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वन नेशन-वन इलेक्शन पर पक्ष-विपक्ष के क्या हैं तर्क?
पक्ष में समय-धन की बचत का तर्क, विपक्षी बता रहे अंसवैधानिक
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भारत
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वन नेशन-वन इलेक्शन पर छिड़ी है बहस
(फोटो: पीटीआई)
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वन नेशन-वन इलेक्शन पर मंथन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक हो रही है. इस बैठक में बीजेडी, जेडीयू, एसएडी, पीडीपी, एनसी, सीपीआई, सीपीआईएम जैसे कई राजनीतिक दल शामिल हुए हैं. तो वहीं, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बीएसपी, एसपी और आम आदमी पार्टी समेत अन्य गैर एनडीए दलों ने ‘‘वन नेशन-वन इलेक्शन’’ के मुद्दे पर असहमति जताते हुये बैठक में शामिल नहीं होने का फैसला किया है.
आखिर, वन नेशन-वन इलेक्शन मुद्दे पर सहमति और असहमति जताने वालों की दलीलें क्या हैं?
‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के मुद्दे पर सहमति जताने वाले दलों का कहना है कि देश में चुनावों पर बहुत खर्चा होता है. 2014 में लोकसभा चुनावों कराने में चुनाव आयोग को 3,426 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े, जबकि इस चुनाव में वास्तविक खर्च 35 हजार करोड़ रुपये आया था. रिपोर्ट्स की मानें तो 2019 में ये खर्च बढ़कर 60 हजार करोड़ तक पहुंच गया.
एक साथ चुनाव समय और पैसा बचाने में मदद कर सकते हैं. सरकारें चुनाव जीतने के बजाय बेहतर तरीके से शासन पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं.
एक बार चुनाव होने से ब्लैकमनी और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिलेगी. क्योंकि चुनाव के दौरान ब्लैकमनी का इस्तेमाल खुलेआम होता है.
बार-बार चुनाव कराने से राजनेताओं और पार्टियों को सामाजिक एकता और शांति को भंग करने का मौका मिल जाता है. बेवजह तनाव का माहौल बनता है.
एक साथ चुनाव कराने से सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनावी ड्यूटी पर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इससे वे अपने तय काम को सही से पूरा कर पाएंगे.
भारत में पहले भी एक साथ चुनाव हुए हैं. साल 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में आम चुनाव और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे.
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वन नेशन-वन इलेक्शन के विरोध में दिए जाने वाले तर्क
एक साथ चुनाव कराने से भी चुनावों पर बराबर ही खर्च आएगा. वन नेशन-वन इलेक्शन अपने आप में महंगी प्रक्रिया है. लॉ कमीशन का कहना है कि अगर 2019 में ही एक साथ चुनाव होते तो 4,500 करोड़ की कीमत के नए ईवीएम खरीदने पड़ते.
संविधान में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर कोई निश्चित प्रावधान का जिक्र नहीं है. एक साथ चुनाव संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
केंद्र सरकार को राज्य सरकारों को आर्टिकल 356 के तहत भंग करने का अधिकार है और इस अधिकार के होते हुए एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते.
यह चुनावों से स्थानीय मुद्दों को खत्म करने की साजिश है. इसका असर होगा कि राष्ट्रीय पार्टियों का क्षेत्र विस्तृत होता जाएगा और क्षेत्रीय पार्टियों का दायरा इससे कम होगा.
एक साथ चुनाव की स्थिति में स्थानीयता का मुद्दा कम प्रभावी रहेगा और संभव है कि लोग राष्ट्रीय मुद्दों पर ही वोट करें.
‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर सुझाव के लिए बनेगी कमेटी
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे पर विचार करने लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक समिति गठित करेंगे जो निश्चित समय-सीमा में अपनी रिपोर्ट देगी. सर्वदलीय बैठक के बाद सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री ने बैठक में कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे पर एक समिति गठित की जाएगी.
उन्होंने कहा कि यह समिति निश्चित समय-सीमा में अपनी रिपोर्ट देगी.