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क्या होता है टूलकिट? किसान आंदोलन से क्या है संबंध? सब समझिए

टूलकिट मामले में दिशा रवि पांच दिनों की पुलिस रिमांड पर 

क्विंट हिंदी
भारत
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टूलकिट मामले में दिशा रवि पांच दिनों की पुलिस रिमांड पर 
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टूलकिट मामले में दिशा रवि पांच दिनों की पुलिस रिमांड पर 
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ग्रेटा थनबर्ग टूलकिट मामले में पुलिस ने बेंगलुरु की क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि को गिरफ्तार कर पांच दिनों की रिमांड पर ले लिया है. इसे लेकर तमाम विपक्षी दल और सामाजिक संगठन विरोध जता रहे हैं. लेकिन लाल किले पर हुए हिंसक प्रदर्शन की जांच में जुटी पुलिस के लिए ये तो सिर्फ 'शुरुआत' है. दिल्ली पुलिस ने टूलकिट केस में बॉम्बे हाईकोर्ट की वकील निकिता जैकब और एक अन्य संदिग्ध शांतनु की तलाश शुरु कर दी है. इनके खिलाफ गैर-जमानती वॉरंट भी जारी हो चुके हैं. तो आखिर टूलकिट है क्या और इस पर क्यों इतना बवाल मचा है?

क्या होता है टूलकिट?

टूलकिट उन तमाम जानकारियों का संग्रह होता है जिससे किसी मुद्दे को समझने और उसके प्रचार-प्रसार में मदद मिलती है. दरअसल ये किसी थ्योरी को प्रैक्टिकल में बदलने वाला दस्तावेज होता है, जो आम तौर पर किसी खास मुद्दे और खास दर्शक/समर्थक वर्ग के लिए तैयार किया जाता है. टूलकिट जितना डीटेल्ड और परिपूर्ण होगा, लोगों के लिए उतना ही उपयोगी साबित होगा.

  • ये किसी मुद्दे को समझाने के लिए बनाया गया एक गूगल डॉक्यूमेंट है, जिसमें किसी मुद्दे की जानकारी देने के लिए और उससे जुड़े कदम उठाने के लिए विस्तृत सुझाव होते हैं.
  • मोटे तौर पर इसका इस्तेमाल सोशल मीडिया के संदर्भ में होता है, जिसमें याचिका, विरोध-प्रदर्शन या आंदोलन से जुड़ी जानकारी होती है.
  • टूलकिट में आमतौर पर आंदोलन को बढ़ाने के लिए 'एक्शन पॉइंट्स' होते हैं. इसमें यह बताया जाता है कि आप क्या लिखें, कौन से हैशटैग का इस्तेमाल करें, कब ट्वीट या पोस्ट करें और किन लोगों को शामिल करें.
  • वर्तमान दौर में टूलकिट किसी आंदोलन की रणनीति का अहम हिस्सा होता है. इसका मुख्य मकसद अपने समर्थकों से साथ समन्वय स्थापित करना होता है.
  • आंदोलनकारियों के अलावा तमाम राजनीतिक पार्टियां, कंपनियां, शिक्षण संस्थाएं और सामाजिक संगठन भी किसी खास मुद्दे को लेकर 'टूलकिट' का इस्तेमाल करते हैं.

कैसे शुरु हुआ इस्तेमाल?

टूलकिट अस्तित्व में कुछ ही सालों पहले आया है. इसका पहली बार जिक्र तब आया, जब अमेरिका में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन शुरू हुआ. इस दौरान दुनिया भर के लोग इससे जुड़े और उन्हें अपने अभियान से जोड़ने के लिए आंदोलन से जुड़े लोगों ने ही टूलकिट बनाया.

इसके जरिए उनके काम की तमाम जानकारियां शेयर की गईं, जैसे - आंदोलन में किन जगहों पर जाएं या दूर रहें, कहां-कितने बजे इकट्ठा हों, आंदोलन का स्वरुप कैसा रखें, पुलिस की कार्रवाई से कैसे बचें, सोशल मीडिया पर किस तरह से सक्रिय रहें, किन हैशटैग के जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बनायें आदि. धीरे-धीरे इसका प्रचलन बढ़ता गया और आज दुनिया भर में होने वाले आंदोलनों में इसकी अहम भूमिका होती है.

कितना असरदार होता है टूलकिट?

मोटे तौर पर टूलकिट एक ऐसा डिजिटल हथियार है, जिसका इस्तेमाल सोशल मीडिया पर किसी आंदोलन को प्रचलित करने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को उसमें जोड़ने के लिए किया जाता है, टूलकिट में आंदोलन से जुड़ी तमाम रणनीति होती है, और लोगों के लिए वो गाइडलाइन्स होती हैं, जिससे आंदोलन आगे बढ़े और पुलिस की कार्रवाई में लोगों को ज्यादा नुकसान ना हो.

