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भारतीय जनता पार्टी को 2003 में ऐतिहासिक जीत दिलाने के बाद से वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) ने राजस्थान की राजनीति में हमेशा केंद्रीय भूमिका निभाई है. लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले BJP के दो महत्वपूर्ण चुनाव पैनलों से राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री की एकदम से गैरहाजिरी ने चौतरफा चर्चाओं को जन्म दे दिया है.
कई लोग इसे एक झटके के तौर पर देख रहे हैं, इस गैरहाजिरी के चलते वसुंधरा कुछ ही मिनटों में सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगीं. वसुंधरा के राजनीतिक भविष्य पर दिल्ली और जयपुर, दोनों जगह सत्ता के गलियारों में चर्चाएं चल पड़ी हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक हफ्ते पहले जयपुर में BJP के ‘नहीं सहेगा राजस्थान’ अभियान के तहत हुए बड़े विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं हुई थीं. अब उनकी एक गैरमौजूदगी ने राजनीतिक हलकों में और ज्यादा सवाल खड़े कर दिए हैं और इन अटकलों को जन्म दिया है कि वसुंधरा नाराज हैं और BJP में तनाव बढ़ सकता है.
आगामी चुनाव में वसुंधरा की भूमिका को लेकर बढ़ती अटकलों के बीच बड़ा सवाल यह है कि क्या BJP के शीर्ष नेतृत्व ने अपने CM चेहरे के रूप में वसुंधरा से इतर विकल्प देखने का फैसला ले लिया है?
BJP के अंदरूनी सूत्र दावा करते हैं कि जनवरी में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद राजस्थान की एक ‘निश्चित योजना’ और ‘स्पष्ट तस्वीर’ पेश की जा सकती थी. अब अगस्त खत्म होने को है लेकिन BJP नेतृत्व अभी भी राजस्थान में अपनी सबसे बड़ी नेता की सटीक भूमिका बता पाने से लाचार है.
पार्टी का असमंजस वसुंधरा की बड़ी भूमिका निभाने की गहरी ख्वाहिश के एकदम उलट है.
हाल के सालों में कई शक्ति प्रदर्शनों के जरिये वसुंधरा ने राजस्थान में BJP की राजनीति का केंद्रीय व्यक्तित्व बने रहने की अपनी ख्वाहिश जाहिर की है. उन्होंने तकरीबन दो दशकों तक प्रदेश BJP को एक अकेली महिला के पावर हाउस की तरह चलाया, लेकिन 2018 की चुनावी हार के बाद उनके सितारे गर्दिश में आए तो BJP आलाकमान ने भी उन्हें दरकिनार कर दिया.
वसुंधरा और उनके वफादारों के लिए उदासीनता दिखाई गई, जबकि उनके विरोधियों को राजस्थान में अगली पीढ़ी का नेतृत्व तैयार करने के नाम पर महत्वपूर्ण भूमिकाएं दी गईं.
इन नए लोगों में अधिकांश RSS से थे और इनमें शामिल थे पहली बार विधायक बने सतीश पूनिया जिन्हें राज्य BJP अध्यक्ष बनाया गया, अमित शाह के शिष्य और वसुंधरा के कट्टर प्रतिद्वंद्वी गजेंद्र सिंह शेखावत, जिन्हें केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बनाया गया था, और ओम बिड़ला जिन्हें संसद में केवल पांच साल के कार्यकाल के बाद लोकसभा का स्पीकर बना दिया गया. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ वसुंधरा के असहज रिश्तों के कारण उन्हें किनारे लगाना आसान हो गया.
हाशिए पर डाल दिए जाने के बावजूद वसुंधरा ने झुकने से इनकार कर दिया और अपने विरोधियों का मुकाबला करने के लिए एक रणनीति बनाई. “देव दर्शन यात्रा” या राजस्थान के प्रमुख मंदिरों की धार्मिक यात्राओं की आड़ में अपनी महत्वाकांक्षाओं को छिपाते हुए वसुंधरा जनता की नजरों में बनी रहीं.
वसुंधरा के वफादारों ने उनकी जनता पर पकड़ दिखाने के लिए मंदिरों के इलाके में उनके जन्मदिन समारोहों को बड़े कार्यक्रमों में बदल दिया. वसुंधरा के धार्मिक-राजनीतिक कार्यक्रमों ने उनका राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बने रहना मुमकिन बनाया और BJP का सीएम फेस बनने की उनकी दावेदारी को धार दी, जैसा कि हाल के सालों में उनके वफादार बार-बार मांग करते रहे हैं.
निश्चित रूप से शह मात की इन चालों से गुटीय झगड़े बढ़े और वसुंधरा के वफादारों और RSS धड़े के नौजवान नेताओं के बीच लगभग खुला युद्ध चला. अचरज की बात नहीं है कि BJP राजस्थान में ज्यादातर उपचुनाव हारती रही और कोई बड़ा आंदोलन खड़ा करने में भी नाकाम रही.
