Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बनारस के घाट पर चिताओं के बीच क्यों सजती है तवायफों की महफिल?

बनारस के घाट पर चिताओं के बीच क्यों सजती है तवायफों की महफिल?

यह अजीब जरूर है, लेकिन सिर्फ उनके लिए, जो यहां की परम्परा को नहीं जानते.

विक्रांत दुबे
भारत
Updated:
वाराणसी के मणिकर्णिका श्मशान घाट पर तवायफों की महफिल सजी.
i
वाराणसी के मणिकर्णिका श्मशान घाट पर तवायफों की महफिल सजी.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

श्मशान चाहे कोई भी, वहां तो सिर्फ अपनों से बिछुड़ने के गम में डूबे लोग ही मिलेंगे. लेकिन बनारस के मणिकर्णिका घाट, जहां चिता की आग कभी नहीं बुझती, वहां की अजब परम्परा है. चैत्र नवरात्र की सप्तमी पर तवायफें पूरी रात चिताओं के बीच ठुमके लगाती हैं.

गमों के सैलाब के बीच तवायफों की यह महफिल किसी जश्न का जरिया नहीं, बल्कि ये महाश्मशान बाबा के दर पर उनकी तपस्या है. मान्यता है कि ऐसा करने पर तवायफों को अगले जन्म में इज्जत भरी जिन्दगी मिलती है.

पूरे श्रृंगार के साथ सजधज कर नाचती हैं तवायफें(फोटो: क्विंट हिंदी)

सती के वियोग में जहां कभी भगवान शिव ने तांडव किया था, उसी वाराणसी के मणिकर्णिका श्मशान घाट पर तवायफों की महफिल सजी. चारों तरफ चिताएं जल रह थीं और उनके बीच करीब एक दर्जन तवायफें श्मशान बाबा की पूजा के बाद एक-एक कर मंच पर ठुमके लगा रही थीं.

इस माहौल को देखकर किसी को भी अजीब लगेगा कि जहां लोग अपनों के बिछुड़ने के गम में रो रहे हैं, तो कोई उन्हें संभाल रहा है. वहीं दूसरी तरफ तवायफें ठुमके लगा रही हैं.

यह अजीब जरूर है, लेकिन सिर्फ उनके लिए, जो यहां की परम्परा को नहीं जानते. पूरे श्रृंगार के साथ सज-धजकर नाच रही तवायफें, शव लेकर आये परिजनों से कहीं ज्यादा दुखी हैं. उन्हें अगले जन्म में इस तरह की जिंदगी का सामना न करना पड़े, इसलिये वो पूरी रात इस तरह तपस्या करती हैं.

चिताओं के आसपास करीब एक दर्जन तवायफों ने लगाए ठुमके(फोटो: क्विंट हिंदी)

यूपी के गाजीपुर जिले के बसुका से आई एक तवायफ ने बताया:

मैं यहां पहली बार आई हूं, इस श्मशान पर श्रृंगार के आखिरी दिन नाचने से अगला जन्म अच्छा होता है. मुझे मेरी एक परिचित ने यह बताया था.

बनारस के पिन्टू किन्नर भी इस कार्यक्रम में आए थे. उनका कहना था कि उन लोगों को तो मंच नहीं मिलता, फिर भी वे पूरी रात बाबा की सेवा करते रहे. पिन्‍टू ने कहा कि बाबा उन्‍हें आशीर्वाद देगें और अगले जन्म में ऐसा नहीं होगा.

बनारस के पिन्टू किन्नर भी इस कार्यक्रम में आए थे.(फोटो: क्विंट हिंदी)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कब से कब तक चलता ये कार्यक्रम

ये कार्यक्रम हर साल चैत्र नवरात्र की पंचमी से लेकर सप्तमी तक चलता है.(फोटो: क्विंट हिंदी)

यह कार्यक्रम हर साल चैत्र नवरात्र की पंचमी से लेकर सप्तमी/अष्टमी तक चलता है. इसमें आखिरी दिन तवायफें आती हैं. हालांकि इस परम्परा को लेकर एक और भी कहानी बताई जाती है.

पंद्रहवीं शताब्दी में आमेर के राजा और अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मानसिंह ने इस पौराणिक घाट पर भूत भावन भगवान शिव के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था, जो इस शहर के आराध्य देव भी हैं. इस मौके पर वो सगीत का कार्यक्रम करना चाहते थे, लेकिन उस वक्‍त कोई भी कलाकार इस श्मशान में आने की हिम्मत नहीं कर सका. तब तवायफों को बुलाया गया. इन लोगों ने उस समारोह में बेहिचक शिरकत की, तभी से ये परम्परा चली आ रही है. आज भी यहां आना हर तवायफ अपना सौभाग्य समझती हैं.

ये भी पढ़ें- बनारस की होली में सराबोर विदेशियों का देसी हुड़दंगी स्टाइल देखिए

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 25 Mar 2018,04:12 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT