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एल्गार मामले में गिरफ्तार DU के प्रोफेसर डॉ. हैनी बाबू कौन हैं

साईंबाबा से लेकर जाति तक, डॉ. बाबू की गिरफ्तारी के कई कारण हैं

एंथनी रोजारियो
भारत
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(फोटो: क्विंट)
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(फोटो: क्विंट)

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जब आप किसी को राष्ट्रदोही कहते हैं तो उसकी परिभाषा क्या होती है? क्या आप कुछ मुद्दों पर सवाल करने की वजह से राष्ट्रद्रोही बन जाते हैं? राष्ट्र की परिभाषा कौन तय करता है? दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हनी बाबू एमटी ने पिछले साल नवंबर में द कैरावान को दिए एक इंटरव्यू में पूछा था.

राष्ट्र की परिभाषा कौन तय करता है और कैसे, जब डॉ. बाबू ने यह सवाल किया था, तो उसके ठीक दो महीने पहले पुलिस ने डॉ. बाबू के नोएडा स्थित घर की तलाशी ली थी. उन पर आरोप था कि एल्गार परिषद से उनके लिंक्स हैं.

तलाशी के करीब दस महीने बाद अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए ने उन्हें एल्गार मामले से संबंधित होने के कारण गिरफ्तार कर लिया है.

हालांकि डॉ. बाबू का कहना है कि एल्गार परिषद के आयोजन में या उसके बाद भीमा कोरेगांव में भड़की हिंसा में उनकी कोई भूमिका नहीं है, फिर भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी का कहना है कि “नक्सल गतिविधियों, माओवादी विचारधारा का प्रचार करने और एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार दूसरे आरोपियों के साथ मिलकर साजिश रचने” की वजह से उन्हें गिरफ्तार किया गया है.

जिस इंटरव्यू की बात ऊपर की गई है, उसमें डॉ. बाबू ने कहा था कि किस तरह पुलिस ने उनके घर से जाति और सामाजिक संरचनाओं पर केंद्रित किताबों को जब्त किया. उनके शब्दों में कहें तो इस बात से “साफ जाहिर होता है कि वे लोग ऐसी किताबों की तलाश कर रहे थे जिनसे मुझे एक खास प्रोफाइल में दिखाया जा सके”.

डॉ. बाबू का अध्ययन क्षेत्र बहुत व्यापक है

लैंग्वेज आडियोलॉजी, पॉलिटिक्स एंड पॉलिसी, लिंग्विस्टिक आइडेंटिटी, लिंग्विस्टिक डिबेट्स, मार्जिनलाइज्ड लैंग्वेजेज और सोशल जस्टिस जैसे क्षेत्रों में उनका स्पेशियलाइजेशन है. वैसे उन्होंने 1989 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिकट के श्री केरला वर्मा कॉलेज से इंग्लिश लैंग्वेज और लिटरेचर में बीए किया.

1991 में डॉ. बाबू ने उसी यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लैंग्वेज और लिटरेचर में मास्टर्स डिग्री ली. इसके बाद 1998 में वह सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेज से पीएचडी करने के लिए हैदराबाद चले गए. वहां उन्होंने 2002 से 2007 तक लेक्चरर के तौर पर पढ़ाया भी.

एकैडमिक्स के अलावा डॉ. बाबू ने बुक पब्लिशिंग कंपनी रत्नासागर के लिए ग्रामर लेसेन्स भी बनाए और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के लिए इंग्लिश ग्रामर पर ऑडियो-विजुअल मैटीरियल की समीक्षा भी की.

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वह फॉर्मल सोसायटी फॉर द स्टडी ऑफ सिनटेक्स एंड सीमेनटिक्स ऑफ इंडियन लैंग्वेज (फॉसिल) के ज्वाइंट सेक्रेटरी भी रहे हैं.

