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सर्दियों का समय आमतौर पर देश में सस्ती सब्जियों का होता है. लेकिन इस बार आपको मंडियों में ज्यादातर सब्जियां पिछले साल की सर्दियों की तुलना में महंगी मिल रही होंगी. यही नहीं, सर्दी की कई खास सब्जियां तो इस साल की गर्मियों के मुकाबले भी महंगी मिल रही हैं.
सर्दियों में आमतौर पर टमाटर, मटर, गाजर, फूलगोभी, पत्तागोभी, मूली और शिमला मिर्च जैसी सब्जियों की सप्लाई बढ़ जाती है. गर्मियों की सब्जियां, मसलन खीरा, लौकी, भिंडी और टिंडा इस समय थोड़े महंगे जरूर होते हैं, लेकिन वो इसलिए, क्योंकि इन सब्जियों की पैदावार और सप्लाई कम हो जाती है. लेकिन इस बार तस्वीर बदली हुई है.
द इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में ज्यादातर सब्जियों की औसत खुदरा कीमतें इस वक्त नवंबर 2016 और जून 2017 के मुकाबले ज्यादा हैं. (देखें ग्राफिक्स)
प्याज को छोड़कर ज्यादातर सब्जियों की कीमतें प्रति किलो पचास रुपये या उससे ज्यादा ही हैं. तो आखिर क्या वजह है, जिसने इस सीजन में भी सब्जियों की कीमतें ऊंची बना रखी हैं. जानकारों के मुताबिक एक वजह तो देश के कुछ राज्यों, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भारी बारिश है, जिससे टमाटर, प्याज, शिमला मिर्च और पालक की फसलों पर बुरा असर पड़ा है.
लेकिन सब्जियों के दाम तो पूरे देश की मंडियों में ही ऊंचे चल रहे हैं, और वहां तो ज्यादातर सप्लाई स्थानीय होती है, दूसरे राज्यों से कम. जाहिर है, और भी कई दूसरी वजहें हैं, जो देश में सब्जियों की कीमतों में इस बेमौसमी तेजी के पीछे हैं. कृषि व्यापार विशेषज्ञ विजय सरदाना के मुताबिक ये वजह हैं:-
ये तीनों वजह कहीं न कहीं एक-दूसरे से जुड़ी भी हैं. ऐसा नहीं है कि देश में सब्जियों की पैदावार मांग के मुकाबले कम है, लेकिन शहरी मंडियों में सप्लाई का समय पर नहीं पहुंचना या कम पहुंचना कंज्यूमर के लिए इनके दाम बढ़ा देता है.
लेकिन आम कंज्यूमर तक ये किस भाव पर पहुंचेंगी, इसका कोई भरोसा नहीं होता. अगर भंडारण की सही व्यवस्था हो, तो न सिर्फ किसानों को उचित दाम मिले, बल्कि आम लोगों तक भी मुनासिब कीमत पर सब्जियां पहुंच सकेंगी.
विजय सरदाना एक और महत्वपूर्ण तथ्य की तरफ इशारा करते हैं. उनका कहना है, “नोटबंदी और जीएसटी के बाद मंडी के आढ़तिए और व्यापारी सतर्क होकर कारोबार कर रहे हैं. इसकी एक वजह है कैश में एक सीमा से ज्यादा सौदे करने पर लगी हुई पाबंदी, और दूसरा सरकारी अफसरों से गैर-जरूरी पूछताछ का डर.”
कैश का इस्तेमाल पहले जैसा नहीं हो पा रहा और पुराने व्यापारी और आढ़तिए पहले की तरह खुलकर फसलों या सब्जियों की न तो खरीद-बिक्री कर रहे हैं, न ही उनका स्टॉक रख रहे हैं.
विजय सरदाना बताते हैं, “सब्जी मंडियों के ज्यादातर व्यापारी और आढ़तिए न तो इतने पढ़े-लिखे हैं कि वो जीएसटी को समझ सकें, न ही वो कंप्यूटर चलाना जानते हैं. ऐसे में जब तक वो नए तरीकों से बिजनेस करना नहीं सीखते, वो संभलकर काम कर रहे हैं.”
इन सारी वजहों का नतीजा ये है कि सब्जियों या दूसरी कमोडिटी की कीमतों में अब हमें पहले से ज्यादा उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. चूंकि सब्जियां ज्यादा दिनों तक स्टोर नहीं की जा सकतीं, इन पर ये असर ज्यादा जल्दी दिख जाता है.
कृषि विशेषज्ञ ये चेतावनी भी दे रहे हैं कि जब तक सरकार जमीनी हकीकत को समझकर अपनी नीतियों में जरूरी बदलाव नहीं करेगी, ऐसे उतार-चढ़ाव आगे भी दिखते रहेंगे. प्याज की महंगाई से निपटने के लिए तो सरकार के पास उसके इंपोर्ट का रास्ता भी खुला रहता है. बुधवार को ही सरकार ने देश में 14,000 टन प्याज इंपोर्ट का एलान किया है. लेकिन दूसरी सब्जियों की महंगाई दूर करने के लिए तो लंबी अवधि के उपाय करने ही पड़ेंगे.
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