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स्पेशल टाडा कोर्ट ने गुरुवार को 1993 मुंबई बम धमाकों के दोषियों को सजा सुनाई. 5 लोगों को इस मामले में सजा सुनाई गई. मुख्य आरोपी अबू सलेम को उम्रकैद की सजा मिली. अब सवाल ये कि मुंबई को हिला कर रख देने वाले 93 के बम धमाकों में सलेम को लोगों की हत्या और हथियारों की सप्लाई करने का दोषी माना गया, फिर भी उसे फांसी की सजा क्यों नहीं मिली जबकि दो और दोषियों ताहिर मर्चेंट और फिरोज खान को इन्हीं सब मामलों में फांसी की सजा सुनाई गई. दरअसल अबू सलेम को भारत और पुर्तगाल के बीच हुई एक संधि ने बचा लिया.
सरकारी वकील उज्जवल निकल मे मुताबिक अबू सलेम के मामले में वो प्रत्यर्पण संधि के तहत फांसी की सज़ा नहीं मांग सकते हैं, इसलिए उसे उम्र कैद की सज़ा दी गई है
2002 में पुर्तगाल पुलिस ने अबू सलेम औऱ मोनिका बेदी को फर्जी दस्तावेजों के साथ गिरफ्तार किया था. वहां उनको पांच साल की सजा दी गई थी और दोनों वो सजा पा रहे थे.
यूरोपियन संघ में काफी वक्त से सजा-ए-मौत को बंद कर दिया गया है. यूरोपियन कनवेंशन्स ऑन ह्यूमन राइट्स के प्रोटोकॉल 4 के तहत यूरोपियन संघ के सदस्य वाले देश किसी व्यक्ति को ऐसे देश को नहीं सौंप सकते जहां उसे फांसी की सजा सुनाई जाए. इसलिए भारत के साथ संधि करते वक्त पुर्तगाल ने ये शर्त रखी कि किसी भी हालत में अबू सलेम को फांसी नहीं होगी.
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