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19 जनवरी 1990 को रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु को प्राप्त होने वाले ओशो ने कहा था,’मौत से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उसे सेलिब्रेट करना चाहिए.’
भगवान श्री रजनीश के नाम से भी पुकारे जाने वाले ओशो के कुछ अनुयायियों का मानना था कि उनके गुरु को उनके ही कुछ विश्वस्त सहयोगियों ने जहर दे दिया था. उन लोगों की नजर ओशो की अकूत संपत्ति पर थी.
उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही उनके विश्वासपात्र सहयोगियों ने उनके हजारों करोड़ रुपये के ग्लोबल साम्राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी. ऐसा उनकी एक वसीयत की वजह से हुआ. अब इस वसीयत को पुणे में रहने वाले उनके एक शिष्य योगेश ठक्कर ने अदालत में चैलेंज किया है.
उन्होंने दावा किया है कि सार्वजनिक चैरिटीबल ट्रस्ट ओशो चैरिटीबल ट्रस्ट इंटरनेशनल फाउंडेशन से अब तक 100 करोड़ रुपये से अधिक की रकम गैरकानूनी ढंग से ओशो मल्टीमीडिया एंड रेजॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड को ट्रांसफर की जा चुकी है, जो एक निजी कंपनी है.
बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर याचिका में ठक्कर ने डॉ. गोकुल गोकानी का एक शपथ पत्र नत्थी किया है, जो ओशो की मृत्यु के समय पुणे आश्रम में मौजूद थे. डॉ. गोकुल ने ही ओशो का डेथ सर्टिफिकेट जारी किया और उन्हें शक था कि ओशो की मृत्यु के 4 घंटे पहले कोई साजिश रची गई थी.
लिहाजा अब ओशो की मृत्यु और उनके उत्तरिधकार पर कब्जे के 26 साल बाद ये 7 सवाल बार-बार उठ रहे हैं.
19 जनवरी 1990 को डॉ. गोकुल गोकानी पुणे के अपने घर पर आराम कर रहे थे. अपने शपथपत्र में वह लिखते हैं, ‘उन्हें तुरंत अपनी इमरजेंसी किट और लेटरहेड लेकर ओशो आश्रम पहुंचने को कहा गया. जब उन्होंने पूछा कि क्या कोई गंभीर तौर पर बीमार है या मर गया है, तो उन्हें कोई जवाब नहीं मिला.’
अगर ओशो मर रहे थे, तो अमृतो ने डॉ. गोकानी को उन्हें बचाने के लिए क्यों नहीं कहा. आश्रम में कई मेडिकल डॉक्टर थे. उनसे सलाह क्यों नहीं ली गई. ओशो को अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया. डॉ. गोकानी ने लोगों को इसके बारे में क्यों नहीं बताया. उन सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं है.
डॉ. गोकानी अपने शपथपत्र में लिखते हैं कि उन्हें ओशो के कमरे में शाम 5 बजे जाने की अनुमति मिली. कमरे में ओशो का शरीर था और अमृतो और जयेश (माइकल ओ ब्रायन) वहां मौजूद थे.
डॉ. गोकानी इस बात पर अचरज करते हैं कि अमृतो और जयेश ने ओशो की मृत्यु का इंतजार क्यों किया? आश्रम में इतने सारे डॉक्टर थे. उनमें से किसी को डेथ सर्टिफिकेट लिखने के लिए क्यों नहीं बुलाया गया.
डॉ. गोकुल गोकानी कहते हैं, ‘उन्होंने ओशो को अंतिम सांस लेते नहीं देखा. इसलिए उन्होंने जयेश और अमृतो से उनकी मृत्यु की वजह पूछी. उन्होंने गोकानी से सर्टिफिकेट में दिल से संबंधित बीमारी के बारे में लिखने को कहा ताकि ओशो के शव का पोस्टमार्टम न हो सके.’
अगर गोकानी का विश्वास किया जाए तो ओशो की मौत की असली वजह अब तक नामालूम है. अगर ओशो मृत्यु से पहले उल्टियां कर रहे थे, तो इसकी वजह क्या थी. डॉ. गोकानी ने इसके बारे में क्यों नहीं पूछा.
