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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत दौरे पर आ रहे हैं. पीएम नरेंद्र मोदी उनका स्वागत तमिलनाडु के महाबलीपुरम में करेंगे. इसे माम्मलापुरम भी कहा जाता है. इसके लिए इस ऐतिहासिक तटीय शहर को जबरदस्त ढंग से सजाया जा रहा है. मोदी शी जिनपिंग को महाबलीपुरम की यात्रा करवाएंगे. दोनों के बीच 11 और 12 अक्टूबर को मुलाकात होगी. आखिर मोदी ने जिनपिंग से मुलाकात के लिए दिल्ली, मुंबई को छोड़ कर महाबलीपुरम को ही क्यों चुना?
महाबलीपुरम को सातवीं सदी में पल्लव वंश के राजा नरसिंह देव बर्मन ने बसाया था. महाबलीपुरम और चीन के बीच 1700 साल पुराने संबंध रहे हैं. कहा जाता है कि चीन ने तिब्बत से लगती सीमा को सुरक्षित रखने के लिए पल्लव वंश के राजाओं के साथ समझौते किए थे.महाबलीपुरम बंगाल की खाड़ी के किनारे एक बड़ा व्यापारिक केंद्र था और यहां से चीन को सामान को निर्यात किया जाता था और वहां से आयात भी. ये संबंध एक हजार साल पहले तक कायम थे.
पल्लव वंश के सबसे शक्तिशाली राजा थे नरसिम्हन द्वितीय. अपनी सीमा की रक्षा के लिए चीन के राजा ने उन्हें दक्षिणी चीन का जनरल नियुक्त कर दिया था. पल्लव राजा के तीसरे राजकुमार बोधिधर्म बौद्ध भिक्षु बन गए थे. चीन में उन्हें काफी मान्यता है. उन्होंने कांचीपुरम से महाबलीपुरम होते हुए चीन की यात्रा की थी.
पर्यटन मंत्रालय ने उस रूट को फिर से बनाने की बात कही है, जिस पर चलकर बोधिधर्म चीन पहुंचे थे. इस रूट के बन जाने से चीन, जापान और थाईलैंड के हजारों टूरिस्ट तमिलानाडु आ पाएंगे.इतिहासकार बताते हैं कि पल्लव वंश के साथ शुरू हुआ चीन के साथ रिश्ता चोल वंश तक चला.
मोदी और जिनपिंग अगले सप्ताह यहां अनौपचारिक मुलाकात करेंगे. लिहाजा मंदिरों, पांच रथों, और लाइटहाउस जैसे यहां के ऐतिहासिक स्थानों को काफी सजाया जा रहा है. खास कर कृष्ण की मक्खन की गेंद को काफी सजाया जा रहा है. यह एक ढलान पर मौजूद बड़ी सी गोल चट्टान है. कहा जाता है कृष्ण ने जो मक्खन चुराया उसका एक गोला यहां गिर गया था.
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