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क्या है पुनर्विचार याचिका,जिस पर टिकी मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की आस

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 30 दिन के भीतर पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी होती है

क्विंट हिंदी
भारत
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अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का 1,045 पन्नों का फैसला असल में दो दस्तावेजों से बना है.
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अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का 1,045 पन्नों का फैसला असल में दो दस्तावेजों से बना है.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अयोध्‍या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया है. बोर्ड के सदस्‍य सैयद कासिम रसूल इलियास ने इस बात की जानकारी देते हुए बताया कि बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया है.

लखनऊ में हुई बोर्ड की बैठक में यह फैसला किया गया. बोर्ड ने कहा कि एक महीने में समीक्षा याचिका दायर की जाएगी. साथ ही बोर्ड ने अयोध्‍या में 5 एकड़ जमीन लेने से भी इनकार कर दिया है. आइए जानते हैं क्या है पुनर्विचार याचिका और क्या इससे पर्सनल लॉ बोर्ड की शिकायतों का समाधान होगा.

क्या है पुनर्विचार याचिका?

पुनर्विचार याचिका के तहत सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी फैसले की समीक्षा हो सकती है. पीड़ित पक्ष सुप्रीम कोर्ट के किसी आदेश के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर कर सकता है. दरअसल पुनर्विचार याचिका किसी भी मामले में पहले के फैसलों का अपवाद है. इस संदर्भ फैसले की समीक्षा होती है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के संदर्भ में फैसला या आदेश सुनाए जाने के 30 दिन के अंदर पुनर्विचार याचिका दायर करनी होती है.
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यह कोर्ट पर है वह पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करे या इसे खारिज कर दे. हालांकि पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद कोर्ट क्यूरेटिव पीटिशन स्वीकर कर सकता है, ताकि उसकी प्रक्रिया में हुई किसी गलती या दुरुपयोग को रोका जा सके. सही तरीके से न्याय हो इसके लिए यह पीटिशन स्वीकार की जाती है.

दरअसल अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकारों ने अपील दाखिल किए जाने की इच्‍छा जताते हुए शनिवार को कहा था कि मुसलमानों को बाबरी मस्जिद के बदले कोई जमीन भी नहीं लेनी चाहिए. इन पक्षकारों ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी से नदवा में मुलाकात के दौरान यह मांग रखी थी.

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Published: 17 Nov 2019,04:29 PM IST

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