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आरएसएस के लिए जाति क्यों बन गई है सबसे बड़ा स्पीड ब्रेकर 

बीजेपी और आरएसएस जाति और धर्म की दुविधा में

संजय पुगलिया
भारत
Published:
(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)

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आरएसएस चाहता है जाति के चक्रव्यूह को तोड़कर सबको हिंदुत्व के दायरे में ले आया जाए, लेकिन अभी तक वो इसका फॉर्मूला क्रैक नहीं कर पाई है. ऐसे में आरएसएस के मन में क्या है? क्या ओबीसी और दलितों को बीजेपी और संघ पर भरोसा नहीं हो रहा है. वॉल्टर एंडरसन इस बारे में बड़ी रोचक थ्योरी देते हैं.

आरएसएस पर एक्सपर्ट के तौर पर मशहूर जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एंडरसन कहते हैं कि बीजेपी और संघ के लिए ये दुविधा तो जरूर है, जाति को नकारना हकीकत से मुंह मोड़ना होगा, लेकिन जैसे ही जाति की बात आती है तो धर्म पीछे चला जाता है.

मैंने एंडरसन से संघ और बीजेपी के लिए सबसे कठिन पहेली को डिकोड करने की कोशिश की

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जाति आरएसएस और बीजेपी के लिए एक समस्या है, यही वजह है कि वे सब कुछ करते हैं ताकि मैं अपनी जाति को भूल जाऊं आप अपनी जाति को भूल जाएं, जो हमारी सच्चाई है मुझे इससे कोई हैरानी नहीं हुई है. चाहे वह बात घुमा दी गई हो या फिर भी जब मैं वोट देने का फैसला करता हूं जाति मेरे मन में सबसे निर्णायक रूप में रहती है. बीजेपी राष्ट्रवाद की बात करती है वो राष्ट्रीय गौरव की बात करते हैं वो धर्म की बात करते हैं

नहीं वो (आरएसएस) शायद ही कभी धर्म के बारे में बात करते हैं

इसलिए वो जातिवाद की बात करते हैं क्योंकि वो जाति की वास्तविकताओं से डरते हैं वो चाहते हैं कि हम उसे भूल जाएं. जाति पर भगवा रंग लपेटने का एक बड़ा पैकेजिंग कर रहे हैं 

भगवा का जाति से कुछ लेना देना नहीं है. वास्तव में, आप इस मुद्दे को उठा रहे हैं. जाति और इसकी विरासत एक मुद्दा है क्योंकि वो एक होने की वजह चाहते हैं. आइए इसका सामना करें. जाति और जाति विरासत एकता के रास्ते में खड़ी है, इन चीजों को सकारात्मक रूप में देखिए अब मराठा इस बात पर बोल रहे हैं इस क्षेत्र में आपके पास जाट हैं और अगर कुछ भी हो ये चीजें जाति की पहचान को मजबूत कर रही हैं भारत के नागरिक कानून को देखिए भारत का नागरिक कानून धर्म पर आधारित है.

यह एक एजेंडा है जिसे वे बदलना चाहते हैं

हां, जाहिर है वो इसे धार्मिक मामला बनाना चाहते हैं वे एक कॉमन सिविल कोड चाहते हैं और वो कभी नहीं होगा मैं आरएसएस के एक सीनियर से बात कर रहा था मैंने जाति के मुद्दे का जिक्र किया और वो कहते हैं ‘यह हमारे अस्तित्व की एक व्यथा है और जाति दूर नहीं जाती दिखती है’

आपने एकता के बारे में बात की जिसका वास्तव में मतलब है कि आप दूसरी निचली जाति के लोगों को गले लगाते हैं उनके साथ शक्ति साझा करते हैं और असल में दिखाते हैं कि आप विविधता में विश्वास करते हैं. बीजेपी ऐसी धारणा बनाने की कोशिश कर रही है. लेकिन अभी भी इस देश में कुछ शक्तिशाली जातियों के पास सत्ता है 

दरअसल, अगर आप कम्युनिस्ट समेत भारत की सभी पार्टियों को देखते हैं तो उसमें ऊपरी जातियों का वर्चस्व दिखेगा बहुजन समाज पार्टी और शायद समाजवादी पार्टी इसमें अपवाद हो सकते हैं क्योंकि वो बहुत जाति आधारित दिखते हैं, प्रधानमंत्री अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले एक शख्स हैं अगर आप हमारी केस स्टडीज में से 2015 बिहार विधानसभा चुनावों के उम्मीदवारों की जाति संरचना को देखते हैं तो बीजेपी ने बड़े पैमाने पर OBC’s को कई पदों के लिए नॉमिनेट किया था.  इससे ऊंची जाति के हिंदुओं को शिकायतें थीं कि हम लोग वैसा बेहतर नहीं कर पाएं जैसा चाहते थे क्योंकि कैंडिडेट कौन है इस बात को लेकर सहमति नहीं थी आरएसएस में भी एक निश्चित बदलाव हो रहा है. दुर्भाग्य की बात है कि आरएसएस रिसर्च के लिए भी  अपने लोगों की जाति का रिकॉर्ड नहीं रखता है हां आप ऐतिहासिक रूप से सही है कि ये ब्राह्मण-बनिया पार्टी के तौर पर जानी जाती थी लेकिन अब ये बहुत तेजी से कम हो रहा है और खास तौर पर ज्यादा से ज्यादा पिछड़े वर्ग इनसे जुड़ रहे हैं. दलित और आदिवासियों के लिए खास कोशिश की गई है उदाहरण के लिए भारत के राष्ट्रपति... 

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