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जिस वक्त यह खबर सामने आई कि जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन के प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया है, उस पर ‘देशद्रोह’ का मामला दर्ज किया गया है और मामले की सुनवाई दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में की जाएगी, तो एक शख्स ने न सिर्फ उस फैसले का स्वागत किया, बल्कि उसका जश्न भी मनाया.
वह शख्स हैं विक्रम सिंह चौहान.
विक्रम ने ही सोमवार को पटियाला हाउस कोर्ट में हुई वकीलों की उग्र कार्रवाई का आह्वान किया था. वकीलों का वह ग्रुप, जिसने पत्रकारों और कुछ जेएनयू स्टूडेंट्स के साथ मारपीट की. साथ ही विक्रम वकीलों के उस ग्रुप के भी लीडर बने, जिसने बुधवार को जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार पर हमला किया.
आपको बता दें कि विक्रम ने अपने साथी वकीलों को संगठित करने के लिए फेसबुक का इस्तेमाल किया.
हरियाणा से वास्ता रखने वाले विक्रम के करीबी उन्हें एक वकील से ज्यादा बीजेपी के एक्टिव और कठोर पार्टी वर्कर के तौर पर जानते हैं. दिल्ली हाई कोर्ट के वकीलों में, विक्रम की प्रोफाइल का यह मजबूत और अभिन्न अंग है. फेसबुक प्रोफाइल पर विक्रम काफी एक्टिव हैं. अपनी ब्रांडिंग और पॉलिटिकल वैचारिकी के लिए उनका एक फेसबुक पेज भी है.
विक्रम के फेसबुक प्रोफाइल को देखकर लगता है कि जेएनयू मामले के बाद से उनकी फेसबुक पर होने वाली गतिविधियों में करामाती उछाल आया है. उनकी टाइमलाइन पर 11 फरवरी से 16 फरवरी के बीच जेएनयू मामले से जुडी कुल 9 पोस्ट हैं, जिनमें वह साथी वकीलों का आह्वान करते दिखते हैं, ताकि पटियाला हाउस कोर्ट में ‘देशभक्ति’ का प्रदर्शन किया जा सके.
विक्रम ने डीयू की लॉ फैकल्टी से वकालत की पढ़ाई की है. वह स्टूडेंट राजनीति में भी एक्टिव रहे, लेकिन किसी स्तर पर कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी. अब विक्रम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की रैलियों में शौकिया शिरकत करते हैं. 12 फरवरी को भी वह अपने कुछ वकील साथियों के साथ इंडिया गेट पर हुई एबीवीपी की रैली में गए थे और ऐलान किया था कि वह देशभक्ति में अपनी जान न्योछावर कर सकते हैं.
‘देशद्रोहियों’ के खिलाफ ‘भारत माता की जय’ कहकर प्रहार करने वाले विक्रम ने पटियाला कोर्ट में पहली सुनवाई से दो दिन पहले यानी 13 फरवरी को यह फेसबुक पोस्ट किया था. इस पोस्ट में चौहान लिखते हैं,’दूध मांगोगे, तो खीर देंगे...और आगे आप जानते ही हैं.’
फिर 13 फरवरी को अपनी दूसरी पोस्ट में विक्रम जेएनयू मामले की फास्ट ट्रैक जांच की मांग करते हैं. विक्रम की इस पोस्ट को 400 से ज्यादा लोगों ने लाइक किया था.
बहरहाल, जैसे ही वकीलों द्वारा पत्रकारों और स्टूडेंट्स के पीटे जाने की खबर फैली, सबसे पहले विक्रम ने अपनी प्रोफाइल पिक्चर और कवर फोटो चेंज किया, क्योंकि अब तक विक्रम को भी यह अहसास हो चुका था कि इस मामले को लेकर उसकी पूछ काफी बढ़ गई है.
उनके इस फोटो को कई लोगों ने लाइक किया. कई ने शुभकामनाएं दीं. और कुछ ने विक्रम को एक हीरो के तौर पर पेश करते हुए उनका छात्रों और पत्रकारों को पीटते वक्त का फोटो कमेंट बॉक्स में चस्पा किया. यहां दावे से कहा जा सकता है कि विक्रम को ‘काला’ रंग बहुत पसंद है. वो इस रंग को एंजॉय करते हैं. उसे प्रेक्टिस करते हैं. पत्रकारों पर किए हमले के बाद लोगों का पहला रिएक्शन यह था कि काले कोट पहनकर कोर्ट रूम में शायद गुंडे घुसे होंगे, क्योंकि वकील ऐसा नहीं कर सकते. लेकिन सच यह है कि विक्रम सब कुछ काला कोट पहनकर ही करते हैं.
पटियाला हाउस कोर्ट के परिसर में 15 फरवरी को हुआ दंगल सभी ने देखा. बार काउंसिल ने उसपर चिंता जताई थी. लेकिन विक्रम और उनके साथियों के लिए 16 फरवरी की सुबह एक गर्व का अहसास लेकर आई थी. 16 फरवरी की अपनी फेसबुक पोस्ट में विक्रम ने लिखा,’आज मुझे गर्व है कि मैं बार काउंसिल का मेंबर हूं.’ पूरा मैसेज यहां पढ़ें...
सूत्रों का दावा है कि विक्रम सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दिल्ली लेवल पर होने वाली बीजेपी की पार्टी मीटिंग्स में अधिक से अधिक लोगों के पहुंचने का आह्वान करते हैं. साथ ही दिल्ली में 21 फरवरी को होने वाली आरएसएस की रैली में भी विक्रम शामिल होंगे.
हालांकि अपने पॉलिटिकल रेफरेंस का इस्तेमाल करके टीवी और फिल्मी सितारों के साथ फोटो खिंचवाने का शौक रखने वाले विक्रम सिंह को 16 फरवरी को अहसास होता है मामले की सेंसिटिविटी का, और वह लिखते हैं...
और अगली सुबह विक्रम व साथियों ने पटियाला हाउस कोर्ट में कन्हैया कुमार पर हमला कर दिया.
विक्रम सिंह दिल्ली पुलिस द्वारा जारी किए गए समन को दरकिनार कर चुके हैं, जिसमें उनसे थाने में हाजिर होने को कहा गया था. और पुलिस स्टेशन जाने की जगह वह गुरूवार को कडकडडूमा कोर्ट पहुंचे, जहां उन्हें चंद वकीलों ने बहादुर और देशभक्त बताते हुए सम्मानित किया.
अब तक हर मौके पर कानून की जानकारी रखने वाले विक्रम सिंह चौहान, कानून को अपने हाथ में लेते दिखे हैं. उन्हें वहम है कि काला कोट पहनकर कानून को अपने हाथों में लेना संभव है.
वह जिस तरह से फैसले लेते हैं और कार्रवाई करते हैं, उन्हें लगता है कि वे वकील नहीं, जज हैं. और अगर ऐसा है, तो कानून को खिलौना बना देने वाले वकीलों का यह दौर भारतीय न्यायपालिका के ‘काले दौर’ से कम नहीं.
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