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मुंबई के उपनगर की झुग्गी की ओर जाती एक पतली गली में मैं उसके पीछे चलती गई. बड़ी सुनसान-सी जगह थी. शायद वहां रहने वालों को भी कुछ खास फर्क पड़ता नजर नहीं आया. जमीन ऊंची-नीची और पथरीली थी. चारों तरफ इंसानी गंदगी फैली थी.
जगह-जगह जलता कूड़ा ही रोशनी का एकलौता जरिया था. मैं जलती हुई प्लास्टिक की गंध को महसूस कर सकती थी, जिसकी वजह से शायद मुझे रास्ता दिखाते उस छोटे कद के आदमी को बार-बार खांसी आ रही थी. गुजरते सालों में उसके फेंफड़ों ने इस जहरीली हवा को काफी ज्यादा सोख लिया था.
“बस दो मिनट और मैडम,” वह मुझे देखने के लिए पीछे मुड़ा. बड़े धैर्य के साथ रास्ते में आने वाले कुत्तों, बिल्लियों और बकरियों को दूर भगाते हुए वह खामोशी से मुझे अपनी झोंपड़ी की ओर ले जा रहा था.
जैसे ही हम उसके घर के नजदीक पहुंचे, घेरा बनाकर बात करते हुए कुछ लोग नजर आए. मेरे हाथों में कलम और डायरी देख कर वे मेरे पीछे आने लगे.
“मैडम मैडम,” उनमें से एक चिल्लाया, “क्या आप पत्रकार हैं?”
जैसे ही मैंने ‘हां’ में सर हिलाया तो वह हाथ जोड़कर बोला, “मैडम इसकी मदद करिए, इसे मदद की जरूरत है. यहां जितने लोग दिखाई दे रहे हैं, उन सब में इसी को सबसे ज्यादा जरूरत है मदद की. हम सब ने बहुत प्रार्थना की है, पर आप ही हैं जो उसके लिए कुछ कर सकती हैं.”
उसे छोटे कद के आदमी फिरोज के चेहरे पर शर्मिंदगी झलक उठती है. उसने 2002 हिट एंड रन मामले में अपने पिता को खो दिया था. हाल में ही उस केस के लिए फिल्म अभिनेता सलमान खान को बरी कर दिया गया है.
हादसे में अपने पिता को खो देने और जिंदा रहने की लड़ाई में अपने जरूरी साल खो देने के बाद भी उसकी आंखों में चमक बाकी है.
“चलिए मैडम,” वो मुस्कुरा कर मुझसे कहता है.
टिन की एक शीट जो उसके दरवाजे का काम कर रही थी, खटखटाने पर फिरोज की पत्नी ने उसे खोला. जब 50 स्क्वायर फुट की घर नुमा जगह में हम अंदर आए तो देखा दीवारों की जगह भी वहां टिन शीट ही थीं, एक कामचलाऊ घर जिसे शायद फिरोज ने खुद ही बनाया था.
घर का फर्श अब भी कई जगह से ऊंचा-नीचा था. घर में चारों तरफ पानी के बर्तन भरे रखे थे. दीवारों पर पवित्र कुरान की फ्रेम की हुई तस्वीरें थीं. फर्नीचर के नाम पर घर में सिर्फ एक चारपाई और मेज ही थे.
दरवाजा खुलते ही फिरोज का दो साल का बेटा दौड़ता हुआ आया और अपनी दूध की बोतल एक तरफ रख कर पिता से लिपट गया.
“मैं 12 साल का था जब अब्बू को मार दिया गया था,” फिरोज ने कहा. “मुझे वो दिन याद नहीं पर यह याद है कि यही वो दिन था जिसने मेरी जिंदगी बदल दी थी. अब्बू के जाने के बाद मेरी मां ने मछलियां बेचीं, केले बेचे, जो कुछ वो बेच सकती थीं, उन्होंने बेचा. हर दिन उन्होंने यही सोचते हुए बिताया कि अगला खाना वो कैसे जुटाएंगी.’’
फिरोज की मां उसके नजदीक बैठी हुई थीं, उसके बेटे को गोद में लिए उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थीं. मैंने देखा, ये सब दिल दहला देने वाली बातें कहते हुए भी फिरोज की आंखें खाली थीं, उनमें कोई भाव नहीं थे.
“मदद की उम्मीद में हम एक दो बार सलमान के बंगले पर भी गए. पर हर बार गार्ड ने कहा कि साहब घर पर नहीं हैं, और हमें वापस चले जाने को कहा. हमने एक बड़ी पहुंच वाले नेता से भी मदद मांगी, उसने भी हमारी मदद करने से इन्कार कर दिया. बेटी, तुम इस बुढ़िया की बात सुनो, न्याय तो हमेशा उनके लिए होता है जो इसे खरीद सकते हैं. हम जैसे गरीब न्याय नहीं पा सकते,” फिरोज की मां बेगम जहां ने धीरे से कहा. उनकी आंखें अब भी फिरोज के बेटे पर ही लगी थीं.
जब मैंने उन्हें सांत्वना देने की कोशिश की तो वे अपना आपा खो बैठीं,
जब मैं फिरोज की तरफ मुड़ी, उसकी आखें अब भी वैसी थीं, खाली. उसने कहा, “गुस्सा है मैडम, बहुत गुस्सा है. पर किसी काम का नहीं. इंसाफ की तरह गुस्सा होना भी हम गरीबों की किस्मत में नहीं. कोई कुछ भी कहे, हम सलमान को माफ नहीं कर सकते.’’
उन्होंने कहा, ‘’मैं आखिरी बार अपने पिता का चेहरा भी नहीं देख सका. और तब भी, उस अमीर आदमी ने कभी हमारी खबर नहीं ली. लोग कहते हैं कि कोर्ट में उसने मुआवजे का पैसा जमा किया था. वो पैसा भी हमें कभी नहीं मिला.”
कुछ देर में जब में जाने लगी तो फिरोज ने मुझे बाहर तक छोड़ने को कहा. अपने पिता को जाते देख बच्चा आकर उसके पैरों से लिपट गया. फिरोज ने उसे गोद में उठाया, जरा सी देर में ही बच्चा सो गया था.
गली के आखिर में जब मैंने अलविदा कहने के लिए फिरोज की तरफ हाथ हिलाया, उसकी आंखों में उम्मीद दिखाई दी मुझे.
“मैडम मैं बस अपने बच्चों को लेकर परेशान हूं. मेरे अब्बू मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे. मैं तो उनकी ये ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाया पर मैं चाहता हूं मेरे बच्चे इसे पूरा करें. ये बड़े होकर मेरी तरह अनपढ़ न बनें.’’
‘’मैं किस्मत को इन पर बोझ बनते नहीं देखना चाहता जैसा मैंने अपने साथ होते देखा. मैं उन्हैं खुश देखना चाहता हूं. मैं उनके लिए डरा हुआ हूं. वो खुश होंगे ना, मैडम? बोलिए ना कि वो खुश रहेंगे?” वो आंसू भरी आंखों से मुझसे पूछ रहा था.
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