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पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के बारे में बहुत कुछ पढ़-सुन लिया होगा आपने. इसी के साथ आप लगातार आधार से 90 हजार करोड़ के फायदे, इनकम टैक्स रिटर्न से करीब 30 हजार करोड़ की कमाई और दूसरी सरकारी कमाई और बचत की खबरों को भी सुन रहे होंगे.
ऐसे में क्या आपके जेहन में ये सवाल नहीं उठता कि केंद्र सरकार को इतनी ही बचत और कमाई हो रही है, तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों को कम करने के लिए सरकार एक्साइज ड्यूटी में कटौती क्यों नहीं कर रही? हर बार फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा गड़बड़ाने की बात क्यों कही जाने लगती है? आइए जरा पेट्रोल-डीजल की कीमतों और सरकारी बचत के इस समीकरण को विस्तार से समझते हैं-
ये लिस्ट जो आप देख रहे हैं, वो दिल्ली में 24 सितंबर, 2018 के पेट्रोल प्राइस का ब्योरा है. आपको मालूम होगा कि कच्चे तेल की इंटरनेशल कीमतों से ही देश में पेट्रोल की कीमत तय की जाती है.
अब जरा 26 सितंबर का अरुण जेटली का बयान जानिए, जब 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर फैसला सुनाया, उसी वक्त देश के वित्तमंत्री ने ऐलान किया कि हमने, यानी सरकार ने आधार के सही इस्तेमाल से सालाना 90 हजार करोड़ की बचत की है.
आपको पता होगा कि पहले इनकम टैक्स रिटर्न भरने की आखिर तारीख 31 जुलाई थी. 31 जुलाई तक के रिटर्न भरने वालों के आंकड़ों पर एसबीआई की रिपोर्ट में 30 हजार करोड़ के अतिरिक्त फायदे का अनुमान लगाया गया था.
ऐसे में आधार से बचत, इनकम टैक्स रिटर्न से फायदे होने के बावजूद डीजल-पेट्रोल की मार झेल रहे लोगों को राहत क्यों नहीं दी जा रही है? अब खर्चे का भी अनुमान जोड़ लेते हैं. सरकारी अनुमान ही बताते हैं कि अगर मोदी सरकार एक्साइज ड्यूटी में 1 रुपये की कटौती करती है, तो उस पर 13 हजार करोड़ का बोझ आएगा.
इस हिसाब से 10 रुपये की कटौती कर देती है, तो बोझ आएगा 1 लाख, 30 हजार करोड़. और ये बोझ तो महज आधार की बचत और इनकम टैक्स रिटर्न की अतिरिक्त कमाई से ही निकाला जा सकता है.
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