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उत्तराखंड (Uttarakhand) के उत्तरकाशी (Uttarkashi Tunnel Rescue) में सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिक आखिरकार लंबे इंतजार के बाद बाहर आ गए हैं. इस पूरे रेस्क्यू को सफलता के मोड़ तक पहुंचने में मौके पर मौजूद हरेक वर्कर से लेकर कर्मचारी और अधिकारी तक को श्रेय जाता है.
हम यहां आपको बताएंगे कि इस पूरे रेस्क्यू मिशन के पीछे के 7 ऐसे हीरो के बारे में, जिनके कौशल और श्रम की वजह से फंसे हुए श्रमिक सुरक्षित बाहर आ रहे हैं.
उत्तरकाशी टनल रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटे इंटरनेशनल टनल विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स की इस दौरान प्रमुख भूमिका रही. डिक्स इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं. वे टनलिंग में अपने काम के लिए 2011 एलन नेलैंड ऑस्ट्रेलेशियन टनलिंग सोसाइटी का पुरस्कार जीत चुके हैं.
उनके लिंक्डइन प्रोफाइल के अनुसार, अर्नोल्ड ने अपनी स्कूली शिक्षा यूके से पूरी की. मोनाश युनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया से ग्रेजुएशन किया है.
दशकों का अनुभव रखने वाले क्रिस कूपर एक माइक्रो-टनलिंग विशेषज्ञ हैं, जो 18 नवंबर से उत्तरकाशी में चल रेस्क्यू ऑपरेशन से जुड़े हैं.
कूपर सिविल इंजीनियरिंग बुनियादी ढांचे, मेट्रो सुरंगों, बड़ी सुरंग, डैम, रेलवे और खनन परियोजनाओं में विशेषज्ञता के साथ एक चार्टर्ड इंजीनियर हैं. वह ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना के अंतरराष्ट्रीय सलाहकार भी हैं.
आईएएस अधिकारी नीरज खैरवाल सिल्कयारा सुरंग ढहने की घटना को लेकर नोडल अधिकारी नियुक्त हैं. खैरवाल ने पिछले कई दिनों से रेस्क्यू ऑपरेशन की कमान संभाल रखी है. खैरवाल घंटे दर घंटे रेस्क्यू स्थल से सीएमओ और पीएमओ को अपडेट दे रहे हैं. वह उत्तराखंड सरकार में सचिव भी हैं.
भारतीय सेना के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल और एनडीएमए टीम के सदस्य सैयद अता हसनैन उत्तराखंड सुरंग दुर्घटना में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की भूमिका की देखरेख कर रहे हैं.
लेफ्टिनेंट जनरल हसनैन पूर्व में श्रीनगर में तैनात भारतीय सेना के जीओसी 15 कोर के सदस्य थे.
रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान जब ऑगर (ड्रिलिंग मशीन) मलबे में फंस कर खराब हो गई थी उसके बाद छह रैट होल खनन विशेषज्ञों को बुलाया गया था. इन्हें रेट होल माइनर्स इसलिए कहते हैं क्योंकि ये बिना ड्रिलिंग मशीन के इस्तेमाल किए मैन्युअली खुदाई करते हैं (बिलकुल एक चूहे की तरह). रेट माइनर्स मध्य प्रदेश से बुलाए गए हैं.
सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने के महत्वपूर्ण मिशन में कुछ महिला श्रमिकों के प्रयासों पर भी किसी का ध्यान नहीं गया है. हाथों में फावड़े और बाकी निर्माण उपकरण लिए, सीमा सड़क संगठन के जनरल रिजर्व इंजीनियर फोर्स की महिला मजदूरों ने सुरंग के नीचे एक पहाड़ी की चोटी तक जाने वाले 1.5 किमी ट्रैक के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
सरकार की पांच अलग-अलग एजेंसियां भी इस सफल रेस्क्यू ऑपरेशन के पीछे रहीं. ये एजेंसियां हैं-
तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ONGC)
सतलुज जल विद्युत निगम (SGVNL)
रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL)
राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड (NHICDL)
टेहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (THCL)
इसके अलावा एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, मेडिकल टीम और भारतीय सेना की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
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