अब उन्हें दरकिनार किए जाने पर भारी शोर-शराबे के बावजूद हालात को गहराई से समझने वाले पर्यवेक्षकों का कहना है कि न सिर्फ वसुंधरा, बल्कि सीएम पद के सभी प्रमुख उम्मीदवार इन पैनलों में नहीं हैं. उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी गजेंद्र शेखावत से लेकर विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौर और BJP के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया से लेकर मौजूदा प्रदेश इकाई प्रमुख सीपी जोशी तक, सीएम की दौड़ में कोई भी प्रमुख नेता इन दोनों पैनलों में नहीं है.
BJP जल्द ही एक चुनाव अभियान समिति का ऐलान कर सकती है, जिसमें ये सभी दिग्गज नेता एक साथ शामिल होंगे और वसुंधरा उस पैनल की प्रमुख हो सकती हैं. मौजूदा पैनल में इकलौता बड़ा नाम कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल का है, जिन्हें शायद SC-ST मतदाताओं को लुभाने के लिए एक रणनीतिक कदम के तौर पर लिया गया है.
गौरतलब है कि BJP सितंबर में राज्य में ‘परिवर्तन यात्रा’ निकालने की भी योजना बना रही है और चर्चा है कि चारों नेता वसुंधरा, शेखावत, पूनिया और प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी मिलकर इन यात्राओं की अगुवाई करेंगे.
यह पुराने दौर से बहुत अलग है जब राज्य में सभी BJP यात्राओं पर वसुंधरा का नियंत्रण होता था और यहां तक कि 2012 में RSS के बड़े नेता जीसी कटारिया को मेवाड़ क्षेत्र में अपनी यात्रा रद्द करने के लिए मजबूर किया था!
BJP ने हाल के दिनों में बार-बार संकेत दिया है कि राजस्थान चुनाव के लिए पीएम मोदी उसका सबसे बड़ा चेहरा होंगे. यह राज्य के कई नेताओं के लिए अच्छा है जो खुद को योग्य CM विकल्प मानते हैं और CM की दौड़ में बने रहने के लिए BJP के राजस्थान अभियान के लिए ‘सामूहिक नेतृत्व’ मॉडल के हिमायती हैं.
इस हिसाब से वसुंधरा को प्रमुख चुनाव पैनलों से बाहर रखना इशारा देता है कि वसुंधरा को केंद्रीय व्यक्तित्व के रूप में पेश करने की BJP की कोई योजना नहीं है. इसके बजाय, पार्टी वसुंधरा की भूमिका को अपरिभाषित रखकर ‘सामूहिक नेतृत्व’ को आगे बढ़ाने की ख्वाहिशमंद है.
वसुंधरा की भूमिका साफ न करने का फैसला एक समझदारी भरे आकलन पर आधारित है. अगर BJP बड़ी जीत हासिल करती है और स्पष्ट बहुमत हासिल करती है, तो पार्टी मुख्यमंत्री के रूप में एक नया चेहरा (असल में मोदी-शाह की जोड़ी का पसंदीदा व्यक्ति) चुन सकती है. लेकिन चुनाव के बाद के कठिन परिदृश्य में BJP आलाकमान बहुमत हासिल करने के लिए वसुंधरा के राजनीतिक कौशल और लंबे अनुभव का सहारा ले सकता है– कुछ वैसा ही जैसा अशोक गहलोत ने 2008 और 2018 में कांग्रेस के लिए किया था.
दिलचस्प बात यह है कि हाल के एक सर्वेक्षण ने BJP को और ज्यादा अचंभित कर दिया है जिसमें बताया गया है 36% BJP मतदाता वसुंधरा को CM देखना चाहते हैं, जबकि 33% समर्थक कोई नया नेता चाहते हैं! वसुंधरा को उन पैनलों से बाहर करना, जिन पर पहले उनका दबदबा था, यह इशारा दे सकता है कि BJP आलाकमान राजस्थान की एकमात्र महिला CM से परे देख रहा है, लेकिन लीडरशिप की कमान किसे मिलेगी, इस पर लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है.
फिलहाल, BJP के बड़े नेता अपनी तरफ से गुटबाजी पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं क्योंकि गुटबाजी भगवा कुनबे की चुनावी संभावनाओं के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है
राजस्थान में नेतृत्व की दुविधा हल करने में BJP की नाकामी के इन चुनावों में तकलीफदेह नतीजे हो सकते हैं. राजस्थान में पार्टी की सबसे लोकप्रिय नेता वसुंधरा राजे की अपरिभाषित भूमिका BJP की चुनावी संभावनाओं पर किस तरह असर करेगी, यह एक जटिल सवाल है. अगर उनके कुछ वफादारों के नाराजगी भरे बयान कोई इशारा हैं, तो ‘एंग्री वूमेन’ अपनी ही पार्टी के लिए एक खतरनाक प्रतिद्वंद्वी साबित हो सकती है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और राजस्थान की राजनीति के विशेषज्ञ हैं. NDTV में रेजिडेंट एडिटर के तौर पर काम करने के अलावा, वह जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफेसर रहे हैं. उनका ट्विटर हैंडल @rajanmahan है. यह लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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