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यूपी की अस्थायी जेल में महिला का गर्भपात, 3 दिन तक नहीं मिला इलाज

लखनऊ के श्री रामस्वरूप कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट को यूपी सरकार ने अस्थायी जेल बनाया है 

ऐश्वर्या एस अय्यर
भारत
Updated:
रिजवाना बेगम प्रशासन पर असंवेदनशील होने का आरोप लगाती हैं
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रिजवाना बेगम प्रशासन पर असंवेदनशील होने का आरोप लगाती हैं
(फोटो: अरुप मिश्रा)

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29 साल की रिजवाना कहती हैं कि ये पहली बार था जब वो जमात में हिस्सा ले रही थीं, उम्मीद थी कि इससे 'ऊपरवाला' उन्हें और उनके होने वाले बच्चे को आशीर्वाद देगा. लेकिन अब उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया है. दरअसल, लखनऊ के श्री रामस्वरूप कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट को यूपी सरकार ने अस्थायी जेल बनाया है और यहीं पर 9 मई को उनका गर्भपात हो गया.

रिजवाना बेगम प्रशासन पर असंवेदनशील होने का आरोप लगाती हैं और उनकी बस यही मांग है कि उन्हें वापस घर वापस भेज दिया जाए. 
(फोटोः Aishwarya S Iyer/The Quint)

14 फरवरी को रिजवाना बेगम अपने पति मोहम्मद रफी और 8 दूसरे लोगों के साथ आंध्र प्रदेश के गुंटूर से चलीं थीं. मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में, जब कई तबलीगी जमात के सदस्यों कोरोना वायरस पॉजिटिव पाए गए और देशभर में कोरोना संक्रमितों की संख्या में उछाल आया था, उस वक्त ये लोग लखनऊ के महमूदनगर में थे. यूपी पुलिस ने रिजवाना समेत इन सभी लोगों को 3 अप्रैल को अपनी कस्टडी में लिया था.

इन लोगों के खिलाफ 6 अप्रैल को IPC की धारा-188, 269, 271 और एपिडेमिक एक्ट के सेक्शन 3 के तहत FIR दर्ज किया गया. जीसीआरजी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में चार बार कोविड -19 टेस्ट निगेटिव आने के बाद इन लोगों में से 10 को 3 मई को श्रीराम स्वरूप कॉलेज लाया गया, आरोप है कि ये वादा किया गया कि दिन बाद घर वापस भेज दिया जाएगा. अब दो हफ्ते बीच जाने के बाद भी वो लोग कॉलेज में ही हैं.

(फोटोः Aishwarya S Iyer/The Quint)
ये स्टोरी है रिजवाना के अपने बच्चे को खो देने की. कैसे उसे हॉस्पिटल में मेडिकल सुविधा दिलाने में तीन दिन की देरी हुई.
“मैंने 44 दिनों तक क्वॉरंटीन में रहने के बाद अपने बच्चे को खो दिया है. यहां रहने या खाने के हालत बहुत दिक्कत वाले हैं, दवाइयां तक मिलनी मुश्किल हैx. जब से हम यहां आएं हैं मैं दबाव में हूं. खून की कमी के कारण दर्द हो रहा है, कमजोरी महसूस कर रही हूं, बहुत परेशान हूं. मुझे घर जाने दीजिए’’ द क्विंट से बातचीत में रिजवाना कई बार टूट जाती हैं, रोती हैं. 9 मई की रात को अस्थायी जेल में उनका गर्भपात हुआ लेकिन 12 मई तक उन्हें हॉस्पिटल में मेडिकल सुविधाएं हासिल करने के लिए रुकना पड़ा.
(फोटोः Aishwarya S Iyer/The Quint)

तीनों अस्पतालों ने नहीं किया अल्ट्रासाउंड

9 मई की रात को रिजवाना के गर्भाशय से बहुत खून बहना शुरू हो गया. जैसे-जैसे उसने दर्द का एहसास किया, उसे महसूस हुआ कि उसका गर्भपात हो रहा है. "मेरे पहले से ही दो गर्भपात हो चुके हैं. जमात में मैं आशीर्वाद लेने के लिए शामिल हुई थी, यह सुनिश्चित करने के लिए कि मुझे एक स्वस्थ बच्चा चाहिए, लेकिन यह इतना डरावना और तनावपूर्ण समय हो गया है, कृपया मुझे घर ले जाएं," वह फिर से टूट जाती है.

मोहम्मद मुस्तफा जो जमात के दस सदस्यों में, समूह का प्रमुख होने के साथ-साथ रिजवाना का चचेरा भाई भी है. उसने बताया कि, दर्द में और खुद को साफ रखने की कोशिश में, उनके जमात ने अधिकारियों को सूचना दी. हालांकि, 10 मई की शाम तक कोई डॉक्टर उसे देखने नहीं आया.

