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कोरोना महामारी को लेकर देश के अलग-अलग हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर केंद्र सरकार की नाकामियों पर तीखी टिप्पणी की थी.
केंद्र सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट की इन टिप्पणियों को मीडिया में काफी सुर्खिया मिलीं और लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बना.
हालांकि मीडिया में जो कुछ छपा वो कोर्ट रूम में हुई बहस का हिस्सा था और कोर्ट द्वार दिए गए औपचारिक आदेश में इसका कहीं जिक्र नहीं था.
26 अप्रैल को एक खबर प्रकाशित हुई कि मद्रास हाईकोर्ट ने कोरोना केसों में बढ़ोतरी के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराया, जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार और मतदान हुआ था.
चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक रैलियों में कोविड नियमों का पालन नहीं होने पर हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा-
हत्या के केस को लेकर मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी ने खूब सुर्खियां बटोरीं, लेकिन कोर्ट के मूल आदेश में इसका उल्लेख नहीं था.
अपने आदेश में मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि, चुनाव आयोग को 30 अप्रैल तक एक प्लान देना होगा, जिसमें इस बात का उल्लेख हो कि 2 मई को मतगणना के दौरान कोविड गाइडलाइंस को लेकर उनकी क्या तैयारी होगी और वे कैसे इसे मैनेज करेंगे.
24 अप्रैल को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में कोविड संकट को लेकर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि, अगर केंद्र या राज्य के किसी अधिकारी ने ऑक्सीजन की सप्लाई को बाधित किया, तो उसे छोड़ेंगे नहीं.
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पाली की बेंच ने महाराजा अग्रसेन हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की.
28 अप्रैल को झारखंड हाईकोर्ट ने ड्रंग कंट्रोलर को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट की राय में ड्रग कंट्रोलर अपने जिम्मेदारियों को निभाने में नाकाम रहा और जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी होती रही.
कोर्ट ने कहा कि ड्रग कंट्रोलर का तरीका दुर्भाग्यपूर्ण है और गंभीर चिंता का विषय है.
हालांकि एक बार फिर, कोर्ट ने ड्रग कंट्रोलर या उनके अधिकारियों के खिलाफ को कड़ी कार्रवाई नहीं की. बल्कि कोर्ट ने राज्य सरकार से जीवन रक्षक जरूरी दवाओं की आपूर्ति बनाए रखने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में अदालत को अवगत कराने को कहा.
उत्तर प्रदेश में, पंचायत चुनाव में लगे 135 लोगों की ड्यूटी के दौरान कोविड से मौत हो गई. इस मामले में ज्यूडिशियल नोटिस लेते हुए 27 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाई.
इससे पहले यूपी में कोविड-19 के मामलों में बढ़ोतरी के बावजूद हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव को स्थगित करने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि चुनावी केंद्रों पर पर्याप्त हेल्थ प्रोटोकॉल हैं.
जबकि कोर्ट ने चुनाव आयोग को कारण बताओ नोटिस जारी किया और न राज्य सरकार व राज्य पुलिस के खिलाफ कोई कार्रवाई की. वहीं सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के खिलाफ कार्रवाई की बात महज कोर्ट रूम में बहस का हिस्सा थी.
हाईकोर्ट की टिप्पणी और मूल आदेश में यह अंतर एक गंभीर सवाल खड़ा करता है. क्या कभी सरकार और राज्य मशीनरी को भी अपने कर्तव्यों को नहीं निभाने को लेकर दंडित किया जाएगा?
हाईकोर्ट के पास समय है कि वह दोबारा अपने आदेश को देखे और यह जानने की कोशिश करे उसके पिछले कितने आदेशों की पूर्ति करने में सरकार विफल रही, आदेश को नजरअंदाज किया या आदेश के बावजूद कोई जरूरी कदम नहीं उठाए गए. देश कई सालों से इसका जवाब जानने के लिए तरस रहा है.
कोरोना संकट के इस दौर में इस प्रकार की लापरवाही और अपराधों के लिए क्या सिर्फ ‘फटकार’ ही काफी होगी?
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