advertisement
कांग्रेस और बीजेपी के मेनिफेस्टो में आर्टिकल 370 के जिक्र ने इसे एक बार फिर चर्चा में ला दिया है. इसे लेकर कांग्रेस ने कहा है कि इस संवैधानिक स्थिति को बदलने की ना तो अनुमति दी जाएगी, ना ही ऐसी कोई कोशिश की जाएगी. वहीं बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में कहा है कि हम जनसंघ के समय से आर्टिकल 370 के बारे में अपना दृष्टिकोण दोहराते हैं. मतलब बीजेपी इसे हटाने की दिशा में कदम आगे बढ़ाने का वादा कर रही है.
आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर पर भी ब्रिटिशों का राज था. ब्रिटिश राज में जम्मू-कश्मीर प्रिंसली स्टेट थी, जहां महाराजा हरि सिंह का शासन था. महाराजा हरि सिंह प्रशासनिक और शासन देखते थे, जबकि डिफेंस, फॉरेन अफेयर्स और कम्यूनिकेशन ब्रिटिशों के अधीन थे. आजादी के वक्त महाराजा हरि सिंह पर आदिवासी विद्रोहियों का दवाब था. वो कुछ शर्तों के साथ भारत से जुड़ने के लिए तैयार हो गए. भारत सरकार और हरि सिंह के बीच एक समझौता हुआ. साल 1949 में सभी रियासतों से अनुरोध किया गया था कि वे भारत के संविधान के ड्राफ्ट में मदद के लिए अपने प्रतिनिधियों को भेजें. सभी रियासतों को अपने यहां विधानसभाओं को स्थापित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया.
साल 1952 में नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच दिल्ली समझौता हुआ था, जिसके तहत भारतीय नागरिकता जम्मू-कश्मीर के राज्य के विषयों में लागू करने की बात थी. लेकिन अनुच्छेद 35A को खास तौर पर कश्मीर के 'स्पेशल स्टेटस' को दिखाने के लिए लाया गया.
दिल्ली समझौते को लेकर तत्कालीन पीएम नेहरू ने लोकसभा में दिए एक बयान में कहा था-
‘पुराने दिनों में महाराजा बहुत घबराए हुए थे, क्योंकि बड़ी संख्या में अंग्रेज आकर वहां बस रहे थे...क्योंकि वहां का मौसम अच्छा था, उन्होंने वहां जमीनें कब्जा लीं. ब्रिटिश राज में महाराजा हरि सिंह के तमाम अधिकार ले लिए गए. महाराजा ने इसी लिए फैसला लिया कि कोई भी बाहरी व्यक्ति वहां जमीन न ले सके... मौजूदा सरकार उस अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए बहुत चिंतित है क्योंकि उन्हें डर है. और मुझे लगता है कि उनका डर सही है, क्योंकि कश्मीर में वहां के सौंदर्य को देखते हुए वो लोग जमीनें खरीद लेंगे, जिनके पास पैसे हैं.’
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)