शामिल कर नीतीश मंत्रिमंडल में भी सोशल इंजीनियरिंग कर देंगे और पार्टी में भी एक बड़ा नेता बढ़ जाएगा.
कुशवाहा भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद उन्हें बड़ा भाई बताते रहे हैं. उधर, इस मामले में दोनों दलों के नेता हालांकि अभी तक कुछ भी खुलकर अधिकारिक रूप से नहीं बोल रहे हैं.
बहुजन समाज पार्टी के बिहार में एकमात्र विधायक जमां खां जदयू में शामिल हो चुके है और लोजपा के विधायक भी जदयू के नेता से मिल चुके हैं, बिहार में ओवैसी के पांच विधायक भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिल चुके हैं, जदयू के नेता विपक्षी दलों के विधायकों के संपर्क में होने का दावा भी करते हैं.
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