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किसान आंदोलन से क्या है संबंध?

3 फरवरी को ग्रेटा थनबर्ग ने किसानों के समर्थन में एक ट्वीट किया और उसके साथ एक टूलकिट शेयर की. लेकिन अगले ही दिन उन्होंने वो ट्वीट ये कहते हुए डिलीट कर दिया कि वो पुरानी टूलकिट थी. 4 फरवरी को ग्रेटा ने एक बार फिर किसानों के समर्थन में ट्वीट किया और एक नया टूलकिट शेयर किया, जिसमें उन्होंने लिखा, "ये नई टूलकिट है जिसे उन लोगों ने बनाया है जो इस समय भारत में जमीन पर काम कर रहे हैं. इसके जरिये आप चाहें तो उनकी मदद कर सकते हैं."

पुलिस को उसी टूलकिट से आपत्ति है, जिसे वो 26 जनवरी को दिल्ली के लाल किले में हुए हिंसक प्रदर्शन से जोड़कर देख रही है. दिल्ली पुलिस के आधिकारिक ट्वीट के मुताबिक, दिशा रवि उस टूलकिट की एडिटर हैं और उस दस्तावेज को तैयार करने और उसे सोशल मीडिया पर सर्कुलेट करने वाली मुख्य ‘आरोपी’ हैं. 

पुलिस के मुताबिक, दिशा रवि ने ही स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग को टूलकिट मुहैया कराई थी. पुलिस का कहना है कि दिशा के कहने पर ही ग्रेटा ने पहले वाले टूलकिट को डिलीट किया और अगले दिन इसका एडिटेड वर्जन शेयर किया.

टूलकिट में क्या था?

तीन पन्नों की इस टूलकिट में किसान आंदोलन के समर्थन में कई बातें लिखी थीं. टूलकिट के मुताबिक, इसका मकसद भारत में चल रहे किसान आंदोलन, कृषि क्षेत्र की मौजूदा स्थिति और किसानों के विरोध-प्रदर्शन के बारे में जानकारी देना था.

  • इसमें बताया गया था कि वो कैसे अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए किसानों का समर्थन कर सकते हैं.
  • टूलकिट में कहा गया है कि #FarmersProtest और #StandWithFarmers हैशटैग्स का इस्तेमाल करते हुए, किसानों के समर्थन में ट्वीट करें.
  • लोगों से अपने स्थानीय प्रतिनिधियों को मेल या कॉल कर ये पूछने का सुझाव दिया गया कि वो किसानों के मामले में क्या एक्शन ले रहे हैं.
  • लोगों से अपील की गई कि वो संगठित होकर, 13-14 फरवरी को पास के भारतीय दूतावासों, मीडिया संस्थानों और सरकारी दफ्तरों के बाहर प्रदर्शन करें
  • इसमें लोगों से किसानों के समर्थन में वीडियो बनाने, फोटो शेयर करने और अपने संदेश लिखने का भी आह्वान किया गया.
  • टूलकिट में दिल्ली की सीमाओं से शहर की ओर किसानों की एक परेड या मार्च निकालने का भी जिक्र है और लोगों से उसमें शामिल होने की अपील की गई है.
  • इस टूलकिट में ये भी बताया गया है कि किसान आंदोलन के दौरान कोई दिक्कत आए तो किन लोगों से बात करनी है? क्या करने से बचना है?

क्या कहती है पुलिस?

दिल्ली पुलिस के मुताबिक, 26 जनवरी को हुई हिंसा सुनियोजित थी, जिसमें इस दस्तावेज की अहम भूमिका थी. पुलिस के अनुसार, इस टूलकिट में भारत के खिलाफ आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय जंग छेड़ने का आह्वान किया गया है. दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर प्रवीर रंजन ने कहा "टूलकिट में पूरा एक्शन प्लान बताया गया है कि कैसे डिजिटल स्ट्राइक करनी है, कैसे ट्विटर स्टॉर्म करना है और क्या फिजिकल एक्शन हो सकता है. 26 जनवरी के आसपास जो भी हुआ, वो इसी प्लान के तहत हुआ, ऐसा प्रतीत होता है."

दिल्ली पुलिस का दावा है कि दिशा और उनके साथियों ने खालिस्तान-समर्थक ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ नामक संस्था के साथ काम किया ताकि भारत के खिलाफ नफरत फैलाई जा सके. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी इसे ‘विदेशी साजिश’ बताया. उन्होंने प्रेस से बात करते हुए कहा कि कुछ विदेशी ताकतें भारत को बदनाम करने की साजिश कर रही हैं.

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