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उत्तराखंड आपदा:जहां से शुरू हुआ चिपको मूवमेंट,उसी गांव में तबाही

पेड़ काटने के आदेश के खिलाफ रैणी गांव की महिलाओं ने एक अनोखा चिपको आंदोलन आंदोलन शुरू किया था.

क्विंट हिंदी
भारत
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ग्लेशियर फटने से उत्तराखंड में आई बाढ़ और हुआ भू्स्खलन
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ग्लेशियर फटने से उत्तराखंड में आई बाढ़ और हुआ भू्स्खलन
फोटो: क्विंट हिंदी

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उत्तराखंड में करीब साढ़े सात साल बाद फिर से कुदरती कहर आया है. इस जल प्रलय ने चमोली जिले के रैणी गांव में भारी तबाही मचाई है. इसी गांव के नजदीक ग्लेशियर टूटा है. ये वही रैणी गांव है जिसका नाम चिपको आंदोलन से जुड़ा है. जी हां, 1973 में शुरू हुए चिपको आंदोलन की लीडर गौरा देवी का गांव. करीब 47 साल पहले पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई लड़ने वाली गौरा देवी का गांव आज भीषण बाढ़ की चपेट में है.

जल प्रलय की भयावाह कहानी

रविवार की सुबह उत्तराखंड के चमोली में अचानक अफरातफरी मच गई. दरअसल चमोली के तपोवन के पास सप्तऋषि और चंबा पहाड़ हैं. इन पहाड़ों के बीच में ग्लेशियर टूटकर ऋषिगंगा नदी में गिरा. इसके टूटने के बाद पहाड़ों से तेज रफ्तार के साथ पानी नीचे उतरने लगा, पानी के साथ मलबा और पत्थर भी नीचे आए, जैसे-जैसे पानी नीचे की ओर बढ़ता गया, तबाही मचाता रहा. पास का मुरिंडा जंगल भी इसकी चपेट में आ गया.

ये वही जंगल है जहां से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी. माना जा रहा है कि इस बाढ़ की वजह से करीब 170 लोग अब भी लापता हैं और करीब 14 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है.

चिपको आंदोलन और रैणी गांव

1973 में पेड़ काटने के सरकारी आदेश के खिलाफ रैणी गांव की महिलाओं ने एक अनोखा आंदोलन शुरू किया था, जिसका नाम दिया गया चिपको आंदोलन.

दरअसल, उस वक्त रैणी गांव के दो हजार से ज्यादा पेड़ काटने की बात सामने आई थी, जिसका रैणी गांव के लोगों ने विरोध किया. लेकिन सरकार और ठेकेदारों के फैसलों में कोई बदलाव नहीं आया. जब ठेकेदारों ने मजदूरों को जंगल के पेड़ काटने के लिए भेजा तब गौरा देवी अपनी साथियों के साथ उन पेड़ों से चिपक गईं. पेड़ काटने आए लोगों के पास कुलहाड़ी थे लेकिन फिर भी महिलाएं नहीं हटी और पेड़ काटने वालों से कहती कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को भी काट लेना. इस विरोध को देखकर आखिरकार पेड़ काटने वाले वापस लौट गए. फिर अगले दिन अखबारों में जब खबर आई तो ये मामला दुनियाभर के सामने आया. जिसके बाद सरकार ने अपने आदेश वापस ले लिए.

आज उसी रैणी गांव पर्यावरण को हुए नुकसान की कीमत चुका रहा है. रैणी गांव के नजदीक चल रहे ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट भी सैलाब की आगोश में समा गया है. प्रोजेक्ट में काम कर रहे कई लोग फंसे हुए हैं.

लोगों ने प्रोजेक्ट का किया था विरोध

साल 2019 में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें उसी ऋषिगंगा प्रोजेक्ट का जिक्र किया गया था, जो इस सैलाब में तबाह हो गया है. इसमें बायो स्फेयर रिजर्व को होने वाले नुकसान और प्रोजेक्ट में इस्तेमाल होने वाले विस्फोटकों का जिक्र किया गया था.

इसके बाद हाईकोर्ट ने रैणी गांव के आसपास किए जाने वाले विस्फोटों पर रोक लगा दी थी. इसके अलावा हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन को आदेश दिया कि वो एक टीम बनाकर पर्यावरण को होने वाले नुकसान की जांच करें. ग्रामीणों ने भी इस प्रोजेक्ट का खूब विरोध किया था. लेकिन आखिरकार प्रोजेक्ट का काम शुरू हो गया और बताया गया है कि ये लगभग पूरा बन चुका था. लेकिन प्रकृति ने अब खुद ही इस प्रोजेक्ट को तबाह कर दिया है.

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चीन को जोड़ने वाला पुल बहा

भास्कर अखबार के मुताबिक ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट को तबाह करने के बाद सैलाब आगे बढ़ा और चीन बॉर्डर को जोड़ने वाला ब्रिज बहा ले गया. ये अकेला ब्रिज था जो भारतीय सैनिकों को चीन बॉर्डर से सड़क के रास्ते पहुंचने में मदद करता था. यही नहीं इस पुल के टूटने से आस-पास के 12 गांवों से संपर्क भी टूट गया है. इनमें पल्ला रैणी, लाता, सुराइथोत, तोलम, सुकि, भलगांव, पंगरसु, तमकनाला शामिल हैं. वहीं पुल के टूटने और इन इलाकों में पानी के बहाव की वजह से कई लोग अब भी लापता हैं.

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