EXCLUSIVE: खादी उद्योग का निजीकरण क्‍यों न कर दिया जाए?

आजादी की सालगिरह पर द क्‍व‍िंट इस बेहद अहम सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा है.

द क्विंट
भारत
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(फोटो: द क्‍व‍िंट)
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(फोटो: द क्‍व‍िंट)
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आजादी की इस सालगिरह पर द क्‍व‍िंट एक बेहद अहम सवाल पेश कर रहा है. सवाल है- आज के इस बदलते दौर में खादी उद्योग का निजीकरण क्‍यों न कर दिया जाए?

क्‍व‍िंट के संपादकीय निदेशक संजय पुगलिया ने इस मुद्दे पर खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) के चेयरमैन वी.के. सक्‍सेना से बातचीत की. नरेंद्र मोदी सरकार ने इस आयोग को चलाने की जिम्‍मेदारी उन्‍हें सौंपी है.

गौर करने वाली बात यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार खादी से जुड़े उद्योग को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है. पीएम मोदी खुद भी खादी के ब्रांड एम्‍बेसडर हैं.

खादी उद्योग का निजीकरण क्‍यों नहीं?

इस बारे में वी.के. सक्‍सेना बताते हैं कि पहली बार आयोग ने फ्रेंचाइजी देने की शुरुआत की है. कुछ लोगों को इसका आवंटन भी कर दिया गया है. उनका कहना है कि खादी से कई नई संस्‍थाओं को जोड़ने का काम चल रहा है. पहले खादी में जिस संस्‍था की मोनोपॉली थी, उसे खत्‍म किया जा रहा है.

खादी उद्योग का मकसद है रोजगार पैदा करना

आयोग के चेयरमैन ने कहा कि खादी को बिजनेस के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्‍कि इसका बुनियादी लक्ष्‍य रोजगार पैदा करना है. साथ ही खादी के नाम का दुरुपयोग न हो, इसके लिए कुछ कानून संसद ने बनाए हैं.

क्‍या मुश्किल है खादी के कारोबार से जुड़ना?

वी.के. सक्‍सेना बताते हैं कि खादी के कारोबार से जुड़ने के लिए आयोग अब ऑनलाइन फॉर्म लेकर आया है, जिसे भरना आसाना है. कुछ शर्तें पूरी करने के बाद कोई भी इस उद्योग से जुड़ सकता है.

संजय पुगलिया और वी.के. सक्‍सेना के बीच पूरी बातचीत वीडियो में देखें.

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