अमृतो और जयेश ने कहा कि ओशो अपने ‘21 सदस्यों’ के इनर सर्किल के बीच अपना अंतिम संस्कार चाहता था. वो चाहते थे कि तुरंत उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाए.
दोनों ने किसी को भी उनके नजदीक से दर्शन करने की इजाजत नहीं दी. इनर सर्किल के सदस्यों को ओशो की मृत्यु के बारे में बात करने से कड़ाई से मना कर दिया गया.
ओशो की मृत्यु की छोटी सी सार्वजनिक सूचना देने के 1 घंटे के भीतर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया. उनके अंतिम संस्कार में इतनी हड़बड़ी को लेकर आज भी सवाल उठाए जा रहे हैं.
ओशो की सेक्रेट्री नीलम से कहा गया कि वे उनकी मां को इस मृत्यु की सूचना दे दें. ओशो की मां आश्रम में ही थीं.
ओशो अगर मृत्यु की ओर बढ़ रहे थे, तो उनकी मां को दोपहर एक बजे ही यह सूचना क्यों नहीं दी गई? और उनकी मां ने सीधे उन लोगों पर हत्या का आरोप क्यों लगाया?
योगेश ठक्कर अपने शपथ-पत्र में दावा करते हैं कि 1989 में बनी ओशो की वसीयत के बारे में आश्रम में किसी को भी पता नहीं था. इसे पहली बार 2013 में अमेरिका की एक अदालत में एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान पेश किया गया.
ठक्कर का दावा है कि यह वसीयत ओशो की मृत्यु के बाद तैयार की गई. यह वसीयत उसी समय सामने आई, जब इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स का सवाल उठाया गया. इस वसीयत से ओशो की सभी चीजें ओशो इटंरनेशनल फाउंडेशन के ट्रस्टी जयेश के पास चली गईं.
ठक्कर ने यह कथित वसीयत नई दिल्ली, जर्मनी और इटली के डॉक्यूमेंटेशन एक्सपर्ट्स को भेजी. उनका कहना है कि ओशो के दस्तख्त की फोटोकॉपी कराई गई. ठक्कर ने उन्हें वह किताब दिखाई, जिससे दस्तख्त की नकल की गई थी.
ओशो की विश्वस्त और विवादास्पद शिष्या रह चुकीं आनंद शीला (शीला पटेल) ने अपनी किताब ‘डोंट किल हिम’ में ओशो की संदिग्ध मृत्यु को लेकर कई सवाल उठाए थे. (उन्हें 1984 में रजनीशपुरम के बायोटेरर अटैक का दोषी ठहराया गया था और अमेरिका की एक संघीय जेल में उन्होंने 20 साल की सजा काटी थी.)
बांबे हाई कोर्ट ने पुणे पुलिस से ओशो की असली वसीयत खोज कर उसे भारत लाने को कहा है. हाई कोर्ट की बेंच ने हिमांशु ठक्कर को आरबीआई और ईडी के साथ इस बारे में दायर याचिका का पार्टी रेस्पांडेंट बनने की इजाजत दे दी है, ताकि इस मामले में मनी लांड्रिंग के पहलू से जांच हो सके.
जबकि हमने पुणे आश्रम की एक पदाधिकारी मा साधना से इस कहानी के दूसरे पहलू को भी टटोलना चाहा. हमने उनसे वसीयत के बारे में बात की.
जब, हमने उनसे ओशो की संदिग्ध मौत के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा-
द क्विंट ने ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के प्रशासकों में से एक और अमृतो और जयेश के करीबी मुकेश सारदा से बात करने की कोशिश की. लेकिन उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
बहरहाल, मशहूर रहस्यवादी गुरु रजनीश की जिंदगी की तरह ही उनकी मृत्यु भी रहस्यमयी रही. ओशो समुदाय में उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर उत्सव होते हैं. लेकिन उनके कुछ शिष्य अब भी अचानक हुई उनकी संदिग्ध मृत्यु का शोक मना रहे हैं.
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