मोहम्मद मुस्तफा (फोटोः Aishwarya S Iyer/The Quint)

मुस्तफा ने द क्विंट को बताया, '10 मई को लगभग 4 बजे एक महिला डॉक्टर को रिजवाना को देखने के लिए भेजा गया था. उसने उसकी स्थिति देखी, कुछ दवाइयां लिखी और कहा कि अल्ट्रासाउंड की आवश्यकता है उसे जल्द ही अस्पताल से रेफर किया जाना चाहिए. उसने कहा कि केवल अस्पताल में ही उसकी मदद करने का उपकरण है.'

मुस्तफा ने कहा, पांच घंटे बीतने के बाद रात में लगभग 10 बजे एम्बुलेंस आखिरकार रिजवाना को अस्पताल ले गई. वे सीधे वीरांगना अवंती बाई महिला चिकित्सालय गए, जहां अधिकारियों ने कहा कि एक अल्ट्रासाउंड की जरूरत थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. 'देर होने की वजह से सब कुछ बंद हो गया था. उन्होंने हमें सरकारी अस्पताल जाने के लिए कहा. हम फिर किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी अस्पताल पहुंचे.

मुस्तफा ने बताया, उन्हें देखते ही अधिकारी उनसे पूछने लगे कि वे कहां से हैं? "जब हमारे साथ गए पुलिसकर्मियों ने कहा कि हम रामस्वरूप केंद्र से थे, तो अस्पताल के अधिकारियों ने हमें प्रवेश करने से रोका. उन्होंने हमें अपनी कोविड-19 नकारात्मक रिपोर्ट दिखाने को कहा. हमने उनके साथ तर्क करने की कोशिश की, हमने उन्हें कहा हमारा चार बार निगेटिव टेस्ट किया है लेकिन क्वॉरंटीन सुविधाओं में दूसरों की तरह हमें रिपोर्ट की कॉपी नहीं दी जा रही थी.

मुस्तफा ने कहा कि, वह उन पुलिसकर्मियों को देखता रहा जो अधिकारियों को समझाने के लिए उनके साथ गए थे, लेकिन उन्होंने नहीं सुना.

(फोटोः Aishwarya S Iyer/The Quint)

तब्लीगी जमात लखनऊ के प्रमुख मौलाना अनीस नदवी ने खुद रिजवाना को देखने की कोशिश की, "मैंने मुख्यमंत्री कार्यालय को फोन किया और उन्हें 10 मई को रिजवाना के बारे में बताया, मैं भी केजीएमयू अस्पताल में था, लेकिन अस्पताल के कर्मचारियों ने सुनने से इनकार कर दिया. उन्होंने बिना परीक्षण के उसे नहीं छूने को कहा.

अस्पताल के अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि, एक और परीक्षण किया जाए. रिजवाना को रात में अस्पताल में अकेले रहना होगा, सुबह उठकर टेस्ट करवाना होगा. मुस्तफा ने कहा, "यह हमारी गलती नहीं है कि हमारे पास रिपोर्ट नहीं थी. हम रिजवाना को संक्रमित वातावरण में अकेले नहीं छोड़ सकते थे जबकि वह पहले से बिमार थी. हम ऐसा नहीं करना चाहते थे और इसलिए हमने छोड़ दिया."

अगली सुबह 11 मई को जब क्वारंटाइन सुविधा के अधिकारियों को पता चला कि रिपोर्ट नहीं होने के कारण रिजवाना को उसका अल्ट्रासाउंड नहीं मिला, तो उन्होंने उसे रिपोर्ट सौंप दिया.

मुस्तफा कहते हैं, "हमने रिपोर्ट ली और केजीएमयू अस्पताल वापस चले गए. इस बार उन्होंने अल्ट्रासाउंड करवाने की मशीनरी नहीं होने की बात कही"

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चार कोरोना टेस्ट निगेटिव होने के बाद भी पांचवें टेस्ट का दबाव

रिजवाना की बेचैनी, परेशानी और थकावट लगातार बढ़ रही थी. रिजवाना ने कहा, सबसे पहले उन्होंने हमें रिपोर्ट लेने को कहा और उस आधार पर मेरा इलाज करने से इनकार कर दिया. उसके बाद उन्होंने अल्ट्रासाउंड करने से इनकार कर दिया. उसने कहा, अल्ट्रासाउंड कराने के लिए एक अस्पताल खोजने के लिए संघर्ष किया गया. तब उसे चरक डायग्नोसिस ले जाया गया, यहां भी डॉक्टर ने मेरा इलाज करने से मना कर दिया. तब भी दर्द से उसका खून बह रहा था.

मुस्तफा कहते हैं कि जब डॉक्टरों ने उसकी रिपोर्ट देखी तो उसने कहा कि उसका तापमान भी कम है. "डॉक्टर चिंतित थे कि उन्हें COVID -19 टेस्ट के लिए पॉजिटिव हो सकते हैं, इसलिए अल्ट्रासाउंड करने से इनकार कर दिया." वे टेस्ट के बिना ही रिजवाना के साथ क्वॉरंटीन सेंटर लौट आए. वे भावनात्मक और शारीरिक रूप से बहुत दुखी थे.