साईंबाबा से लेकर जाति तक, डॉ. बाबू की गिरफ्तारी के कई कारण हैं

डॉ. बाबू ने उस इंटरव्यू में कहा था कि वह उस कमेटी का हिस्सा थे, जोकि दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएन साईंबाबा के डिफेंस में बनाई गई थी. साईंबाबा को माओवादी संबंधों के आरोप में 2014 में गिरफ्तार किया गया था और इसके बाद तीन साल की सजा सुनाई गई थी.

डॉ. बाबू ने कहा था कि सितंबर में पुलिस ने तलाशी में जिन किताबों को जब्त किया था, उनमें से दो किताबें डिफेंस कमिटी से संबंधित थीं. उन्होंने कहा था कि एकैडमिक्स की गिरफ्तारी इसलिए की जा रही है ताकि लोगों को “डराया और चुप कराया जा सके.”

लिंग्विस्टिक आइडेंटिटी के इंटरप्ले पर एक्सपर्ट होने के कारण डॉ. बाबू ने जाति के मुद्दे पर काफी लिखा है.

2015 में आईआईटी मद्रास में अंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल (एपीएससी) की मान्यता के रद्द होने के बाद डॉ. बाबू ने एक आर्टिकल लिखा था- अनइक्वल राइट्स: फ्रीडम, इक्वालिटी, लाइफ एंड लिबर्टी ऑफ सिटिजन्स एंड अदर्स. इसमें उन्होंने आरक्षण के खिलाफ नाराजगी को स्पष्ट करने की मांग की थी.

यह आर्टिकल जून 2015 में छपा था. इसमें उन्होंने लिखा था,

“हालांकि प्रभुत्वशाली समूह आरक्षण के जरिए समानता हासिल करने के संघर्ष का हमेशा विरोध करते रहे हैं, इसके बावजूद कि अनुभव बताते हैं कि भारत में जाति पिछड़ेपन का कारण है. जब संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 को पूरी तरह से लागू करने के लिए आरक्षण के रूप में सरकार कोई कार्रवाई करती है तो उच्च वर्ग के मीडिया में व्यापक आक्रोश और गुस्सा पैदा होता है, ऐसी धारणा बनाई जाती है कि आरक्षण की वजह से ही हमारा समाज जाति व्यवस्था से मुक्त नहीं हो पा रहा.”

हैदराबाद यूनिवर्सिटी में दलित पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला के सुसाइड के बाद डॉ. बाबू ने एक और आर्टिकल लिखा था- कनवर्जिंग स्ट्रगल्स एंड डायवर्जिंग इंटरेस्ट्स: अ लुक एट द रीसेंट अनरेस्ट इन यूनिवर्सिटीज़. इसमें उन्होंने लिखा था कि जब स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार को खतरा पैदा हो रहा है तो प्रभुत्वशाली समूह का समर्थन भी मिल रहा है.

“दलित बहुजन जोकि जीवन के हर क्षेत्र में भेदभाव के शिकार होते हैं, अभी भी समानता के लिए संघर्ष कर रहे हैं और प्रभुत्वशाली विद्यार्थी समूह इन संघर्षों में शामिल नहीं होते, क्योंकि पहचान के आधार पर भेदभाव उनके लिए चिंता की बात नहीं. हां, जब अभिव्यक्ति की आजादी की बात आती है, तो उन्हें खतरा महसूस होता है. समान नागरिकों के रूप में वे स्वतंत्रता के अपने अधिकार के बारे में बेहद सतर्क हैं.”

डॉ. हैनी बाबू लगता है कि चूंकि वह जाति जैसे विषय पर काम करते हैं, इसलिए पुलिस उन्हें एल्गार परिषद मामले में संदिग्ध के तौर पर देख रही है. उन्होंने द कैरावान को बताया था कि ‘इसलिए स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया जा रहा है कि आप किस तरह का काम कर रहे हैं, इस बारे में आपको सावधान हो जाना चाहिए.’

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Published: 30 Jul 2020,07:40 AM IST

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