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EVM पर सवाल: जानिए बैलेट के जरिए चुनावों में क्या-क्या होता था?

1971 के आम चुनावों में बिहार के अलग-अलग इलाकों में गुंडों और अराजक तत्वों ने 8 बैलेट बॉक्स लूट लिए

अभय कुमार सिंह
भारत
Updated:
 (फोटो: द क्विंट)
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(फोटो: द क्विंट)
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5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद एक बार फिर ईवीएम से छेड़खानी का 'जिन्न' जिंदा हो गया है. मायावती, अरविंद केजरीवाल की पार्टियों समेत देश की कई पार्टियों ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं.

बहस का मुद्दा ईवीएम से 'छेड़खानी हुई है' से बढ़कर क्या ईवीएम से 'छेड़खानी हो सकती है' पर पहुंच गया. ये भी मांग हुई कि फिर से बैलेट पेपर के जरिए चुनाव शुरू कराए जाएं. ये मांग कहां तक जायज है इसको जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाकर उस समय के चुनावों पर एक नजर डालनी होगी.

गुंडागर्दी, बाहुबल और बूथ कैप्चरिंग

साल 1962 से लेकर 2001 तक देश में बैलेट पेपर के जरिए चुनाव हुए. राजनीति में बाहुबल और गुंडागर्दी की शुरुआत के साथ ही बूथ कैप्चरिंग, बैलेट बॉक्स को पहले ही बैलेट पेपर से भर दिए जाने जैसी घटनाएं भी सामने आने लगी. एक ऐसा ही किस्सा है.

साल 1971 के आम चुनावों का, इन चुनावों में बिहार के अलग-अलग इलाकों में गुंडों और अराजक तत्वों ने 8 बैलेट बॉक्स लूट लिए, जम्मू कश्मीर में 2 बैलेट बॉक्स लूटे गए वहीं हरियाणा में ऐसा एक मामला सामने आया.

भारी संख्या में सुरक्षाबलों के होने के बाद भी बैलेट बॉक्स लूटे जाने की 11 घटनाएं सामने आई. मतलब साफ था कि नेताओं ने चुनाव जीतने के लिए गुंडों, अराजक तत्वों का सहारा लिया था.

बूथ पर कब्जा कर बैलट पर मुहर लगाकर बॉक्स भरने का ताजा मामला अक्टूबर 2015 का है. उत्तर प्रदेश की तत्कालीन समाजवादी सरकार के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री तोता राम मैनपुरी में एक बूथ पर बैलट पेपर पर खुद ही धड़ाधड़ मुहर लगाते कैमरे में कैद हो गए थे. दरअसल, तोताराम ने बूथ पर पहुंचकर खुद ही बैलट पेपर पर मुहर लगाकर अपने प्रत्याशी के लिए वोट डालना शुरू कर दिया. चूंकि तोताराम तत्कालीन दर्जा मंत्री थे इसलिए बूथ पर मौजूद कोई भी कर्मचारी उन्हें रोकने का साहस नहीं कर सका. हालांकि, बूथ पर तैनात एक पुलिसकर्मी ने इस पूरे मामले को अपने मोबाइल के जरिए कैमरे में कैद कर लिया.

वहीं साल 1990 का हरियाणा का 'महम कांड' भी बूथ कैप्चरिंग का ही नतीजा था. महम सीट पर फरवरी, 1990 में उपचुनाव हुए यहां कैंडिडेट थे मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला, जिनका सामना निर्दलीय उम्मीदवार आनंद सिंह दांगी से हो रहा था. उपचुनाव के दिन बूथ कैप्चरिंग की कोशिश हुई, इस दौरान कई लोगों की जान चली गई थी. कहा जाता है कि वोट देने आए लोग, वोट के ‘लुटेरों’ से भिड़ गए थे.

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इसी तरह यूपी, बिहार और देश के कई राज्यों से बूथ कैप्चरिंग, पहले से पर्चों पर वोट डालकर बैलेट बॉक्स भरे जाने की तमाम घटनाएं साल दर साल सामने आती रही. कई बार देखा जाता था कि कुछ सीटों पर वोटरों की संख्या से ज्यादा मतदान हुए हैं. इन घटनाओं से सिर्फ जान-माल का नुकसान ही नहीं देश के लोकतंत्र का भी नुकसान होता था.

खर्चीला भी है बैलेट पेपर से चुनाव

एक अनुमान के मुताबिक, देशभर में बैलेट पेपर के जरिए चुनाव कराने में 8 हजार टन पेपर, करीब 40 हजार शीशी स्याही और 25 लाख बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल होता है. साथ ही रखरखाव पर खर्च अलग से है.