शेख रुकिया जो उन दस में से एक थी वह कमजोर रिजवाना के बगल में बैठी थी. उन्होंने कहा, रिजवाना बहुत दर्द में है और इतना घूमने के बाद वह और कमजोर हो गई है.

(फोटोः Aishwarya S Iyer/The Quint)

मुस्तफा ने कहा, इन सब के बाद रामस्वरुप के अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि रिजवाना को पांचवा COVID-19 टेस्ट कराना चाहिए क्योंकि उसे हल्का बुखार था. "हमने कहा कि हम इसे नहीं कराना चाहते, हमने यह भी कहा कि हम अब अल्ट्रासाउंड भी नहीं चाहते हैं. वह महिला डॉक्टर की दवाइयां ले लेगी, वैसे भी उसके शरीर से खून धीरे-धीरे बह चुका था.' हालांकि, डॉक्टर और पुलिस ने मिलकर टेस्ट के लिए हम पर दबाव डाला, जिसके बाद हमें टेस्ट कराना पड़ा.

जबकि परीक्षण 11 मई को किया गया था, 12 मई शाम तक, रिजवाना को न ही पांचवें COVID-19 रिजल्ट और न ही उसके अल्ट्रासाउंड मिले थे.

क्वॉरंटीन के 40 दिन बाद भी नहीं छोड़ा गया

गुंटूर के तब्लीगी जमात के जिला प्रमुख, 64 वर्षीय शेख न्यामतुल्ला ने आंध्र प्रदेश के रिपोर्टर को फोन कर कहा, "वे कभी जेल नहीं गए. वे मर जाएंगे. मैं क्या करूं? मैं कलेक्टर से बात करने की कोशिश कर रहा हूं." दूसरे राज्यों से हमें ऐसी कोई समस्या नहीं है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, हमारे जमात के सदस्य गुजरात, वारंगल, नागपुर, तमिलनाडु और हैदराबाद से लौटे हैं. केवल उत्तर प्रदेश में उन्होंने हमारे लोगों के साथ इतनी बेरहमी से काम किया. केवल यूपी में ही उन्हें थप्पड़ मारा गया है उन पर मामले और क्वॉरंटीन के 40 दिन बिताने के बाद भी उन्हें नहीं छोड़ा गया.

शेख न्यामतुल्ला (फोटोः Aishwarya S Iyer/The Quint)

न्यामतुल्लाह ने कहा कि उन्होंने पहले ही गुंटूर कलेक्टर से बात की थी, जिन्होंने कहा था कि उन्होंने वह सब कुछ किया है जो वह कर सकते थे. उन्होंने कहा, "गुंटूर कलेक्टर ने मई की शुरुआत में सभी दस लोगों को वापस लाने के लिए पहले ही NOC भेज दिया था. उनके पास उन्हें नहीं छोड़ने के कोई कारण नहीं है. हमने वह सब किया जिसकी आवश्यकता थी.” द क्विंट ने एनओसी की एक प्रति देखी है.

मंडल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के शिवेर्डी कोली ने कहा कि, इन दस लोगों के साथ आतंकवादी जैसा बरताव किया जा रहा है. "ये लोग मेरे मंडल के हैं. जब आंध्र प्रदेश सरकार ने एक सप्ताह पहले ही NOC जारी किया है, तो यूपी सरकार आंध्र प्रदेश के लोगों को पास जारी क्यों नहीं किया? " कोल्ली ने कहा कि,

उन्होंने एडीएम लखनऊ और डीएम लखनऊ से रिजवाना की तत्काल देखभाल के बारे में बात की थी, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ. “वे ठीक से जवाब नहीं दे रहे हैं और न ही अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं. यह दुखद और अनैतिक है. उत्तर प्रदेश में ये क्या हो रहा है?”

द क्विंट ने लखनऊ प्रशासन के उन अधिकारियों तक पहुंचने की कोशिश की जिन्होंने हमारे सवालों को अनसुना कर दिया. लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय ने हमें अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) पूर्वी के पी सिंह से बात करने के लिए कहा. सिंह ने कहा कि रामस्वरूप कॉलेज उनके अधिकार क्षेत्र में आता है, उन्हें रिजवाना के मामले की जानकारी नहीं है. इसलिए मुझे लखनऊ के नोडल अधिकारी के सी त्रिपाठी से बात करनी चाहिए. द क्विंट ने त्रिपाठी के बयान के लिए मैसेज भेजे, लेकिन उन्होंने अभी तक हमें जवाब नहीं दिया है. अगर कोई अधिकारी जवाब देता है तो इस लेख में अपडेट किया जाएगा.

13 मई की सुबह रिजवाना को उसकी पांचवीं COVID-19 रिपोर्ट के लिए अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन पहले के चार टेस्टों की तरह वह भी निगेटीव था. मुस्तफा ने रिजवान के साथ अस्पताल जाते समय कहा, "हमें बुनियादी चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने के लिए तीन दिन तक दौड़ना पड़ा. यह सरकार हमारे साथ ऐसा क्यों कर रही है?"

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Published: 13 May 2020,11:21 PM IST

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