EVM की एंट्री- चुनावी धांधली पर लगाम

वोटिंग को आसान, कम समय में और धांधली मुक्त बनाने के लिए ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल की जरूरत दिखी.

साल 1982 में पहली बार केरल के परूर विधानसभा क्षेत्र के 50 मतदान केन्द्रों पर ईवीएम का इस्तेमाल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर हुआ. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बता दिया था क्योंकि उस समय तक जनप्रतिनिधित्व कानून (1951) में ईवीएम का कोई प्रावधान नहीं था.

साल 1990 में इलेक्शन कमीशन ने चुनावों में धांधली को रोकने और सुविधाजनक चुनावों के लिए ईवीएम के इस्तेमाल की सिफारिश की.

साल 1998 से ईवीएम को चुनावों में कुछ जगहों पर इस्तेमाल किया जाने लगा. फिर साल 2002 से इसका इस्तेमाल हर एक विधानसभा चुनावों के लिए किया जाने लगा.

EVM से क्या मिला ?

ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन ने मार्च 2017 में एक रिपोर्ट पेश की, इसे देबनाथ सिसिर और मुदित कपूर ने तैयार किया था. रिपोर्ट में चुनावों में धांधली, लोकतंत्र और विकास पर ईवीएम के असर का जिक्र था, रिपोर्ट के मुताबिक-

  1. राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्यों में जहां चुनावी हेराफेरी से बार-बार चुनाव कराने पड़ते थे, वहां EVM से वोटिंग के बाद धांधली की घटनाओं में कमी आई.
  2. EVM से चुनावों ने समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों (महिलाओं और अनुसूचित जाति) को मजबूत किया है. वो अब अपने वोट डालने की संभावना को अधिक रखते हैं.
  3. EVM ने वोटिंग को अधिक प्रतिस्पर्धी बना दिया है. जीतने वाले का मार्जिन और जीतने वाली पार्टी का वोट शेयर घटा है.
  4. आंकड़ों के मुताबिक, EVM के कारण बिजली सप्लाई में इजाफा हुआ है.
  5. EVM के इस्तेमाल से अपराध की घटनाओं में काफी कमी आई है.

नेता-अपराधी सांठगांठ पर पड़ी है मार

इलेक्शन में EVM का इस्तेमाल होने से नेता और अपराधियों की सांठगांठ पर भी बड़ा असर पड़ा. लिहाजा, चुनाव के दौरान बूथ कैप्चरिंग के लिए अपराधियों को संरक्षण देने वाली रीत का भी लगभग अंत हो गया. चुनाव जीतने के लिए नेता, अपराधियों से सांठगांठ रखते थे. यही अपराधी बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाओं को अंजाम देते थे, जिसका नतीजा ये होता था कि चुनाव के बाद भी अपराधियों पर नेताओं का हाथ होता था और कानून व्यवस्था को इससे चोट पहुंचती थी. EVM से वोटिंग शुरू के बाद ऐसी सांठगांठ कम हुई है, और कानून व्यवस्था में सुधार भी हुआ है.

बैलट पेपर से विधानसभा या लोकसभा चुनाव के दौरान अति संवेदनशील मतदान केंद्रों पर ज्यादा पुलिस बल तैनात करना पड़ता था. हिंसा की तमाम घटनाएं अखबारों की सुर्खियां बनती थी, जिनमें आपराधिक छवि वाले लोग अवैध हथियारों के बल पर बूथ पर कब्जा कर लेते थे और कुछ ही लोग पूरे गांव के वोट डाल देते थे. कई बार ऐसा भी देखने में आया, जब अपने प्रत्याशी को हारता देख मतपेटिकाओं में स्याही डाल दी गई या फिर उन्हें कुंओं और तालाबों में डाल दिया गया.

इनवैलिड वोट नहीं पड़ सकते

हाल ही में केंद्र सरकार ने राज्यसभा में एक बयान दिया था, ‘साल 1962 से 1996 तक औसतन 62 से 70 सीटों पर जीतने वाले उम्मीदवार के अंतर से ज्यादा इनवैलिड वोट थे.’

ये इनवैलिड वोट EVM के जरिए नहीं डल पाते थे. साथ ही ईवीएम में प्रावधान है कि 1 मिनट में 5 ही वोट डाले जा सकते हैं. इस लिहाज से धांधली रूकी है. कहा जा सकता है कि बैलेट बॉक्स से हर लिहाज से ईवीएम का इस्तेमाल बेहतर है लेकिन बात अगर राजनीति की हो तो शोर तो मचता ही रहेगा.

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Published: 15 May 2017,01:23 PM IST

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